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6.2.08

"अलख निरंजन"

"अलख निरंजन"...

***राजीव तनेजा***


"अलख निरंजन"...
"बोल. ..बम....बम चिक बम"....
"अलख निरंजन....टूट जाएं तेरे सारे बंधन"कह बाबा ने हुँकारा लगाया और इधर-उधर देखने के बाद मेरे साथ वाली खाली सीट पर आ कर बैठ गया"
"पूरी ट्रेन तो खाली पडी है लेकिन नहीं......सबको इसी डिब्बे में आ के मरना है"बाबा के फटेहाल कपड़ों को देखते हुए मैँ बड़बड़ाया
"सालों को!... मेरे पास ही खाली सीट नज़र आती है"...
"कहीं और नहीं बैठ सकता था क्या?"मैँ परे हटता हुआ मन ही मन बोला
"कहाँ जा रहे हो बच्चा?" मेरी तरफ देखते हुए पूछा
"पानीपत..."मेरा अनमना सा संक्षिप्त जवाब था
"डॆली पैसैंजर हो?"
"जी!.."मेरा बात करने का मन नहीं हो रहा था
"जानता जो था कि सब साले!..एक नम्बर के ढोंगी...पाखंडी हैँ"सो!..दूसरी तरह मुँह करके खिडकी से बाहर ताकने लगा
"काम क्या करते हो?"
"रैडीमेड दरवाज़े खिडकियों का काम है"ना चाहते हुए भी मैँने जवाब दिया
"कहाँ इस कबाड के धन्धे में फँसा बैठा है वत्स...?"...
"तेरा चेहरा तो कोई और ही कहानी कह रहा है"मेरी दुखती रग पे हाथ रखने की कोशिश थी ये .....
"तेरे माथे की लकीरें बता रही हैँ कि राज योग लिखा है तेरे भाग्य में"...
"राज करेगा तू!..राज"
"राज करेगा तू!..राज"वाली बात सुन आस-पास बैठे यात्रियों का ध्यान भी बाबा की तरफ हो लिया"
"मैँ मन ही मन हँसा कि सही ड्रामा है पब्लिक को फुद्दू बनाने का"...
"किसी एक को लपेट लो....बाकि अपने आप खिंचे चले आएंगे"
"यहाँ साले!...खाने कमाने को नहीं है और ये राज योग बता रहा है"...
"हुह!..."
"वही पुराने घिसे-पिटे डॉयलाग...कोई नई बात बताओ बाबा!..."मैँ बोला
"पता नहीं कब आएगा ये राजा वाला योग?"मैँ मन ही मन बुदबुदाया
"अपना हाथ तो दिखाओ ज़रा".....
"ये!...ये नहीं...दाँया वाला"
"मैँने भी पता नहीं क्या सोच हाथ आगे बढा दिया"
"तेरे हाथ की रेखाएं बता रही हैँ कि तेरी आयु बडी लंबी है".....
"पूरे!...पूरे सौ साल जिएगा"
"ये तो मालुम है मुझे...
सभी कहते हैँ कि शैतान का नाम लो और हाज़िर"मेरा जवाब था
"हुह!...यहाँ साला मन करता है कि अभी ट्रेन से कूद पडूँ और...ये मुझे लम्बी उम्र का झुनझुना थमाने की जुगत में है"मैँ मन में विचरता हुआ बोला
मेरे चेहरे पे आते-जाते भावों को देख बाबा बोला"परेशान ना हो बच्चा!...जहाँ इतना सब्र किया है वहाँ दो-चार साल और ठण्ड रख"...
"राम जी भली करेंगे"
"चिंता ना कर...तेरा अच्छा समय आने वाला है"
"सही झुनझुना थमा रहे हो बाबा"...
"यहाँ खाने-कमाने को लाले पडे हैँ और आप हो कि दो चार साल बाद का लॉलीपाप थमा रहे हो कि....
ना रुकते बने और ना ही चूसते बने" मुझसे रुका ना गया
"यहाँ चिंता इतनी है कि सीधे चिता की तैयारी चल रही है"...
"प्यासा प्यास से ना मर जाए कहीं इसलिए मुँह में पानी आने का जुगाड बना दिया कि बेटा!..इंतज़ार कर"
"अभी तक अच्छा समय आने का इंतज़ार ही तो कर रहा हूँ और क्या कर रहा हूँ?"मैँ बुदबुदाया
"ना जाने कब आएगा अच्छा समय"मैँने उदास मन से सोचा
"आज ये बाबा कह रहा है कि दो-चार साल इंतज़ार कर...
कल को कोई दूसरा बाबा भी यही डायलाग मार देगा"मैँ बड़बड़ा उठा
"फिर दो-चार साल और सही"
"बस यूँ ही कटते-कटते कट जाएगी ज़िन्दगी"मैँ अन्दर ही अन्दर ठण्डी आह भरता हुआ बोला
मेरी देखादेखी और लोग भी हाथ दिखाने को जुट गए कि "बाबा!.. मेरा देखो....बाबा!..पहले मेरा देखो"....
"देख बाबा देख!...जी भर के देख...आँखे फाड़ फाड के देख"
"सभी को लॉलीपाप चाहिए....थमा दे"...
"तुम्हारे बाप का क्या जाता है"मैँ मुँह फेर आहिस्ता से हँसता हुआ बोला
"शश्श!....टी.टी आ रहा है"जिलानी साहब पर नज़र पड़ते ही मैँने कहा ....
"टी.टी का नाम सुनते ही मजमा लगाई भीड़ कब छंट गई पता भी न चला"
"जिलानी साहब अपने दल बल के साथ आ पहुँचे थे"....
"टिकट?.....टिकट दिखाइए"
"मैँ...?"मेरे साथ बैठा बन्दा सकपका गया
हाँ!...तुम...तुम्हीं से बात कर रहा हूँ"
"सर!...एम.एस.टी".....
"सुपर चढा है?"
"जी!..जी सर".....
"दिखाओ".....
"एक मिनट!...एक मिनट सर"...
"लीजिए सर"....
"हम्म!...यहाँ साईन कौन करेगा?"
"निकालो तीन सौ बीस"....
"सर!..गल्ती से रह गया साईन करना"...
"अभी कर देता हूँ"...
"पहले तीन सौ बीस निकालो!...बाद में करते रहना साईन-शाईन"
"प्लीज़ सर!...इस बार छोड दीजिए...प्लीज़"...
"आईन्दा ध्यान रहेगा"
"देख लो!...इस बार तो छोडॆ देता हूँ"...
"अगली बार अगर सुपर चढा नहीं मिला तो पूरे तीन सौ बीस तैयार रखना"
"जी सर!..."
"बहुत दिन हो गए तुमसे भी इंट्रोडक्शन किए हुए"मेरी तरफ ताकते हुए जिलानी साहब बोले
"जी....जी सर"
"वो!.. मेरे उस काम का क्या हुआ?"जिलानी साहब पलट कर पीछे आते अनुराग से बोले
"जी वो...कैंटीन बन्द थी ना सर छब्बीस जनवरी के चक्कर में"...
"एक...एक दो दिन में ला दूंगा सर"
"ध्यान रखना अपने आप...मेरी आदत नहीं है बार-बार टोकने की"
"जी!....जी सर"
"आपका टिकट?"जिलानी साहब 'मलंग बाबा' की तरफ मुखातिब होते हुए बोले...
कोई जवाब नहीं....
"आपसे पूछ रहा हूँ जनाब!...टिकट दिखाइए"
"हम?..हम बाबा हैँ"..
"फिर?"...
"क्या करूँ?"जिलानी साहब ने तलखी भरे स्वर में कहा
"हम इस मोह-माया के बन्धनों से आज़ाद हैँ...बच्चा...."
"अच्छा?"...जिलानी साहब भी तुक मिलाते हुए बोले...
"ये बेफाल्तू की बातें छोड़ो...सीधे-सीधे टिकट दिखाओ"
"मैँने कहा ना टिकट दिखाइए"जिलानी साहब तेज़ आवाज़ में बोले
"किस से?...किस से टिकट माँग रहे हो बच्चा...?"
"आपसे"...
"जानते नहीं!...हम कौन हैँ?"
"आप जो कोई भी हैँ...मुझे मतलब नहीं ...बस आप!..टिकट दिखाएं"
"फाल्तू बात नहीं"...
"अगर है तो दिखाते क्यों नहीं?"मैँ भी भडक उठा
"नहीं है तो तीन सौ बीस रुपए निकालें"जिलानी साहब रसीद बुक संभालते हुए बोले...
"हाँ टिकट!...टिकट तो नहीं है हमारे पास"...
"कभी लेने की ज़रूरत ही नहीं समझी होगी ना?"मैँ बोल पडा
"किसी ने कभी रोका ही नहीं हमें कभी"...
"आज तो रोक लिया ना?"टी.टी गरम होता हुआ बोला
"आप सीधी तरह से पैसे निकालें....इतना वक्त नहीं है मेरे पास कि हर किसी ऐरे-गैरे के मत्थे लगता फिरूँ"
"वक्त तो बच्चा!..सचमुच तेरे पास नहीं है"बाबा जिलानी साहब के माथे को गौर से देखते हुए शांत स्वर में बोले
"शनि तेरे सर पर मंडरा रहा है...राहू केतु पे सवार चला आ रहा है"...
"जल्दी से उपाय कर ले!..वर्ना पछताएगा"
"जो होगा देखा जाएगा...आप बस जल्दी से पैसे निकालो...मुझे पूरी गाड़ी चैक करनी है"जिलानी साहब की आवाज़ सख्त हो चली थी....
"टी.टी साहब अड़ के खडे हो गए कि इस बाबा से पैसे वसूल कर के ही रहेंगे"
"बहस खतम होने का नाम ही नहीं ले रही थी"
"ना बाबा मानने को तैयार ना जिलानी साहब झुकने को तैयार"
"और आग लगाने को तो मैँ काफी था ही"...
"मज़ा जो आता था इस सब में"
"तमाशा देखने वालों की भीड़ बढती ही जा रही थी"
"एक टिकट में दो-दो मज़े जो मिल रहे थे"...
"सफर का सफर और ....एंटरटेनमैंन्ट की एंटरटेंनमैंन्ट"
"बहस चल ही रही थी कि सोनीपत आ पहुँचा"...
"अगर आप पैसे नहीं देंगे तो मुझे जबरन आपको यहीं उतारना होगा"जिलानी साहब गुस्से से बोले
"तू! ....तू उतारेगा मुझे?"....
"जी!...
जी हाँ!... मैँ उतारुंगा आपको"जिलानी साहब अपनी बैल्ट कसते हुए दृढ आवाज़ में बोले
"सब!...सब हिसाब देना पडेगा तुझे"...
आज तूने मलंग बाबा का अपमान किया है"बाबा की नशेड़ी आँखे गुस्से से लाल हो चुकी थी...
"चला जा चुपचाप यहाँ से...वर्ना घोर अनर्थ हो जाएगा"
"तूने ईश्वर का अपमान किया है..."
"मुझसे टिकट माँगता है ....तेरी औकात ही क्या है?"बाबा गुस्से से थर थर काँपते हुए बोले
"तेरे जैसे छत्तीस मेरे आगे-पीछे घूमते हैँ...हर हमेशा"बाबा आस-पास इकट्ठे हुए मजमें को देखते हुए बोले
"मुझे गुस्सा ना दिला...कहे देता हूँ...वर्ना पछ्ताएगा"
"टिकट और मुझसे?"...
"ये!...ये तू ठीक नहीं कर रहा है"...
"मेरा काम है आप जैसे मुफ्तखोरों को पकड़ना और...मैँ अच्छी तरह से जानता हूँ कि मैँ अपनी ड्यूटी ठीक से बजा रहा हूँ" जिलानी साहब गुस्से से चिल्लाए
"अब देख तमाशा....देख!..कैसे मैँ तुझे श्राप देता हूँ...फिर ना कहना कि बाबा ने पहले चेताया नहीं" कह बाबा ने आवेशित हो अपने झोले में हाथ डाला और....
"जय काली कलकत्ते वाली" का जाप करते हुए पता नहीं क्या मंतर पढा और मुट्ठी को जिलानी साहब के चेहरे पे फूंक दिया
"कुछ राख सी उडी और अपने टी.टी साहब का मुँह धूल से अटा पडा था"
"उतारो साले इस!..पाखंडी बाबा को..."उनका गुस्सा भड़क उठा
"हमको उतार सके ये तुझ में दम नहीं ...तू हमारे से है...हम तुम से नहीं"बाबा गुस्से में भी शायरी करता सा नज़र आया
"तेरी इतनी औकात नहीं कि तू मुझे उतार सके"....
"अच्छा?..."जिलानी साहब उपहास सा उडाते हुए बोले
"देखता हूँ!..मुझे लिए बिना यहाँ से गाडी कैसे हिलती भी है"कहते हुए बाबा गाडी से उतरा और तेज़ी से इजन की तरफ लपका
"वो आगे आगे और मुझ समेत सारी पब्लिक पीछे पीछे"
पब्लिक को तो बस मसाला मिलना चाहिए...भले ही जैसे भी मिले"
"पूरा इंजॉय करती हैँ...सो!...मैँ भी कर रहा था"
"इंजन तक पहुँचते ही बाबा सीधा छलांग लगा ड्राईवर के केबिन में जा घुसा और झोले से वही राख मंत्र पढ फूंकना शुरू हो गया"
"ये क्या?...क्या कर रहा है बेवाकूफ?"....
"निकल बाहर. .."ड्राईवर चिल्लाया
"शश्श....चुप!...एक दम चुप..."बाबा का मंत्र पढ़ना जारी था
"तब तक बाहर भग्तजनों का रेला सा हाथ जोड खड़ा हो चुका था"
"साले!...अंधविश्वासी कहीं के"....
"कुछ नहीं होने वाला है"...
"सब टिकट न लेने से बचने का ड्रामा भर है"मैँ सबको कहता फिर रहा था लेकिन कोई मेरी सुनने को तैयार ही नहीं
"देखते ही देखते उस अधनंगे से मलंग बाबा को पता नहीं क्या सूझा कि सीधा छलांग मार कर बाहर डाईरैक्ट इंजन के सामने खड़ा हो गया
"अब देखता हूँ!...कैसे तनिक सी भी हिलती है गाडी"...
"है हिम्मत!...तो चला गाडी"वो जिलानी साहब को चैलेंज करता हुआ बोला
"तूने बाबा का प्यार देखा है!...क्रोध नहीं"गुस्से से टी.टी की तरफ देखते हुए बाबा बोला....
"ईश्वर से!....ईश्वर के बन्दों से टिकट माँगता है"....
"तुझे इस सब का हिसाब देना होगा"...
"आज ही ...यहीं!....इसी जगह"कह बाबा ने फिर वही राख इंजन की तरफ धौंकनी माफिक फूंकनी शुरू कर दी
"कोई समझाओ यार इसे!....बेमौत मारा जाएगा"टी.टी साहब भीड की तरफ मुखातिब होते हुए बोले
"सब चुप....."...कोई टी.टी की बात पे ध्यान नहीं दे रहा था
"ग्रीन सिग्नल दिखाई नहीं दे रहा क्या?"जिलानी साहब ड्राईवर पर बरसे...
"जी....."
"तो फिर चलाता क्यों नहीं?"
"जी!...ये बाबा..."ड्राईवर ने बात अधूरी छोड़ दी
"बाबा गया तेल लेन...तू गाडी चला"टी.टी की भाषा भी अभद्र हो चली थी
"चढा दे गाडी!..साले पे..."
"लिख देंगे कि आत्महत्या करने चला था"....
"आ गया अपने आप नीचे"...
"हम क्या करें?"....
"चिंता ना कर....गवाही मैँ दूंगा"
"चला गाडी!..."
"साहब!...पता नहीं क्या खराबी आ गई है.....स्टार्ट ही नहीं हो रहा इंजन"
"तो स्साले!...बन्द ही क्यों किया था?"जिलानी साहब भड़कते हुए बोले
"मैँने कहाँ बन्द किया?"...
"तो फिर क्या कोई भूत-प्रेत आकर इसे बन्द कर गया?"
"जी!......ये तो पता नहीं"...
"कई बार कोशिश कर ली लेकिन पता नहीं क्या बिमारी लग गई है साले को"ड्राईवर इंजन को लात मारता हुआ बोला....
"घूं...घूं की आवाज़ सी आती है और फिर ठुस्स...."
"अभी तक तो ठीकठाक अच्छा भला चलता आया है दिल्ली से"ड्राईवर की आवाज़ में असमंजस भरा था ...
"पता नहीं क्या चक्कर है?"
"उधर दूसरी तरफ भीड का बढते हुजूम के साथ साथ बाबा का ड्रामा बढता ही जा रहा था"
"कभी इधर भभूती फूंके.. .कभी उधर"...
"जब ग्रीन सिग्नल होने के बावजूद ट्रेन अपनी जगह से नहीं हिली तो स्टेशन मास्टर साहब दौड़ॆ-दौड़े तुरंत आ पहुँचे"...
"अरे!...चला ना इसे"....
"चलाता क्यों नहीं इसे?"...
"कब से ग्रीन सिग्नल हुआ पडा है....दिखाई नहीं दे रहा है क्या?"...
"अपनी तो तुझे चिंता है नहीं....मेरी भी नौकरी खतरे में डलवाएगा?"
"पीछे शताब्दी आ रही है....निकाल इसे फटाफट"...
"अपने बस का नहीं है....आप खुद ही कोशिश कर लो"ड्राईवर तैश में गाडी से उतरता हुआ बोला
"आखिर!..हुआ क्या है इसे?"
"पता नहीं....अपने आप इंजन बन्द हो गया"...
"देख !...कोई वायरिंग-शायरिंग ना हिल गई हो"स्टेशन मास्टर की आवाज़ नरम पड़ चुकी थी
"सब देख लिया साहब...कहीं कोई खराबी नहीं दिख रही"ड्राईवर का वही रटा रटाया सा जवाब ...
"इतने में खबर पूरे सोनीपत स्टेशन पर फैल गई और 'बाबा की जय'... 'बाबा की जय' के नारे लगाते लोग उसी प्लैटफार्म पर इकट्ठा होने शुरू हो गए"
"इस!....हाँ इस. .. बाबा ने केबिन के अन्दर आ कर कुछ फूंका और इंजन अपने आप बन्द हो गया"ड्राईवर बाबा की तरफ इशारा करता हुआ बोला...
"आखिर चक्कर क्या है?"....
"पता नहीं साहब"
"किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा है"
"सब इसी टी.टी का किया धरा है"....
"ना ये टिकट मांगता और ना ही ये लफडा होता"एक बोल पडा
"तो क्या!..अपनी ड्यूटी करना छोड़ दे?" मैँ भडक उठा
"तो अब करवा ले ना आराम से ड्यूटी"...
"हुह!..बड़ा तरफदारी करने चला है "वो चिल्लाया
"उफ!...यहाँ साली पहले से ही ट्रेन सवा दो घंटे लेट है...ऊपर से ये ड्रामा"....
"पता नहीं!...कब चण्डीगढ पहुँचेगी?"एक सरदार जी परेशान हो घड़ी देखते हुए बोले
"कोर्ट में तारीख है आज की"...
"नहीं पहुँचा टाईम पे तो समझो प्लाट गया हाथ से"वो रुआँसे हो बोले
"बड़ा पहुँचा हुआ महात्मा है"एक बोला...
"एक झटके में ही ट्रेन रोक दी....कमाल है"दूसरे ने हाँ में हाँ मिलाई
"अरे!..महात्मा नहीं ....अवतार कहो...अवतार"किसी तीसरे की आवाज़ सुनाई दी
"कोई पहुँचा हुआ फकीर मालुम होता है"एक और चहक उठा
"अगर ऐसा है...तो टिकट नहीं ले सकता था क्या?"मैँ फिर बोल पड़ा
"चुप हो जा एकदम से. .."परेशान सरदार जी मुझे गुस्से से घूरते हुए बोले
"स्साले!... इतना ठुकेगा कि ज़िन्दगी भर याद रखेगा"
"एक पंगा खत्म होने को नहीं है और तू दूसरे की तैयारी किए बैठा है"
"सबको अपने खिलाफ देख ...मन मसोस कर मुझे चुप हो जाना पड़ा"
"जब तक टी.टी मॉफी नहीं मांगेगा तब तक ये बाबा गाडी नहीं चलने देगा"एक आवाज़ सुनाई दी
"सही है...बडा अडियल बाबा है"
"अपने टी.टी साहब भी कौन सा कम हैँ?...एक बार अड़ गए सो अड़ गए"मेरा इतना कहना था कि सबकी गुस्से भरी आँखे मुझे तरेरने लगी
"एक काम करो...तुम ही मॉफी मांग लो यार"स्टेशन मास्टर टी.टी की तरफ देखते हुए बोले
"मैँ?...मैँ क्यों?...मैँ तो अपनी ड्यूटी कर रहा था"
"तू साल्ले!... अपनी ड्यूटी कर रहा है और उधर हमारी माँ-बहन एक हुई पडी है"सरदार जी अपना आपा खोते हुए बोले
"अरे यार!...देख तो लिया करो कम से कम कि किस से पंगा लेना है और किस से नहीं"...
"ये क्या कि गधे-घोडे सभी एक ही फीते से नाप दो?"स्टेशन मास्टर साहब बोले
"देख नहीं रहे कि सब कितने परेशान हो रहे हैँ?"
"आखिर!...क्या गलत किया है मैँने?"जिलानी साहब तैश में बोले...
"अरे बाबा!...कुछ गलत नहीं किया...बस खुश?"टी.टी की बात काटते हुए स्टेशन मास्टर साहब बोले...
"अब किसी भी तरह से चलता करो इस मुसीबत को"स्टेशन मास्टर की आवाज़ में मिमियाहट थी
"कैसे?"...
"जो मर्ज़ी....जैसे मर्ज़ी करो लेकिन ये गाडी यहाँ से निकल जानी चाहिए अभी के अभी"...
"वर्ना!..समझ लो अपने साथ साथ कईयों की नौकरी ले बैठोगे"स्टेशन मास्टर साहब गुस्से से बोले
"समझा कर!...
समझा कर यार!...अगले महीने रिटायर हो रहा हूँ"....
"कोई पंगा नहीं चाहिए मुझे"....
"इंक्वायरी बैठ गई तो समझो लटक गया..मेरा फण्ड ...मेरी पैंन्शन...."स्टेशन मास्टर साहब सहमे सहमे से बोले
"पता नहीं कैसे मैनैज करूँगा सब"
"बेटी के हाथ पीले करने हैँ"....
"डेट फाईनल हो चुकी है"...
"कार्ड तक बंट चुके है"...
"अपनी अड़ी के चक्कर में मेरा जलूस ना निकलवा देना....प्लीज़"एक बेटी के बाप की गिड़गिड़ाती हुई आवाज़ थी ये
"अच्छा!...आप ही बताइए...क्या करूँ मैँ?"...
"पांव पडूँ क्या उसके?"
"हाँ!...हाँ ये ठीक रहेगा"कोई बोल पड़ा
"मना लो यार!..किसी भी तरीके से"....
"बस समझ लो कि वक्त पड़ने पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है"स्टेशन मास्टर साहब गिडगिडाए....
"सही कह रहे थे अपने स्टेशन मास्टर साहब...वो भी तो गधे को बाप ही बना रहे थे"...मैँ मन ही मन हँसा
"ना चाहते हुए भी जिलानी साहब को बाबा से माफी माँगनी पडी"....
"अब मुझे क्या पता था कि ऐसा होगा"...
"अब तो मैँ क्या मेरे बाप की तौबा जो आईन्दा कभी किसी साधू या मलंग के मत्थे भी लगा"जिलानी साहब खुद से ही बातें करते हुए आगे निकल गए
"मुझे किसी पागल कुत्ते ने काटा है जो मैँ नाहक पंगा मोल लेता फिरूं"उनका बड़बड़ाना जारी था
"माफी मांगने से बाबा का गुस्सा शांत हो चुका था"....
"कुछ मंत्र से बुदबुदाते हुए उन्होंने अपंने थैले से निकाल फिर कुछ इंजन की तरफ फूंक दिया"
"हाँ...तो भइय्या ड्राईवर!...अब तुम खुशी से ले जा सकते हो अपना छकडा लेकिन...मुझे ले जाना नहीं भूलना".....
"हा...हा...हा....मुझ समेत सभी की हँसी छूट गई"
"ड्राईवर ने खटका दबाया और कमाल ये कि बिना कोई ना नुकुर किए इंजन एक ही झटके में स्टार्ट"
"अवाक से सबके मुँह खुले के खुले रह गए"
"हर कोई हक्का-बक्का...."
"आश्चर्य मिश्रित भाव सभी के चेहरे पे तैर रहे थे"
"बाबा की जय हो....मलंग बाबा की जय हो"इन आवाज़ों से पूरा माहौल गूंज उठा
"आँखे देख रही थी....कान सुन रहे थे लेकिन दिमाग को मानो विश्वास ही नहीं हो रहा था"....
"और होता भी कैसे?"....
"कोई विश्वास करने लायक बात हो...तब तो..."
"लेकिन आँखों देखी को कैसे झुठला दे ये राजीव?"...
"असमंजस भरी सोच में डूबा मैँ चुपचाप अपनी सीट पे आ गया"
"कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये सब हुआ तो कैसे हुआ"...
"सारे तर्क-वितर्क फेल होते नज़र आ रहे थे"....
"ये जादू-शादू कुछ नहीं होता है".....
"सब हाथ की सफाई....आँखों का धोखा है... जैसी बचपन में सीखी बातें मुझे बेमानी सी लगने लगी थी"
"कहीं हिप्नोटाईज़ ना कर दिया हो बाबा ने?"....
"पूरी पब्लिक को?"....
"शायद!...."....
"मैँ खुद ही सवाल पूछ रहा था और खुद ही जवाब दे रहा था"
"शायद...कोई सुपर नैचुरल पावर हो बाबा के पास".. .
"या कहीं सचमुच में कोई देवता....कोई अवतार तो नहीं है ये बाबा?"....
"इन जैसे सैंकड़ो सवाल बिना किसी वाजिब जवाब के मेरे दिमाग के भंवर में गोते लगाने लगे थे"....
"ये सारा चक्कर मुझे घन चक्कर किए जा रहा था"....
"इतनी शक्ति... इतनी पावर....एक आम इनसान में?"...
"हो ही नहीं सकता"...
"क्या आज भी इतनी ताकत...इतना दम है मंत्रोचार में?"
"कभी सोचा ना था"....
"ऐसे किस्से तो ' मानो या न मानो' सरीखे टीवी सीरियलों में ही देखे थे आज से पहले"....
"सब फ्राड है.... ..सब धोखा है"दिमाग मुझे इस सारे वाक्ये पे विश्वास करने से मना कर रहा था"....
"लेकिन अगर सब फ्राड....सब धोखा है....छलावा मात्र है तो यकीनन बाबा की दाद देनी होगी कि....
कैसे उन्होंने सबकी आँखे फाड़ती नज़रों के सामने खुली आँखों से काजल चुरा लिया"
"ज़रूर कुछ ना कुछ चमत्कार...कुछ ना कुछ कशिश तो है ही बाबा में"मन बाबा की तारीफ करने लगा था...
"मैँ हक्का-बक्का सा बाबा को ही टुकुर-टुकुर निहारे चला जा रहा था".....
"उनके चेहरे पे तेजस्वी ओज सा चमकने लगा था"
"उफ!...मैँ नादान समझ नहीं पाया उनको"....
"अनजाने में भूल से पता नहीं कैसा-कैसा मज़ाक उडाता रहा"
"अब अपने किए पे पछतावा होने लगा था मुझे"
"ये ज़बान कट के क्यों ना गिर गई उनके बारे में अपशब्द कहने से पहले?"
"बाबा...मुझ अज्ञानी...मुझ पापी को क्षमा कर दो....मॉफ कर दो"...
मैँ नास्तिक आपको पहचान नहीं पाया"कहते हुए मैँने बाबा के पांव पकड़ लिए
"आँखों से कब अविरल आसुंओ की धार बह चली ...पता भी न चला"
"मेरे चेहरे पे पश्चाताप के आँसू देख बाबा ने उठ मुझे गले से लगा लिया"
"कोई बात नहीं बच्चा".....
"बाबा की जय....बाबा की जय हो"इन आवाज़ों में मेरी आवाज़ भी शामिल हो चुकी थी"...
"क्या सोच रहा है बच्चा?"मुझे सोच में डूबा देख बाबा ने पूछ लिया
"जी!...कुछ खास नहीं...बस ऐसे ही"...
"मैँने तो सुना था कि ये जादू-शादू कुछ नहीं होता लेकिन...वो ट्रेन!....."मेरे चेहरे पे असमंजस का भाव था
"सब ईश्वर की माया है.....बच्चा"
"लेकिन बाबा!.....ऐसा कैसे हो सकता है?"मेरे चेहरे पे हैरत का भाव था

"आँखो देखी पर विश्वास नहीं है तुझे...तो अब कानों सुनी पर कैसे विश्वास करेगा बच्चा....?"
"जी!...वो तो है....लेकिन?".....
"कुछ लेकिन...वेकिन नहीं...कहा ना!..सब 'ईश्वर' की माया है"....
"बाबा मुझे अपनी शरण में ले लो...अपना दास बना लो..."कहते हुए मैँने हाथ से अपनी अँगूठी उतार बाबा के चरणों में अर्पित कर दी"....
"हमें कुछ नहीं चाहिए बच्चा..."
"बरसों पहले हम इन मोह माया के बन्धनो से मुक्त हो चुके हैँ....आज़ाद हो चुके हैँ"...
"ये तो बाबा कुछ भी नहीं...बस ऐसे ही छोटी सी तुच्छ भेंट समझ कर रख लें"...
"मुझे तो बस आपका सानिध्य...आपका आशीर्वाद चाहिए"
"मेरे लायक कोई और सेवा हो तो बताएं?"
"लगता है तुम नहीं मानोगे...जैसी तुम्हारी इच्छा...लेकिन....
इस छोटी-मोटी फुटकर सेवा से हमारा अभिप्राय पूरा नहीं होने वाला"कहते हुए उन्होंने अँगूठी उठा कुर्ते की जेब में धर ली
मेरे चेहरे पे प्रश्न सवार देख वो बोले...
"मैँ तो मलंग आदमी हूँ...अपने लिए कुछ नहीं चाहिए मुझे"...
"दो जून खाने को मिल जाए और तन ढांपने को एक जोडी कपडा बहुत है मेरे लिए"...
"फिर?..."मेरा अज्ञान अभी भी दूर नहीं हुआ था
"एक छोटी सी गौशाला बनवा रहा हूँ...यही कोई पाँच सौ गायों की"...
"साथ में आठ-दस कमरे बनवा रहा हूँ धर्मशाला के लिए...आने-जाने वालों के काम आएंगे"
"यही कोई दस लाख का खर्चा बताया है आर्कीटैक्ट ने "...
"नेक कामों के लिए पैसे की तंगी तो रहती ही है हमेशा"
"शायद इशारा था उनकी तरफ से ये"...
"बाबा!...दान-दक्षिणा की आप चिंता न करें"....
"जो बन पड़ॆगा...जितना बन पडेगा...ज़रूर मदद करूँगा...
आखिर!...गौ माता की सेवा का सवाल जो है"
"हम मदद नहीं करेंगे तो कोई बाहर से तो आने से रहा"मैँने कहा
"लेकिन बाबा...एक जिज्ञासा है"...
"बोलो वत्स..."बाबा ने सौम्य स्वर में पूछा
"एक सवाल सा मेरे मन को खाए जा रहा है बार बार"...
"मेरा कौतुहल मुझे चैन से बैठने नहीं दे रहा है कि कैसे वो ट्रेन...."मैँने बात अधूरी छोड दी"
मेरी बात सुन बाबा हौले से मुस्काते हुए बोले..."अच्छा सुन!....पानीपत जाना है ना तुझे?"....
"जी..".
"ठीक है स्टेशन आने दे....तेरी सब शंकाओ का निवारण कर दूंगा"...
"अब खुश....?"
"जी..."मैँ प्रसन्न हो बोला
"वो बेटा....मैँने तुम्हें बताया था ना ....गौशाला के लिए...."
"जी...
"आप बताएं कितने से आपका काम चल जाएगा?"...
"दान मांगा नहीं जाता बच्चा....जो तुम्हारी श्रधा हो"...
"दो हज़ार ठीक रहेगा?" मैँ जेब से पर्स निकालता हुआ बोला...
"तुम्हारी मर्ज़ी"....
"अपने आप देख लो...पुण्य का काम है"....
"ठीक है बाबा....पूरे पाँच हज़ार दिए देता हूँ"
"ये लीजिए"...
"हमें अपने लिए कुछ नहीं चाहिए बच्चा...सब गौ माता की सेवा के काम आएगा"बाबा पैसे जेब के हवाले करते हुए बोले...
"मोक्ष क्या है?...नाम-दान से क्या अभिप्राय है?. .. जैसी ज्ञान-ध्यान की बातो में पता ही नहीं चला कब पानीपत आ गया"
"बाबा!...मैँ चलता हूँ....पानीपत आ गया"
"ठीक है बच्चा!...पहुँचो अपनी मंज़िल पर"बाबा मुझसे विदा लेते हुए बोले
"अपना ध्यान रखना"...
"बाबा!...बताओ ना...कैसे रोक दिया था आपने ट्रेन को?"मेरे चेहरे पे बच्चों जैसी उत्सुकता देखा बाबा मुस्कुराए
"सब ईश्वर की माया है बच्चा"....
"ये मेरा विज़िटिंग कार्ड रख लो....दर्शन देने कभी-कभार आ जाया करना हमारे आश्रम में"
"ईश्वर चन्द मेरा नाम है"...
"ध्यान रहेगा ना?"...
"जी ज़रूर..."विज़िटिंग कार्ड जेब में रखते हुए मैँ बोला....
"वैसे भी बच्चा जो कोई मुझे एक बार जान लेता है...ताउम्र नहीं भूलता है"बाबा की मुस्कान गहरी हो चली थी
"आपकी महिमा अपरम्पार है प्रभु"...
"बाबा....वो..."
"लगता है तुम जाने बिना नहीं मानोगे"...
"अच्छा...कान इधर लाओ"...
"उसके बाद उन्होंने जो कुछ भी मेरे कान में कहा"....
"वो सब सुन मैँ हक्का-बक्का सा रह गया"
"बोलने को शब्द नहीं मिल रहे थे"....
"कानों को जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था"...
"यकीन ही नहीं हो रहा था कि ये सब कैसे हो गया"
"विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई मुझे...दिनदहाडे पाँच हज़ार रुपए नकद और दहेज में मिली सोने की अँगूठी का फटका लगा चुका था"
हुआ दरअसल क्या कि जब बाबा इंजन में ड्राईवर के पास गया तो उसने चुपके से ड्राईवर को पाँच सौ का नोट देकर कहा था कि
"जब तक मैँ इशारा ना करूँ तब तक गाडी रोक कर रखनी है"...
"इतनी सिम्पल सी बात मैँ बेवाकूफ...समझ नहीं पाया"...
"खुद अपनी ही नज़रों से शर्मसार हो जब मैँ कुछ समझने लायक हुआ तो पाया कि बाबा आस-पास कहीं न था"
"अब मैँ कभी अपने खाली पर्स को देखता कभी अँगूठी विहीन अपने हाथ को"...
"सच!..वो ईश्वर चन्द का बच्चा...अपनी 'ईश्वरी माया' दिखा गया था"
"सही कह गया था वो ठग बाबा कि उसे एक बार जान लेने वाला ताउम्र उसे कभी भूल नहीं पाता है"
***राजीव तनेजा***

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

भइया तनेजा जी,थोड़ा सिकुड़ जाइए न;आप तो "तने जा" रहे हैं । यार छोटी सी नुन्नू पर इतना बड़ा कांडोम तान दिया ,आपने तो बाजार ही लूट लिया....
जै हो
जै जै भड़ास

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया व्यंग्य राजीव जी धन्यवाद