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13.2.08

आज ब्‍लॉग संगत है, हजारों-लाखों में आएं

आज दीवान-ए-सराय में एक ब्‍लॉग संगत जम रही है। सराय ने पिछले दिनों हिंदी की नयी बनती बस्तियों का लगातार ख़ैर-मक़दम किया है। खासकर ब्‍लॉग को लेकर गंभीर चर्चा-चिंता की जितनी जगह सराय के कमरों में है, उतनी न तो हिंदो के आलोचकों की बगल वाली कुर्सी पर है, न ही हिंदी किताब छाप कर कार-मकान जुटाने वाले हिंदी के प्रकाशकों के छापेखाने में है। यह अच्‍छी बात है और सराय की इन अच्‍छाइयों से छलक कर कुछ अमृत और हमारे हिस्‍से में आ रहा है।

ढाई बजे से ब्‍लॉग संगत जमेगी। आमंत्रण खुला है। हिंदी ब्‍लॉग के सफ़र और उसके आयामों पर बात होगी और जो कुछ ब्‍लॉगर इस संगत को लीड करेंगे, उनमें सुनील दीपक, मसिजीवी, दिलीप मंडल, नीलिमा-सुजाता, रवीश कुमार और मैथिली गुप्‍त अहम नाम हैं। आधे घंटे का एक छोटा सत्र सुनील दीपक से बातचीत को होगा, जो इटली के Bologna शहर से छुट्टी बिताने हिंदुस्‍तान की सरज़मीं पर अभी-अभी पधारे हैं। इस वक्‍त भुवनेश्‍वर में हैं। सुनील दीपक हिंदी के शुरुआती ब्‍लॉगरों में से रहे हैं और मोहल्‍ले की पहली पोस्‍ट उनकी ही मदद से देवनागरी में लिखी जा सकी थी।
हम तमाम ब्‍लॉगर बंधुओं को सराय की तरफ से ब्‍लॉग संगत में आमंत्रित कर रहे हैं। व्‍यक्तिगत मेल लिखना संभव नहीं हो पाएगा। ज़माने भर का ग़म और एक ब्‍लॉगिंग का ग़म के बीच संतुलन शाइरी के अर्थों में संभव नहीं हो पा रहा है, इसलिए। उम्‍मीद है, आप ज़रूर आएंगे और हिंदी ब्‍लॉगिंग पर विमर्श की एक नयी आधा‍रशिला रखेंगे।

सराय का पता है 29 राजपुर रोड, दिल्‍ली 110054... ये कश्‍मीरी गेट के बाद सिविल लाइंस मेट्रो स्‍टेशन से एकदम नज़दीक का पता है। हालांकि एक बार मसिजीवी ने कहा था कि इस जगह से तीसहजारी मेट्रो स्‍टेशन भी ज़्यादा दूर नहीं। बहरहाल, पता तफ़सील से बताने से बेहतर है कि आपमें जुनून इतना हो कि आप खोज कर ब्‍लॉग संगत में आकर जम जाएं।

4 comments:

Ashish Maharishi said...

बधाई हो, गुरुजन, काश हम भी दिल्‍ली में होते

विनीत कुमार said...

...हजारों, लाखों में आएं..सरजी संगत करा रहे हो या रैली,रैली भी नहीं रैला और बैठेगें कहां। वैसे आ जाएं इतने तो मजा आ जाए, अपन का तो मामला फिक्स है आने का

Sanjeet Tripathi said...

शुभकामनाएं ज्ञानीजनों की इस संगत के लिए!!

अफ़लातून said...

अविनाश,
विदेशी धन(फोर्ड फाउन्डेशन जैसी संस्थाओं के पैसे से) पर चलने वाली दुकानों से अविनाश जैसों का लगाव देख कर दुख हो रहा है। सराय , csds जैसी दुकानों के द्वारा बौद्धिक साम्राज्यवाद कैसे फैलाया जाता है उससे हिन्दी चिट्ठेकारों को सावधान होना होगा। मसिजीवी - नीलिमा अब यह भी बतायें कि 'चोखेर बाली'का 'सराय' जैसी दुकान से कोई सम्बन्ध है या नहीं?मैथिलीजी या सुनील दीपक विदेशी फन्डिंग एजेन्सियों से धन ले कर चलने वाली दुकानों के बारे में क्या सोचते हैं-यह उन्हें बताना होगा।