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11.2.08

धन्यवाद का पिटारा

मेरे सारथी रोहित दीवान से अब मेरी ट्यूनिंग ठीक वैसी ही हों चुकी जैसी होना चाहिए ।
रोहित डिप्लोमा-इंजिनियर है...... मेरे सरकारी वाहन एम०पी०-02, 5330 को चला कर हम को इधर-उधर ले जाने की जवाबदेही रोहित की ओब्यासली उसी की ही है। दो-तीन दिन पहले जब सारी मात हत सुपरवाइज़र्स जीप से उतरीं मुझे "आभार "कहां और चलने लगीं । सारथी की कई दिनो से दिल में दबी भड़ास निकली।
"हजूर गाड़ी हम चलाएं :आभार आप सिर्फ आप पाएं "
मसला विचार योग्य है केवल ऊँचाइयों को को सलामी देने की आदत के कारण ही इस देश की दुर्गति हों रही है.... "हनुमान को गिरधर न कहना "
पद-को सलाम करो जायज़ है..... उससे ज़्यादा ज़रूरी है अपनी बुनियादों का भी ख्याल रखो.
ये अलग बात है रोहित ने कहां "गुस्ताखी माफ़, जो मेरी नज़र में ज़रूरी कतई नही है "
आप के दिल में यही आप जीवन के लिए सम्मान उपजेगा तो यकीनन आप सफल होंगे....जो देश को न० वन बना ही देगा ।
गांधी को "मुन्नाभाई" ने अगर आम आदमी का गांधी बनाया तो क्या गलत है। इस मसले पर भी बात करूंगा फिर कभी
जय-भड़ास

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