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15.1.08

हमसफर अब गाँव चल

हवाऐं तल्ख हो चुकीं,फिजां में कुछ घुटन सी है,
ये शहर अब मेरा नहीं ,हमसफर अब गाँव चल ।
कत्ल रिश्तों का हर पल यहाँ,दहशत हर साँस में,
इंसानियत को दफना के, हमसफर अब गाँव चल ।
दोस्ती गुम है यहाँ,वफा भी है कुछ अजनबी,
हर शख्स तन्हा है यहां, हमसफर अब गाँव चल ।
रोशनी यहाँ कैद है,उजाले बदिंशो मैं है,
सूरज दिखेगा खेत से, हमसफर अब गाँव चल ।
एक रंग के खून को, कई नाम देते हैं यहां,
मंदिर औ मस्जिद मैं अब खुदा नहीं, हमसफर अब गाँव चल ।
दूध का कर्ज था गाँव में माँ का मेरी,
वो माँ अब मर गई, हमसफर अब गाँव चल ।
स्कूल में सुना था ये,वतन अब आजा़द है,
गिरवी रखी ज़मीं लेने, हमसफर अब गाँव चल ।
अनुराग अमिताभ

1 comment:

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर ।
घुघूती बासूती