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12.1.08

लालूओं और नितीशों के प्रवक्ता बनने का गुरुमंत्र...

मेरे 7 जनवरी के पोस्ट के जवाब में मुझे लालूओ और नितीशो के प्रवक्ता बनने की नसीहत दी गयी है जो काफी काबिलेगौर आफर है और इसका क्या 'तरीका' हो सकता है यह नसीहतदाता से संपर्क कर जरुर पता करने की कोशिश करुंगा। खैर, बात बिहार के भुखमरी की हो रही थी, और उसमें मेरा एतराज हिंदुस्तान में छपे लेख के उस अंश से था जिसमें यह कहा गया है कि बिहार के अस्सी फीसदी लोगों के घर एक ही सांझ चुल्हा जलता है। मै यहां भोजन के क्वालिटी या कौलोरी की बात नहीं कर रहा। 2001 के जनगणना के मुताबिक वर्तमान बिहार की जनसंख्या 8 करोड से कुछ ही ज्यादा है और 2007 तक उसके 10 करोड तक होने की उम्मीद है। एक अनुमान के मुताबिक बिहार से लगभग 30 प्रतिशत से ज्यादा आवादी का पलायन हुआ है, तो कुल मिलाकर बिहार में 6 या साढे छह करोड लोग रहते है। अब अगर उसमें से अस्सी फीसदी लोगों के घर यानी कि चार करोड अस्सी लाख लोगों के घर एक ही सांझ चुल्हा जलता है तो वाकई यह सवाल संसद से लेकर कई अन्य मंचों पर उठना चाहिए था। अगर एसा नहीं है तो वाकई कहीं शोध में भयंकर त्रुटि है। पहली ही नजर में यह आकडां आश्चर्यजनक, अतार्किक और काल्पनिक लगता है। सरकारी आंकडे भी(आपको बिहार के केस में भी इसे मानना होगा,क्योंकि दूसरे राज्यों के बारे में भी हम इन्हीं आंकडो की सहायता लेते है) भी बिहार में उस तरह के भूखमरी से मौत की बात नहीं करते जैसे हालात दूसरे राज्यों में है। और मेरा मतलब भूखमरी से हुई मौत के खास संदर्भ से था। और किसान आत्महत्या तो खैर बिहार में लगभग न के बराबर है।
एक भाईसाब ने कहा है कि ये बडे दुख की बात है कि मै बिहारी हूं और मुझे बिहार के बारें में कुछ भी नहीं मालूम और यह भी कि मैं ड्राइगरुम टाइप चिन्ता व्यक्त कर रहा हूं। उनके इस वाक्य से पता नहीं चलता कि उन्हें मेरे बिहारी होने पर दुख है या मेरी अज्ञानता पर या मेरे पास ड्राइंगरुम होने पर। अगर उन्हे मेरे बिहारीपन या मेरे पास ड्राइंगरुम होने पर दुख है तो माफ किजिए इसमें मै ज्यादा कुछ नहीं कर सकता , अगर उन्हे मेरे अज्ञानता पर दुख है तो मैं उनसे जरुर संपर्क कर ज्ञान का सर्टिफिकेट लेने की कोशिश करुंगा।
रही बात बिहार से पलायन की तो मैंने खुद ही अपने पोस्ट के अंत में इसका उल्लेख किया है और मैंने कभी ये नहीं कहा कि बिहार पांडिचेरी या गोआ वन गया है। अलवत्ता बिहार में अगर कुछ सकारात्मक हो रहा है तो इसके स्वागत करने से सिर्फ इसलिए नहीं हिचक जाना चाहिए कि मिस्टर एक्स, वाई या जेड को यह लालू या नितीश के प्रवक्ता बनने जैसा लगता है। अगर चश्मे का शीशा ही धुंधला हो तो हर चीज बदरंग नजर आती है।

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