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15.1.08

टीस

प्रीत हृदय के दर्पण से अलसाती है
धुंधले जीवन गीतों से शरमाती है

मन के संग संगुणित तारों की उलझन
उलझ उलझ कर जीवन उलझती है

सुन्दरता की कुटिल चांदनी चेहरों की
साया बन कर सबको भरमाती है

अधरों की अठखेलियाँ आगाह करें
मेरे जाने के पीछे वो बतियाती है

तू तो मेरा अपना है फिर दूर खड़ा क्यों
क्या ये बातें तुछ्को भी आती हैं

हर स्नेह के साथ द्वार पे स्वार्थ खड़ा है
टीस शूल सी अब बढ़ती जाती है

स्वप्रेम तिवारी

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