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29.1.08

हम चुप हैं ।

बर्तन होटल पर धोता है ,फटे कपड़ो में सोता है
वो किसी और का बेटा है ,इसलिए हम चुप है।
सड़को पर भीख मांगती है ,और मैला सर पे है।
वह बहन किसी और की है ,इसीलिए हम चुप है।
बेटी की इज्जत लुट जाने पर भी वो बेबस कुछ न कर पाती है ।
वो माँ है किसी और कि इसीलिए हम चुप हैं ।
दिन भर मजदूरी करता है, फिर भी भूखा सोता है ।
किसी और का भाई है वो ,इसीलिए हम चुप है ।
बेटी का दहेज जुटाने को ,कितने समझोते करता है
वह किसी और का बाप है ,इसलिए हम चुप हैं ।
चुप रहना हमने सीख लिया है ,बंद करके अपने होंठो को ।
और जीना हमने सीख लिया है ,बंद कर के अपने होंट को ।
लकिन याद रखो दोस्तों ,एक ऐसा दिन भी आयेगा ।
अत्य्चार हम पे होगा ,और तब हमसे बोला न जाएगा ।
क्योंकि हम चुप हैं ।
गौतम यादव , भारतीय जनसंचार केन्द्र ,नई देहली

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

आपने जो लिखा है वह सत्य है लेकिन उपाय तक पहुंचना ही होगा ,आवाज़ उठाइये..
जय भड़ास

Satyendra PS said...

बेहतर.. उत्कृष्ठ. यह जज्बा बनाए रखें। सामान्यतया ये विचार लोग बहुत जल्दी भूल जाते हैं।