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24.12.07

आखिर कौन हैं ये हीरालाल जी जिनको याद कर रहा है जबलपुर...?

आखिर कौन हैं ये हीरालाल जी जिनको याद कर रहा है जबलपुर...?
जन्म :-२४/१२/१९२७ बिन्दकी यू० पी०..... अवसान:- २३/०५/८८
पत्रकारिता के क्षितिज पर एक गीत सा , जिसकी गति रुकी नहीं जब वो थे ..तब .. जब वो नहीं है यानी कि अब । हर साल दिसम्बर की 24 वीं तारीख़ को उनको चाहने वाले उनके मित्रों को आमंत्रित कर सम्मानित करतें हैं । यह सिलसिला निर्बाध जारी है 1998 से शुरू किया था मध्य-प्रदेश लेखक संघ जबलपुर एकांश के सदस्यों ने । संस्था तो एक प्रतीक है वास्तव में उनको चाहने वालों की की लंबी सूची है । जिसे इस आलेख में लिख पाना कितना संभव है मुझे नहीं मालूम सब चाहतें हैं कि मधुकर जी याद किये जाते रहें ।मधुकर जी जाति से वणिक , पेशे से पत्रकार , विचारों से विप्र , कर्म से योगी , मानस में एक कवि को साथ लिए उन दिनों पत्रकार हुआ करते थे जब रांगे के फॉण्ट जमा करता था कम्पोजीटर फिर उसके साथ ज़रूरत के मुताबिक ब्लाक फिट कर मशीनिष्ट को देता तब जाकर समाचार पत्र छपता था । प्रेस में चाय के गिलास भोथरी टेबिलो पर कांच । वहीं खादी के कुरते पहने दो चार चश्मिश टाइप के लोग जो सीमित साधनों में असीमित कोशिशें करते नज़र आते थे । हाँ उन दिनों अखबार का दफ्तर किसी मंदिर से कमतर नहीं लगता था . मुझे नहीं मालूम आप को क्या लगता होगा {उस दौर के प्रेसों के प्रवेश-द्वार से ही स्याही की गंध नाक में भर जाती थी..}. को मेरा मंदिर मानना । अगर अब के छापाखाने हायटेक हों गए हैं तो मुझे इसमें क्यों एतराज़ होने चला ..... भाई मंदिर भी तो हाईटेक हैं । चलिए छोडें इस बात को "बेवज़ह बात बढाने की ज़रूरत क्या है...?"हम तो इस बात कि पतासाज़ी करनी है "आखिर कौन हैं ये -हीरालाल जी जिनको याद करता है जबलपुर "गुप्ता जी को जानने प्रतीक्षा तो करनी होगी ..... तब तक सुधि पाठक ये जान लें कि मधुकर जी जबलपुर की पत्रकारिता की नींव के वो पत्थर हैं जिनको पूरा मध्य-प्रदेश संदर्भों का भण्डार मानता था । सादा लिबास मितभाषी , मानव मूल्यों का पोषक , रिश्तों का रखवाला, व्यक्तित्व सबका अपना था , तभी तो सभी उनको याद कर रहें है.जन्म:- मधुकर जी का जन्म उत्तर प्रदेश के फ़तेहपुर जिले के बिन्दकी ग्राम में हुआ । जन्म के साल भर बाद पिता लाला राम जी को जबलपुर ने बुलाया रोज़गार के लिए । साथ में कई और भी परिवार आए जो वाशिंदे हों गए पत्थरों के शहर जबलपुर के । जबलपुर जो संतुलित चट्टानों का शहर है.... जबलपुर जो नर्म शिलाओं का नगर है । फूताताल हनुमान ताल सूपाताल मदताल देवताल , खम्बताल क इर्द गिर्द लोग बसते थे तब के जबलपुर में लालाराम जी भी बस गए खम्बताल के नजदीक जो अब शहर जबलपुर का सदर बाज़ार है।
मायाराम सुरजन जी ने गुप्त जी को १९९२ के स्मृति समारोह के समय याद करते हुए बताया की "१९५० में नव-भारत के दफ्तर में कविता छपवाने आए सौम्य से , युवक जिसने तत्समय छपने योग्य छायावादी रचना उन्हें सौंपी , रचना से ज़्यादा मधुकर उपनाम धारी गुप्ता जी ही पसंद आ गए. बातों -बातों मायाराम जी जान गए की गुप्ता जी बी॰ए॰ पास हैं . पत्रकारिता में रूचि देखते हुए उन्हें नवभारत में ही अवसर दिया
उनको चाहने वालों में मायाराम जी सुरजन ,दुर्गाशंकर शुक्ल ,कुञ्ज बिहारी पाठक , जीवन चंद गोलछा, पं.भगवतीधर बाजपेई,डॉ. अमोलक चंद जैन,मेरे गुरुदेव हनुमान वर्मा,विजय दत्त श्रीधर,अजित भैया[अजित वर्मा] श्याम कटारे , गोकुल शर्मा , फ़तेहचंद,गोयल,विश्व नाथ राव , फूल चंद महावर, निर्मल नारद , शरद अग्रवाल,पुरंजय चतुर्वेदी, माता प्रसाद शुक्ल आदि ने मिलकर उनकी पुण्य तिथि २३ मई १९९२ को स्मृति दिवस मनाया उन्हें याद किया .
फ़िर चाहने वालों ने मध्य प्रदेश लेखक संघ के साथ मिलकर मधुकर जी का जन्म दिवस स्मृति दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया . २४ दिसम्बर को हर साल शहर के लोग याद गुप्त जी के बहाने जुड़्तें ही हैं . परिजन उनकी याद में किसी वयोवृद्ध पत्रकार को बुलाकर सम्मानित करता है ।
उनकी स्मृति में १९९२....के बाद १९९७ से लगातार गुप्त जी के जन्म दिन पर लोग एकत्र हों कर सम्मानित करतें है उनकी पीडी के सम्मानित पत्रकारों को । इस क्रम में श्री ललित बक्षी जी १९९८,"बाबूलाल बडकुल १९९९,"निर्मल नारद २०००,"श्याम कटारे २००१,"डाक्टर राज कुमार तिवारी "सुमित्र"२००२"पं ० भगवती धर बाजपेयी २००३,"मोहन "शशि" २००४ "पं ० हरिकृष्ण त्रिपाठी एवं प्रो० हनुमान वर्मा २००५ को संयुक्त रूप से सम्मानित किये गए " अजित वर्मा २००६ "पं०दिनेश् पाठक २००७ हमारी इस पहल को माँ प्रमिला देवी बिल्लोरे ने नयी पीड़ी के लिए भी प्रोत्साहन के उदयेश अपने परिवार से सम्मान देने की पेशकश की और पिता जी श्री काशी नाथ बिल्लोरे ने युवा पत्र कार को सम्मानित करने की सामग्री मय धनराशी के दे दी वर्ष २००० से श्री मदन गर्ग २०००" हरीश चौबे २००१" सुरेन्द्र दुबे २००२ " धीरज शाह २००३" राजेश शर्मा २००४,माँ प्रमिला देवी के अवसान २८/१२/२००४ के बाद मेरे मित्रों ने इस सम्मान का कद बढाते हुए "सव्यसाची प्रमिला देवी अलंकरण " का रूप देते हुए निम्नानुसार प्रदत्त किये,
श्री गंगा चरण मिश्र २००५"
गिरीश पांडे २००६,"
विजय तिवारी २००७

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