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30.12.07

सशस्त्र सैनाओं में महिलाओं को स्थायी कमीशन क्यों नहीं ?

रक्षा मंत्रालय ने महिलाओं को सेना की तरफ़ आकर्षित करने के लिये उनका कार्यकाल १० वर्ष से बढा कर १४ वर्ष कर दिया है। परंतु विडंबना यह है कि १४ वर्ष कार्य करने के बावज़ूद इन महिला अधिकारियों को स्थायी सेवा कमीशन नही दिया जाता। भारतीय सेनाओं में महिलाओं की भर्ती की शुरुआत मुख्यतः १९९२ से हुई। इससे पहले उन्हें मात्र चिकित्सकीय सेवाओं के लिये ही रखा जाता था।
१९९२ में जब महिला अधिकारियों का पहला बैच भर्ती हुआ था तब प्रशासन ने कहा था कि महिला अधिकारियों को सर्वप्रथम ५ वर्षों के अल्पकालीन सेवा कमीशन के लिये भर्ती किया जायेगा तदोपरांत इच्क्षुक अभ्यार्थियों को स्थायी सेवा कमीशन दे दिया जायेगा। परंतु जैसे हि ये बैच अपने ५ वर्ष के कार्यकाल को पूरा करने को हुआ तो प्रशासन ने इनका कार्यकाल पहले १० वर्ष और फ़िर उसके बाद १५ वर्ष कर दिया। परंतु रखा इन्हें अल्पकालीन सेवा कमीशन अधिकारियों की श्रेणी के अंतर्गत ही।
महिला अधिकारियों की भर्ती कि शुरुआत होने की १५ वर्षों बाद भी महिला अधिकारियों को स्थायी सेवा कमीशन देने की नीति को लागू नहीं कर पा रहा है। इस संबन्ध मे सेना तीनों शाखाओं की अंतरिम नीतियों का दबाव भी काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार है। उदहरण के लिये भरतीय वायु सेना की अंतरिम नीति के अनुसार उसे अल्पकालीन सेव कमीशन प्राप्त अधिकारियों को स्थायी सेवा कमीशन प्रदान करने की आवश्यकता ही नहीं है और इसी नीति के चलते वे वर्तमान अल्पकालीन सेवा कमीशन प्राप्त अधिकारियों के स्थयी सेवा कमीशन प्राप्त कर्ने हेतु दिये गये आवेदन भी निरस्त कर देते हैं।
हालांकि वायु सेना की यह नयी नीति महिला एवं पुरुष अधिकारी दोनो के लिये लागू होगी परंतु ये महिला अधिकारियों को अधिक प्रभावित करेगी। सशस्त्र सेनाओं में महिला अधिकारियों का चयन अन्य स्थायी सेवा कमीशन प्राप्त अधिकारियों की तरह ही होता है। प्रशिक्षण में भी कोई रियायत नहीं बख्शी जाती। इनकी ज़िम्मेदारियां एवं कार्य भी अपनी ब्रांच के अन्य अधिकारियों के समान ही होते हैं। परंतु फ़िर भी इन्हें स्थायी सेवा कमीशन न दिये जाने का कोई स्पष्ट कारण नज़र नहीं आता।
सशस्त्र सेनाओं में महिलाओं की भूमिका पर आर्म्ड फ़ोर्सेज़ मेडिकल सर्विसेज़ के डायरेक्टर जनरल के द्वारा प्रस्तुत की गयी एक रिपोर्ट के अनुसार सेनाओं में महिलाओं पर यह रोक मुख्यतः लिंग भेद का ही परिणाम है। अपनी इस रेपोर्ट में उन्होने स्थानांतरण पृष्ठभूमि, अनुशासन, शिक्षा आदि बिन्दुओं को आधार बना कर सैनाओं में महिला अधिकारियों की भूमिका और उनकी स्थिति का मूल्यांकन किया।

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