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4.2.08

*जबलपुर मे आज भी पुराने संस्कार जीवित है - श्री नामवर सिह प्रख्यात साहित्यकार हिन्दी समालोचना के पुरोधा *

*जबलपुर मे आज भी पुराने संस्कार जीवित है - श्री नामवर सिह प्रख्यात साहित्यकार हिन्दी समालोचना के पुरोधा *
विगत दिनों जबलपुर शहर मे प्रख्यात साहित्यकार हिन्दी समालोचना के पुरोधा श्री नामवर सिह जी एक दिन के प्रवास पर आये उन्होंने हिन्दी साहित्य अखबार और अन्य विषयों पर सभी से खुलकर बात की | उन्होंने कहा जबलपुर शहर बहुत ही अच्छा है अगर भारतीय संस्कृति की बात की जावे तो वह जबलपुर जैसे शहरों मे रचती-बसती है | शहर मकानों और पार्को से नही बनता है शहर बनता है वहां के रहने वालो से | उन्होंने कहा कि जबलपुर आकर उन्हें फ़िर से ताजगी मिली है | जबलपुर मे आज भी पुराने संस्कार जीवित है उनकी जबलपुर से बहुत सी यादे जुड़ी है जबलपुर जैसे शहर ही संस्कृति और इतिहास को अपने मे संजोये साहित्यक विचारधारा को जीवित रखने महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश तो पत्रकारों की पाठशाला है जहाँ कई नामी पत्रकारों ने जन्म लिया है | वे छात्र जीवन से कविता लेखन से जुड़े है फ़िर कहा कि जवानी मे आदमी दो ही काम करता है एक प्यार करता है और दूसरा काम कविता लिखता है | आज की पत्रकारिता पर दवाब बहुत है पहले अखबार साहित्यकारों का केन्द्र हुआ करते थे आज वे अपने ऊपर के दवाब से परेशान है फ़िर भी एक अच्छी बात है कि साहित्य को सप्ताह मे एक दिन करीब एक या आधे पन्ने की जगह तो मिल जाती है पर अखबारी भाषा का क्षरण हो चुका है अब तो अखबार विज्ञापनों ग्लैमर से पटे रहते है | अब अखबारों मे संपादक नही है अब इन्हे इनके मालिक चलाते है | अखबारों मे सबसे जरुरी है स्थानीयता का होना यह पत्रकारिता की जान है | साहित्य ने स्थानीयता बनाये रखी है | अखबारों मे जिस तरह की होड़ चल रही है उसे उन्होंने कुत्ते बिल्ली की दौड़ बताया है | आज की साहित्यक स्थिति को देखकर उन्हें बड़ी खुशी है और कहते है कि आज के साहित्य की हर विधा मे युवा रचनाकारों की श्रंखला है जो काफी अच्छा काम कर रही है | सुभद्रा कुमारी चौहान और महादेवी के बाद अब महिला रचनाकारों की तादाद बढ़ गई है | हिन्दी भाषा किसी से कम नही है और हिन्दी का उत्तरोतर विकास हो रहा है और हिन्दी भाषा की पठनीयता बढ़ रही है | दूसरे भाषा के लेखक भी अपनी रचना का अनुबाद हिन्दी भाषा मे चाहते है और वे जानते है कि इसके बिना विश्व साहित्य का वे हिस्सा नही बन पाएंगे | हिन्दी भाषा ने भी अब अपना दायित्व समझ लिए है | हिन्दी का बाजार बहुत बड़ा है और विश्व मे हिन्दी भाषा की मांग बढ़ी है जो हिन्दी के लिए शुभ संकेत है |

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