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5.1.08

पांच प्रतिशत से बढे पाठक चालीस प्रतिशत... है न कमाल का पेज

बाजार मीडिया की जरूरत है या मीडिया बाजार की जरूरत इस बहस में न पढते हुए मैं कुछ नए प्रयोगों जो सफल भी हुए हैं कि ओर आपका ध्यान खींचना चाहता हूं. अब सही पद होगा कुछ नए सफल प्रयोगों की ओर ध्यान.... अशीष ने हाल ही में जागरण के पहले कारोबारी अखबार निकालने के दावे की हवा निकालते हुए कुछ तथ्यों को रखा था... मैं हाल ही में दैनिक भास्कर द्वारा किए गए अखबारी दुनिया के एक बेहतरीन प्रयोग पर बात कर रहा हूं.... लुधियाना में भास्कर की लांचिंग कई मायनों में अनूठी रही. शानदार रही जानदार रही. बाकी चालू अखबारों के फाख्ते तो पहले ही उडे हुए थे.. 15 दिसंबर को पेज सात और आठ पर माई बिजनेस ने भी पत्रकारीय दुनिया को यहां चौंकाया.... यह था पिंक सीट पर अखबारों के आम पाठक से सबसे अधिक दूर रहने वाले बाजार को लोगों की भाषा में उनके कंसर्न का मैटर देना... जिसे संपादक राजीव सिंह जी ने नाम दिया- माई बिजनेस... माई बिजनेस यानी गुरविंदर कौर का बिजनेस... पिंकू मल्होत्रा का बिजनेस... जेब में बाजार की सबसे जरूरी चीज रखने वाले नरेश नाथ बाजबा के इस पेज में टारगेट किया गया था उस 28 से 40 वर्ष की उम्र के युवा को जो कमाता है खाता है जोडता है और अपनी पूंजी को बढाकर सपने देखता है बेहतर लाइफ के शानदार लाइफ के.. जिसे शेयर की समझ नहीं म्यूचुअल फंड उसकी डिक्शनरी का हिस्सा नहीं लेकिन वह इन्हें जानना चाहता है पढना चाहता है अपनी भाषा में अपनी शब्दावली में.... तीन घंटे की माथा पच्ची के बाद कुछ चीजें निकली. दिल्ली, भोपाल, इंदौर, जयपुर के अलावा चंडीगढ, अमृतसर, जालंधर में बैठे कामर्स के साथियों के साथ आइडिया शेयर किया... कुछ ने सराहा कुछ ने मीन मेख निकाली.. सराहने वालों को धन्यवाद देकर मीन मेख निकालने वालों को उकसाया गया... यह नहीं तो क्या ऐसे नहीं तो कैसे... की शक्ल में सवाल तैरे सवालों में 30 साला अनुभव भी था जबावों में तीन साला जोश था... प्रश्नवाचक चिन्हों में शुरुआत करनेवालों की हुस्ट थी तो चीजें तरतीब से रखने में पक चुके बालों की उम्र थी.... दादा और शशि जी ने अगले पांच दिनों तक सिर्फ और सिर्फ इसी के ले आउट पर काम किया.... हैडर को एप्रूवल के लिए भोपाल भेजा तो टका सा जबाव मिला यह नहीं चलेगा... फिर शुरु हुई कवायद.... मैटर के पांच सेट तैयार किए गए... हर वाक्य पर माथा पच्ची हर शब्द का पर्याय खोजने की थकाऊ लेकिन मजेदार प्रक्रिया.... और फिर सामने आया भास्कर लुधियाना के यूएसपीज में से एक माई बिजनेस.... 15 दिसंबर को अखबार लोगों तक पहूंचा और विशेषज्ञों के अनुसार अब तक हिंदी अखबारों के बाजार पेज की रीडरशिप जो 5 से 7 प्रतिशत होती थी माई बिजनेस ने 40 फीसदी का आकडा छू लिया है.... हैरत होगी उन लोगों को जो मानते हैं कि आर्थिक जटिलताएं अखबार की सबसे निचली संपादकीय विधा हैं.... हां मानता हूं कि इसमें लुधियाना के इंड्रस्टीयल मिजाज का भी बढा हाथ रहा है.... चलिए आप भी देखिए कुछ पन्ने और देखिए इस प्रयोग की एक बानगी....... पेज देखने के लिए यहां चटकारा लगाएं

सचिन श्रीवास्तव

दैनिक भास्कर, लुधियाना

2 comments:

Ashish Maharishi said...

सचिन भाई बधाई हो भास्‍कर के साथ आपकी भी तरक्‍की हो आशीष महर्षि

राजीव जैन said...

बधाई इस विधा के दर्शन कराने के लिए

और ये लिंक तो ई पेपर पर जाकर अटक जाता है, हो सके तो इस पेज के दर्शन तो कराओ