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14.2.08

सराय विवादः जब कांखने में भी वैचारिक आग्रह हो तो ये कूद-फांद दोहरे मानदंडो वाला--प्रमोद सिंह

विदेशी धन से चलने वाली सराय जैसी दुकानों को लेकर अफलातून भाई ने जो सवाल किए थे, उसके जवाब में मैथिली जी की तरफ से सिरिल ने और खुद मसिजीवी ने अपनी-अपनी तरफ से सफाई देने की कोशिश उसी पोस्ट में कमेंट के रूप में की। हालांकि सफाई बच्चों जैसी इन्नोसेंसी से भरा हुआ है, कोई तार्किक आधार नहीं है। पर सराय की ब्लागर मीटिंग के बारे में जोर-शोर से न्योता बांटने वाले अविनाश अभी चुप हैं। यहां यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि अफलातून ने अपने सवाल अविनाश को संबोधित करते हुए पूछे हैं, और सराय में ब्लागर मीटिंग के बारे में एक्सक्लूसिव न्योता पहली दफे मोहल्ला पर ही अवतिरत हुआ था, बाद में उसे भड़ास पर भी पोस्ट किया गया। तो मोहल्ला के एडमिन व माडरेटर के बतौर अविनाश का ये फर्ज बनता है कि वो इन सवालों के जवाब दें, लेकिन उसके पहले एक और वरिष्ठ ब्लागर की टिप्पणी।

मुंबई के वरिष्ठ ब्लागर प्रमोद सिंह ने कहा है कि वैचारिक आग्रहों के प्रति प्रतिबद्धता का दावा करने वाले लोगों के ऐसी संस्थाओं के आयोजन में यूं चले जाना दोहरे मानंदड वाला है। उन्होंने अपनी बात अफलातून जी वाली पोस्ट में ही कमेंट के रूप में कही है।

तो, मेरे खयाल से मुद्दा सिर्फ किसी ब्लागर मीटिंग में जाने जैसा नहीं बल्कि जो संस्थाएं इन मीटिंग के जरिए खुद प्रचार पा रहीं हों, उनके चाल चरित्र और चेहरे को समझने की कोशिश की भी है।

यहां प्रमोद सिंह द्वारा कही गई बात हू ब हू प्रस्तुत है....

Pramod Singh has left a new comment on your post "विदेशी धन से चलने वाली सराय जैसी दुकानों से इन दिग...":

वैसे सर्वविदित सच्‍चाई जो है यहां अफलातून भाई कह रहे हैं, अन्‍य जगह और लोग कहते रहे हैं. सवाल यह नहीं है कि सराय के पीछे पैसा फोर्ड फाउंडेशन का है, सवाल यह है कि कुछ लोगों को जो अपने कांखने में भी वैचारिक आग्रहों का दावा करते हैं, ऐसी स्‍वछंदता से इन जगहों कूद-फांद करें तो उसमें सीधे दोहरे मानदंड देखे जाने चाहिएं. देखे क्‍या जाने चाहिए, मुझे दिखते हैं.


Posted by Pramod Singh to भड़ास at 14/2/08 2:22 AM

1 comment:

मसिजीवी said...

hamne bhi baat kahi hai...avinash ki ray ki pratiksha hai.
http://masijeevi.blogspot.com/2008/02/blog-post_14.html