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8.1.08

आप मानें न मानें ।

हुज़ुर मैं अंशतः पद्मनाभ मिश्र जी के वक्तव्य से ज़रूर सहमत हूँ कि पूरे देश में ग़रीब भूख से मरते पर जितनी भयानक तस्वीर कल के दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित श्री अनिल प्रकाश जी के लेख ने उकेरी है उससे मैं क्या कोई बिहारी सहमत नही होगा...ठीक है बिहारी सबसे ज्यादा, कमाई के लिए राज्य के बाहर जाते हैं पर राज्य के अन्दर भूखमरी आंध्र या विदर्भ जैसी कभी न रही है न होगी...यह बात मैं किसी राजनीतिक दल के प्रवक्ता के रूप में नहीं बल्कि एक संवेदनशील राज्य के निवासी के रूप में कह रहा हूँ.....ग़रीबी है ...घोर ग़रीबी है पर भूखमरी उस स्तर की तो कतई नहीं ।
और, देखा जाए तो कुछ दिन पहले देश की राजधानी दिल्ली में तीन बहनों के भूखमरी के कगार पर पहुँचने की ख़बर उसी दैनिक में प्रकाशित हुई थी जहाँ से इस बहस ने जन्म लिया है। तो क्या इस ख़बर को पूरी दिल्ली के लिए सामान्यकृत किया जा सकता है...कतई नहीं न...फिर।
ख़ैर, ये मेरा महज बिहार प्रेम नहीं .... न मैं आत्ममुग्धता की ही स्थिति में हूँ पर एक पत्रकार होने की हैसियत से भी मेरे पास बिहार के किसी क्षेत्र से कोई पुष्ट प्रमाण (किसी भूखमरी की) कभी नहीं मिला । नर संहार - बाढ़ और अन्य विभीषिका में लोग जरूर मरते हैं......लोगो के पास तमाम अभाव हैं....शिक्षा का अभाव है...बेरोज़गारी भी भयंकर है..पर भूखमरी कतई नहीं ...कभी नहीं....आप मानें न मानें ।

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