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29.1.08

भदास....की भड़ास

काम की वयस्तता की वजह से कुछ दिनो से ब्लोग़ नही पड़ सका ! आज जेसे ही समय मिला तो ब्लोग़ पड़ने की
खुजली होने लगी ,और जल्दी-जल्दी भड़ास की जगह गुगल पर (भदास) लिखा गया !सर्च करने पर देखा तो
मां बहन की बहुत भद्दी सी गाली लिखी हुई प्रगट हुई ! सोचा भड़ास मे इतनी आग लेकिन दुसरे ही पल सोच का
निवारन भी हो गया !क्योकि यह अपने भडासी भाईयो का भड़ास नही था ! यह तो किसी मस्तराम की अपने
पुरे घरबार की (भदास) निकाली हुई थी ! और फ़िर जेसे स्कूल की एक घटना याद आ गई ! एक बार अपने से
सीनियर बच्चो को बतियाते सुना था ,जो कह रहे थे कि कल मस्तराम की स्टोरी पडी मजा आ गया ! मेरा दिल
भी हुआ मस्तराम की स्टोरी पडने का क्योकि मे कॉमिक्स बहुत पडता था !सोचा कोई कॉमिक्स टाईप बुक
होगी ! घर जा कर अपने भाई से बोला ,भईया अब मेरे लिये बुक स्टोर से मस्तराम की कहानी वाली बुक जरुर
ले के आना ! भाई पहले तो मुस्कराया फ़िर लगा डाट पिलाने ,उस दिन घर से डाट तो पडी ही साथ मे भाई ने
स्कूल के प्रिंसीपल से भी सब बच्चो की शिकायत की !एक बार बचपन फ़िर लोट आया था

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

गुलशन जी,भड़ास के प्रति आपकी चैतन्यता देख कर प्रसन्नता हुई कि आप मिलते-जुलते नामों को भी देख लेते हैं । भड़ास मे आग तो इतनी है कि ज्वालामुखी कुछ समय बाद हमसे अपना "इग्नीशन" शुरू करने के लिये आग मांगेंगे किन्तु ये आग विचारों की है और रचनात्मक है हवन कुंड की अग्नि की तरह ;मस्तराम ने आपको बचपन याद दिला दिया तो कम से कम उनका एक बार भड़ासी स्टाइल मे धन्यवाद तो कर दीजिए....
जय भड़ास

Anonymous said...

धन्यवाद डाक्टर सहाब.
आप अपने विचारो की आग ज्वालामुखी की बजाये
भारत के नवयुवको मे भर सको तो शायद हमारे
शहिद क्रान्तीकारियो को चेन की नीद आ जाये