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18.12.07

एक नया ब्लाग-- बेहया, आइए स्वागत करें

आजकल दौरे पर हूं। आगरा में। आफिसियल काम निपटाने के साथ साथ मित्रों-दोस्तों और अग्रजों से भी मिलना जुलना हो रहा है। इसी क्रम में एक ऐसे पुराने साथी मिले जो बनारस से लेकर मेरठ तक आफिस और परिवार के हिस्से बने रहे। आजकल आगरा में है। नाम है जेपी नारायण। पेशे से पत्रकार हैं लेकिन दिल से कवि और एक अच्छा इंसान। अपनी जमीन और अपने मनुष्यों की फिकिर चिंता में हमेशा बेचैन से रहते हैं। इस मतलबपरस्त दौर में अपने दिल का हाल कहें तो किससे कहें। सो, संवेदनाओं को शब्दों का रूप देकर उसे कागज पर उतार देते हैं। देखते देखते एक दशक बीत गया और उनके पास इकट्ठी हो गईं ढेरों कविताएं। संकोची स्वभाव के कारण वे कभी कोशिश नहीं किए कि इन कविताओं को पुस्तक का रूप दिया जाए। बाद में जब दोस्तों ने उनकी कविताओं को कई बार सुना तो सलाद दे डाली कि इन्हें तो प्रकाशित कराया जाना चाहिए लेकिन जेपी जी टालते रहे। आखिर में मित्रों के दबाव में उन्हें अपने कविताओं को प्रकाशन के लिए देना पड़ा।

दो कविता संग्रह हैं उनके। ज्यादातर वक्त आफिस में बीतता है और बाकी वक्त घर गृहस्थी चलाने में सो इंटरनेट और ब्लागिंग से दूर ही रहते लेकिन जब मैं आगरा में उनके घर मिला और ब्लागिंग के बारे में जानकारी दी, साथ ही उनके कंप्यूटर पर उन्हें ढेर सारे ब्लाग दिखाए तो उनका भी मन हुआ की हिंदी के इस विश्व विजय के इस अभियान में वे भी शरीक होना चाहेंगे, अपने ब्लाग के जरिए। बस क्या था, नेकी और पूछ पूछ। मैंने तुरत फुरत उनका ब्लाग बनवा डाला। एक आपरेटर की तरह उन्हें ब्लाग के तकनीकी और क्रिएटिव पक्ष समझाता रहा और वे एक ब्लागर की तरह अपने ब्लाग के नाम से लेकर उसकी पंचलाइन तक पर सोचते विचारते और सुझाते रहे। इस क्रम में जन्मा बेहया। आप जब उनके ब्लाग पर जाएंगे तो उनकी जो पहली इंट्रोडक्ट्री पोस्ट हैं उसमें ब्लाग के नाम के बारे में व्याख्या भी पाएंगे।

तो मैं सभी ब्लागर दोस्तों, भड़ासियों और पाठकों से अनुरोध करूंगा कि वो बेहया ब्लाग को जरूर पढ़ें और जेपी नारायण जी का उत्साहवर्द्धन करें ताकि हिंदी ब्लागरों की दुनिया में एक नये शख्स का मनोबल बढ़ सके। उनके ब्लाग का यूआरएल इस तरह है....
http://behaya.blogspot.com

आगरा के बाद मथुरा और वृंदावन जाना है, वहां से लौटकर आने पर फिर तफसील से बात होगी, तब तक के लिए जय भड़ास...
यशवंत

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