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29.1.08

जुगाड़ की इन्तेहा

देश भर में फिर एक बिना सबब बहस छिड़ी हुई है, इस बार पहली बार हमारे नेता और महान मीडिया इस बात पर चोंच लड़ा राहे हैं की भारत रत्न किसे दिया जाए। दुर्भाग्य की बात है कि चर्चा इस बात के लिए नही है कि यह सम्मान अपनी गरिमा के अनुकूल ही दिया जाए बल्कि इस बात पर है कि यह किसी अपने आदमी को मिल जाए। जाहिर है जुगाड़ संस्कृति यहाँ तक आ पहुंची है कि देश का सर्वोच्च सम्मान भी इस से अछूता नही रहा।
जहाँ एक ओर भारतीय जनता पार्टी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई के नाम पर शोर मचा रही है, मायावती ने कांशीराम के नाम पर चीखना चिल्लाना चालू कर दिया है, असली विपक्ष यानी कि वामपंथी ज्योति बाबू के नाम पर रुदाली बन गयी है।
इस पूरे शोर शराबे में कहीं ना कहीं इस सम्मान कि गरिमा को तो ठेस पहुंची है बल्कि इस सम्मान के असली हकदारों के नाम भी धुएं मे खो गए हैं। यह केवल दुख की नहीं बल्कि शर्मसार होने का वक़्त है। हमारे नेता संसद और विधानसभाओ में जूते चप्पल तो चला ही चुके हैं अब बस यही सब होना बाकी था कि भारत रत्न के लिए भी जुगाड़ लगने लगा है। बेहतर होगा कि भारत के सारे नेताओ को एक बार संयुक्त रूप से भारत रत्न दे दिया जाए और साला बवाल ही ख़त्म हो जाए ..... कम से कम ना तो रोज़ रोज़ इन चू..... न्यूज़ चैनलो पर भारत रत्न को लेकर वाहियात बहस सुननी पड़ेगी कि १ लाख की कार के लिए रतन टाटा और फरारी बिना कर दिए मंगाने पर सचिन को यह उपाधि मिल जाए !
वैसे इस तो एक बार फूलन देवी के लिए नोबेल की माँग भी हम कर चुके हैं..... तो देश के सारे बाहुबली सांसद और विधायको को ही................... क्यो सालो भड़क कहे रहे हो ? कई राज्यों में सरकारें ५ साल उन्ही के दम पर चलती हैं ....... मुख्..... और शहा...... का नाम भूल गए क्या !!
खैर भडास निकाल ही रहा हूँ तो उगल ही डालू मेरे पिताजी ने सरकारी नौकरी के ३०-३५ साल ईमानदारी से काट दिए ...... कई अभाव भी रहे पर बेईमानी नहीं की और ऐसे कई करोड़ लोग हैं मुल्क में !!!
तो क्यो ना इस बार भारत रत्न भारत के उस आम आदमी को न दे दिया जाए जो वाकई उसका हक़दार है ?

क्यों सालो सोच क्या रहे हो मुँह में क्या ....... ?
बोलो ???????

5 comments:

यशवंत सिंह yashwant singh said...

उचित भड़ास निकाली है मयंक भाया आपने....लगे रहिये...
यशवंत

मयंक said...

shukriyaa Yashvant jee !
aap sab bade bhadasiyo ka aashirvaad chahiye`!

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मयंक भाई,आपने भड़ास निकालने में सेंसर किया अच्छी बात नहीं है ;उसे उगल कर बाहर निकाल दीजिए वरना तकलीफ़ बनी रहेगी जैसे किसी को उल्टी हो और वह कुछ अंश फिर मुंह में ही रख कर वापिस निगल ले । मेरे भाई,जब भड़ास पर आ ही गए हो तो चू...... को पूरा करके मन के विकार निकाल कर मन और आत्मा का बोझ उतार कर भड़ास पर डाल दीजिए ।
जय भड़ास

Ankit Mathur said...

डाo साहब सही कह रहे हैं।
क्यों रोकते हो मयंक जी, जब लिख ही
रहे हो तो ज़ाहिर सी बात है कि गांड मे गूदा है
अगर है तो उसे सामने आने दो खुल कर।

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

अंकित भाई ने जो बात कही उस पर एक बब्बर "शेर" मन में आ रहा है तो आप लोग जरा इज्जत से इरशाद-शमशाद और ना जाने क्या-क्या कह कर स्वागत करिए..
गांड मे नहीं है गूदा ,
तो क्यों गंगा में कूदा ???
और ये गंगा हमारी भड़ास के रचनात्मक विचारों की है ।
जय भड़ास