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11.1.08

151 भड़ासी

बेहद विनम्रता से हम सूचित कर रहे हैं कि भड़ास की सदस्य संख्या अब 151 हो गई है। स्वागत है नए भड़ासियों का, इस ब्लागिंग की दुनिया में। हिंदी मीडियाकर्मियों के सबसे लोकप्रिय और सबसे बड़े कम्युनिटी ब्लाग में। नये वर्ष में आप सभी आनलाइन मीडिया और माध्यम से खूब जुड़ें, खूब लिखें, खूब सीखें-समझें और बूझें। इसके लिए मेरी शुभकामनाएं।

जिन नये साथियों ने ज्वाइन किया है और जो साथी पहसे से डटे हुए हैं, उनका हार्दिक आभार। पर अब भी लिखने वाले भड़ासियों की संख्या बेहद कम है। लोग जाने क्यों नहीं लिख रहे। यहां तो किसी क्वालिटी या किसी स्तर की बात ही नहीं की जा रही। हम तो आप जैसे हैं, वैसे गले लगाने को तैयार हैं। पर आप हैं कि टस से मस नहीं हो रहे। सिर्फ मूकदर्शक बने रहने, पढ़ते रहने में मगन हैं। कुछ भी। कुछ भी लिखिए।

हमें पता है आप कुछ भी लिखेंगे तो भी अच्छा लिखेंगे। अपने मन की बात लिखेंगे। कविता के रूप में। व्यंग्य के रूप में। कहानी के रूप में। संस्मरण के रूप में। खबर के रूप में। क्योंकि आप लिखने पढ़ने से जुड़े हैं। क्योंकि आपने लिखने पढ़ने से ही बढ़ना और बढ़ाना सीखा है। तो भड़ासियों भाइयो, आप सभी से अनुरोध है कि भड़ास पर न्यू पोस्ट डालिए। अपनी साहित्यिक और सांस्कृतिक समझ को व्यक्त करिये। ताकि आपके जीवन में कुछ और रंग जुड़ सकें। कुछ भड़ास निकले। कुछ मन हलका हो।

चलिए, एक बार फिर सभी नए भड़ासियों का स्वागत।

जय भड़ास
यशवंत

4 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

प्रभु,इतना तो बता दीजिए कि मन हलका करने का जो परम पुनीत मार्ग है कहीं वह किसी का मन भारी तो नहीं कर जाता है। हमारी सोच तो ऐसी है की भाई हम जो उल्टी भी करें तो किसी के खाने के काम आ जाए । हमारी भड़ास भी री-साइकल होकर राष्ट्र के उत्थान के काम आए ।

यशवंत सिंह yashwant singh said...

डाक्टर साहब, ये तो हमारे आप हैं ना कि हम कैसी भड़ास निकालकर मन हलका करते हैं। अच्छे लोगों की भड़ास राष्ट्र व समाज के काम आ जाती है, खराब लोगों की भड़ास भों भों मानकर भुला दी जाती है। अगर बेहतर लोग आगे नहीं आएंगे तो जाहिर सी बात है भों भों ही सुनाई पड़ेगी।

आप की बात से मैं सहमत हूं। मन हलका करने के चक्कर में किसी दूसरे का मन भारी नहीं किया जाना चाहिए।
यशवंत

यशवंत सिंह yashwant singh said...

पहली लाइन सुधार कर इस तरह पढ़ें-- ये तो हमारे आप पर है ना कि हम....

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

भाईसाहब आपकी भाषाई चूक को तो अनदेखा करा जा ही सकता है । यदाकदा विचारों की शाब्दिक अभिव्यक्ति में ऐसा हो जाना ही हमें सरल सादा बनाए रखता है ,बस अर्थ का अनर्थ न हो इतना बोध रहे ।