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5.11.07

आजा घरे छोड़ के तू दिली......

दिली मतलब दिल्ली को समझने की सही शुरुआत अब हुई है। अब लगता है कि दिल्ली में नोकरी कर रहा हूं। एक तो ड्यूटी टाइम बिलकुल शुद्ध देसी है। मतलब ब्रह्म मुहूर्त में आंख खोल देना है, बिस्तर से उठ जाना है, नहा लेना है और आठ बजते-बजते गाड़ी को सड़क पर रेल देना है। मयूर विहार फेज थ्री से मयूर विहार फेज वन और टू होते हुए, अक्षरधाम मंदिर वाली सड़क से होते हुए फिर पुराने आईटीओ ब्रिज को पार करने के बाद आईटीओ और बहादुरशाह जफर मार्ग पर गाड़ी रुकती है। अभी ठीक से तो हिसाब नहीं किया है लेकिन लगता है कि कार रोजाना सुबह शाम आने-जाने को मिलाकर 50 किमी चल ही लेती होगी। आते वक्त जिस तरह से लोग अपनी कारों और बाइकों को लेकर दिल्ली की ओर भागते हैं वो वाकई मजेदार है। मैं तो नया नया मुल्ला हूं। रोज अगल बगल की कारों वाले भाइयों-बहनों की शक्लों को देखता हूं, पढ़ने की कोशिश करता हूं। अब एक दो हफ्ते बीत रहे हैं तो लगता है कि वही भाव मेरे चेहरे पर भी आने लगे हैं। किसी ने थोड़ी भी गलत तरीके गाड़ी ओवरटेक की, कोई साइकिल वाला एकदम से आगे आ गया, आगे वाली गाड़ी बार बार इशारा करने पर भी दाएं-बाएं होने के लिए जगह नहीं दे रही.......तो चेहरा फनफना जाता है, शक्ल कुत्ते की होने लगती है, मुंह से भौं भौं की आवाज आती हुई महसूस होती है। लेकिन मैंने महसूस किया कि दरअसल दिल्ली की सड़कों पर चलने वाली कारों और बाइक वालों को तय कर लेना चाहिए कि ड्राइविंग और ट्रैफिक के दौरान हुए किसी गड़बड़ घोटाले पर आपस में कभी नहीं भिड़ेंगे। रोज देखता हूं कई कार वाले कुत्ते की तरह भौंकते हुए आपस में एक दूसरे का सिर फोड़ते रहते हैं। तूने मेरी गड्डी पर क्यों ठोंक दी तो तूने बिना सिग्नल दिए गाड़ी क्यों रोक दी। हे भगवान...सालों के पास कोई काम नहीं है क्या....जो काम भी होगा उसमें एक चीज तो बिलकुल पक्की है कि उस काम से उस कंपनी का भले लाभ हो जाए और इन महाशय का भले कल्याण हो जाए लेकिन किसी आम आदमी का तो भला नहीं होने वाला क्योंकि ये कायदे से खुद आदमी नहीं बन पाए हैं तो आम आदमी को क्या समझेंगे......यही सब सोचते गुनते घर पहुंचा तो टीवी पर टीसीरीज वालों की साइट पर एक भोजपुरी गाना चल रहा था...आजा घरे छोड़ के तू दिली......। गाने की धुन और बोल और गायिकी लाजवाब......मन में हूक उठी...आ तो रहा ही था घर लेकिन जाने फिर कैसे हाथ-पांव मारकर दिल्ली में रह गया.....हांफने-भागने और रोज थोड़ा सा कम हो जाने......

1 comment:

राजीव जैन said...

इस सुकून भरी जिंदगी के लिए आपको बधाई

यूं दस से पांच वाली नौकरी ईश्‍वर सब को दे