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15.1.08

हिंद अपना है कहाँ !

hind के जवान हम
हिंद के जवान तुम
हिंद अपना है कहाँ
धुन्द्ते निशान हम ...हिंद के जवान हम...

ढूंढे ऊँचे महलों मे या ढूंढे गली झोपडों में
या के झांके अपने दिल में खोल के किवाड़ हम
हिंद के जवान हम ...
विदेशों कि मंडियों में बेचे अपनी सभ्यता
बूढे आदर्शों की झुर्रियां छुपाये हम
हिंद के जवान हम...
धधकती चिताओं से जलते रहे भाईचारे
मरती भावनाओं की अस्थियाँ सजाये हम
हिंद के जवान हम...
रूढियों की खाइयां हो
जातियों के घेरे हों
वजूद अपना खोजता हर कोई हर कदम
हिंद के जवान हम...
दफ्तरों मे कुर्सियाँ हो ज्यादा और मेज़ कम
हरेक बादशाह क्या सर क्या मैडम
हिंद के जवान हम ...
और अर्ज़ है ....
जब लहू लुहान हिंद मुख
स्वाधीनता में क्या है सुख
दो कदम आगे बढाये चार पीछे जाये हम
हिंद के जवान हम ....
विवेक मृदुल

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