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16.1.08

इश्क,जंग और अँगुली करने में सब जायज है.....?

अंगुली करने का शगल सारे विश्व की सभ्यताओं में पुरातन काल से ही बो दी गयी हैं. लोग अंगुली करते वक्त "केवल अंगुली करो : जंग इश्क और अंगुली करने में सब जायज हैं...के सिद्धांत का विशेष रूप से ख़याल रखा जाता हैं . इस बात का ध्यान भले न रखा जावे की अंगुली कहाँ की जा रही हैं. मेरी एक चतुरी सहकर्मी अपनी इमेज बनाने के चक्कर में दूसरों की इमेज अपनी अंगुली पर ऊगे शूर्पनखा पैटर्न के नाखून से खुरचतीं नज़र आतीं हैं . तो वहीं शायद आपका पड़ौसी शायद आपके यश पर अंगुली उठा रहा हो इसमें नया कुछ नहीं ये तो आम बात हैं...आदि काल से चली आ रही इस परम्परा को बदलने की कोशिश भी मत कीजिए भाई...!वह दिन दूर नहीं कि "गाँव-गाँव, गली-गली इस परम्परा की गहरी पैठ" को देखते हुए सरकारें अपने-अपने राज्यों के,शिक्षा सचिवों,शिक्षाविदों,की बैठकें बुला कर "अंगुली करो पाठ्यक्रम" को अन्तिम रूप देने को कहे. अपने पड़ौसी राष्ट्र पाक को ही लीजिए वहाँ सियासत के लोग काश्मीर को लेकर जब-तब अंगुली करते नज़र आतें हैं. तो अंतर्राष्ट्रीय दादा अमेरिका तो हर देश के हर मामले में अंगुली करनें से चूकता नहीं ।अब एक्स को ही ले भाई साहब बड़े महाजन आदमीं है . उनके बराबर का महाजन पूरे जनपद में नहीं . फत्ते भाई ने बताया कि वे अपना जीवन बी०पी०एल० का गेहूँ बेच के चला रहे हैं.... बीवी नेतागिरी में है पता नहीं विरोधियों को क्या हुआ कि कर दी अँगुली बस बना-बनाया मौसम टूट गया .इधर जी हजूरी से फुरसत नहीं मिलती तब कहीं जाकर मिलता है सुख उधर सारी कालोनी के सूखी सीट पे बैठने वाले बाबूओं की औरतें हमारी जोरू पे तानाकशी से बाज़ नहीं आ रहीं हैं .अब साहब मुझे इतना पसंद करते है तो मेरे सहकर्मी अपनी औरतों के ज़रिए अँगुली क्यों करते हैं। सब सब जानते हैं....इश्क जंग और अँगुली करनें में सब जायज है। सो भाई हम भी चुपचाप सह ही रहे हैं....!अब श्रीमान वाई को ले लें वो जन सेवक हैं लोग उनकी जन सेवा को दलाली कह कर अँगुली करतें हैं...! अरे गाँव-खेड़े से आम जनता का काम लेकर आतें हैं "बाइक का पेट्रोल , नाश्ता पानी का खर्च अगर उनने ले लिया तो क्या गलत काम किया.......?"लोगों को हर जगह बकनर की तरह अँगुली करने की आदत सी हों गयी है । अब "भारत रत्न सम्मान "की बात चली तो अँगुली , राखी सावंत हारी तो अँगुली , इश्मीत जीता तो अँगुली , भाई.... माना कि अँगुली करने में सब जायज़ है फिर भी इसके कुछ नियम होतें है जैसे[०१]आज के दौर में दांयाँ बाँया देख कर अँगुली करना चाहिए।[०२]अनजान जगहों में अँगुली न करें[०३]समय और गृह दशा देख कर ही अँगुली करें

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मुकुल दादा,आप तो विचारों के डायनामाइट्स की फ़ैक्टरी हैं । हमारे जैसे लोग आपके विचारों की शाब्दिक अभिव्यक्ति कर-करके वाहवाही लूटेंगे इसलिये
शाब्दिक अभिव्यक्ति से कापीराइट हटा लीजिये । उत्तम स्वास्थ्य की शुभकामनाएं ।
सप्रेम प्रणाम

बाल भवन जबलपुर said...

मुझे कोई आपत्ति नहीं भाई ....! आप पूरा उपयोग कीजिए मुझे खुशी होगी .
आपने आलेख पसंद किया मेरा सौभाग्य है .
मेरा विनम्र आभार स्वीकारिए .