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1.2.08

राज ठाकरे और मोहम्मद अली जिन्ना

अभी ११ जनवरी को मैं मुम्बई में था टाइम्स नाउ के एक साक्षात्कार के लिए ! मैं जहा जहा भी गया मुझे हिन्दी भाषी लोग मिले जो ज़्यादातर उत्तर प्रदेश या फिर बिहार से थे; छोटे बडे हर तरह के काम करते हुए। सच को अगर जुबान से फिसलने दिया जाए तो इनके बिना मुम्बई चल ही नही सकता। फिर भारत का संविधान एकल नागरिकता की बात करता है। तो सवाल है कि राज ठाकरे इस तरह कि चू .......पे वाली बातें क्यों करते हैं ?
दरअसल इसी बात की चर्चा आवश्यक है ....... और यहाँ से मैं जोडूगा जिन्ना को !

पाकिस्तान के कायदे आज़म यानी कि फादर ऑफ़ नेशन मोहम्मद अली जिन्ना साहब भी कुछ इसी तरह के कारणों के चलते कट्टरपंथ की ओर झुके और अलग मुस्लिम मुल्क की माँग कर ली ....... जबकि उनका निकाह एक पारसी स्त्री से हुआ और इस्लाम में मनाही के बावजूद वो शराब और सिगरेट दोनो के शौकीन थे। तो ज़ाहिर है कहीं न कहीं अपनी राजनैतिक मज्ब्बोरियो के चलते उन्हें उग्र कट्टरपंथ को अपनाना पड़ा। वही राज ठाकरे कर रहे हैं, उनका दुःख मैं समझ सकता हूँ।

पर बड़ी झल्लाने वाली बात यह है कि राज ठाकरे जो देश के सपूत बनते हैं क्या नही जानते कि देश का कानून क्या कहता है ? क्या उन्हें लगता है कि मुम्बई या महाराष्ट्र एक अलग देश है ? क्या वे सोचते हैं कि देश के अन्य राज्यों में मराठी भाषी नही रहते ? मुम्बई आज जिस फिल्म उद्योग की वजह से मशहूर है उसमे काम करने वाले क्या सब मराठिभाशी हैं ? सबसे बढ़कर कि क्या हिन्दी भाषी महाराष्ट्र में वोट डालने के अधिकार से वंचित हैं ?

मैं नही जानता कि राज ठाकरे ने जो कुछ बका क्या सोच कर कहा पर वे सोचें और यह सोचें कि देश के अन्य राज्यों में भी महाराष्ट्र के लोग मराठी लोग रहते हैं अगर वह के निवासी भी बदले में उनसे इसी तरह का व्यवहार शुरू कर दें कि उनके त्यौहार और उनकी बोली नही चलेगी........... तो ? और फिर किसी की भाषा और रीतियों पर आक्षेप करने वाले राज ठाकरे होते कौन हैं ? उनकी तो ........................

सबसे बड़ी बात मैं नही जानता कि राज ठाकरे कितना पढे लिखे हैं, पढे लिखे भी हैं या नहीं पर राजनीति में हैं तो उन्हें भारत के संविधान के बारे में मालुम होना ही चाहिऐ ! इसलिए जिस तरह की बात उन्होने कही है उन पर मुकदमा दायर अगर हो सकता है तो होना चाहिऐ क्यूंकि संविधान का अपमान बर्दाश्त नही होना चाहिऐ। और फिर एक और बड़ा सवाल.......

जब पत्रकारों पर इस तरह की बातों पर मुकदमा दायर कर दिया जाता है तो नेताओ सालो पर क्यों नही ???

खैर अभी इतनी ही भडास थी बाक़ी फिर कभी !!!

जय भड़ास !

मैं भडासी मयंक सक्सेना
www.taazahavaa.blogspot.com

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मयंक भाई हमें इन कमीनों को अपनी चर्चा में जगह नही देनी चाहिए सालओं को मीडिया द्वारा बहिष्क्रत कर देना चाहिए ताकि अकेले अपनी गली में भौंकते रहें......
जय भड़ास

Anonymous said...

येसे कुत्ते राजनीति चमकाने के लिये सिर्फ़ भोकते
हे काटते नही ?