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14.1.08

एक आदमी की हत्‍या का प्रयास और मुंबई की प्रेस

यह शहर हादसों का शहर है। यहां कब क्‍या हो जाए, कुछ भी कहना मुश्किल है। जैसे आज सुबह मेरे ऑफिस के करीब वाले मॉल में एक आदमी को चाकू घोपकर मारने का प्रयास किया जाता है और कुछ ही देर में यहां पुलिस के साथ प्रेस वालों का जमावड़ा खड़ा हो जाता है और यह जमावड़ा इस पोस्‍ट को लिखने तक वहीं पर खड़ा है। इसमें आईबीएन7, आज तक, स्‍टॉर न्‍यूज से लेकर स्‍थानीय चैनल वाले तक शामिल हैं। कुछ अखबार वाले भी हैं लेकिन उन्‍हें पहचाना थोड़ा मुश्किल है। सब अपने अपने ढ़ंग से स्‍टोरी बनाने में जुटे पड़े हैं।

मामला यह है कि मैग्‍नेट मॉल के सुपरवाइजर की हत्‍या का प्रयास किया जाता है और कारण यह था कि उसने अपने एक पूर्व कर्मचारी को वेतन नहीं दिया था। अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर इतनी छोटी सी वजह से हत्‍या कैसे की जा सकती है लेकिन यह प्रयास हुआ है। बात देखने में भले ही छोटी लगे लेकिन यहां हमें यह देखना होगा कि तीन हजार रुपए की पगार पर काम करने वाले उस व्‍यक्ति के घर की माली हालत कैसी होगी। उसका एक परिवार होगा, जिसमें उसकी पत्‍नी, मां बाप और बच्‍चे होंगे। ऐसे में यदि तीन हजार रुपए यानि उसे पगार नहीं मिले तो उसके घर में कई दिनों तक चूल्‍हा नहीं जला होगा। तभी तो उसे इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा होगा। मैं उस व्‍यक्ति के अपराध को सही नहीं ठहरा रहा हूं लेकिन मुंबई में लाखों की तादाद में ऐसे लोग हैं जो कि हर रोज दो जून की रोटी के लिए लड़ते हैं। इनके सामने जिंदा रहने का सकंट है। हजारों की तादाद में हर रोज इस शहर में आते हैं। कुछ यहीं अपने अस्तिव के लिए लड़ते हैं तो कुछ वापस अपने गांव या शहर चले जाते हैं। ऐसा है यह शहर। वाकई मुंबई हादसों का शहर है।

1 comment:

Sanjeet Tripathi said...

इस कारण को सिर्फ़ मुंबई की सीमा में नही बांधा जा सकता! यह एक सार्वभौमिक कारण बन चुका है।

नक्सलवाद जिसका हम इतना विरोध करते हैं वह ऐसे ही कारणों से जन्मा है!