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11.2.08

रखैल रखिए ,कानूनी तौर पर....

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (वही न्यायालय जहां जस्टिस आनंद सिंह का प्रवेश बिना किसी लिखित आदेश के वर्जित है) के न्यायाधीश अरिजीत पसायत की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि स्त्री-पुरूष अगर बिना विवाह किये लम्बे समय तक पति-पत्नी के रूप में रहते हैं तो उसे विवाह ही माना जाए और और इस रिश्ते से पैदा हुए बच्चे पिता की खानदानी सम्पत्ति के हक़दार होंगे । लिव इन रिलेशनशिप पर सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बेहद मानवीय और क्रांतिकारी है । कहना कठिन है कि आने वाले समय में यह नजीर बन सकेगा । यह नजरिये से जुड़ा ऐसा निर्णय है जो स्त्री-पुरुष साहचर्य से गहरा रिश्ता रखता है । आश्चर्य नहीं यदि लिव इन रिलेशनशिप को विवाह संबंधों के समकक्ष मान्यता देते हुए जायज़ ठहराने वाले इस फैसले पर बहस का लंबा दौर चले ।
यह फ़ैसला बहुत उलझनें पैदाकरने वाला है क्योंकि इसे विवाह मान लेने से दोनो तरफ से स्त्री ही ठगी जाएगी ,वो जो प्रेमवश साथ रह रही है और वो जो विवाह करके रह रही होगी । बिना विवाह के संग रहने वाली स्त्री के बच्चों को संपत्ति का हक़ तो मिल जाएगा पर उसे हमेशा ही समाज में पहचान के लिए जूझना पड़ेगा, क्योंकि विवाह मात्र एक कानूनी नहीं अपितु सामाजिकव्यवस्था भी है । विवाहित स्त्रियों को बहुत समस्याएं उठानी पड़ सकती हैं और आने वाले समय में न्यायालय के सामने आने वाले मामले और पेचीदा होते जाएंगे । अब पत्नी घर की देखभाल के लिये होगी और प्रेमिका लिव इन रिलेशनशिप के लिये जिसे बाद में विवाह मान लिया जाएगा । आर्थिक रूप से कमज़ोर और अशिक्षित विवाहित स्त्रियों के शोषण की संभावनाएं अब बढ़ जाएंगी । अरे भाई ,लम्बी अवधि कितनी होनीचाहिए यह माननीय न्यायालय ने तो स्पष्ट किया नहीं है तो जब तक यह बात किसी दूसरे मुकदमें की शक्ल में माननीय न्यायालय तक नहीं पहुंचता और उस पर फैसला नहीं होता तब तक रखैल-वखैल रखा जा सकता है । दरअसल यह फैसला "पीठ" से दिया गया है इस लिए ऐसा है गर दिमाग़ और दिल का प्रयोग करके व भारतीय सामाजिक सोच को मद्देनजर रख कर लिया जाता तो बात कुछ अलग ही होति
लेकिन भाई जमाना बदल रहा है तो माननीय न्यायालय की सोच क्यों न बदलेगी भला भारतीयता जैसी जीर्ण-शीर्ण दकियानूसी बात को वो क्यों महत्त्व दें तब जब लोग गे और लेस्बियन मैरिज्स को लीगल कराने के जतन कर रहे हों और ऐसे लोगों का इलाज करवाने की सलाह देने की बजाए उनसे सहानुभूति रखने लगे हों ।

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

डा०रूपेश श्रीवास्तव जी,अब भारत युरोप से १० कदम आगे चल रहा हे,वेसे युरोप मे भी बिन शादी के साथ रहना मना नही, लेकिन उस स्त्री को जो बिना विवाह के साथ रह रही हे वीवी का स्थान प्राप्त नही, पुरुष कभी भी ऎसी स्त्री को बाहर का रास्ता दिखा सकता हे,ओर सन्तान (अगर सिद्ध हो जाये तो )उसी पुरष की हे जिस के साथ स्त्री रह रही हे तो संपत्ति का हक तो पता नही,लेकिन पुरुष को थोडा खर्चा देना पडता हे,लेकिन उम्र भर साथ रह कर भी इस जोडे को पति पत्नी का हक ओर नाम नही मिलता,
तब तक रखैल-वखैल रखा जा सकता है ।यह शव्द आप ने उपयुक्त रखा हे, वेसे ऎसी खबरे सुन कर लगता हे हम ने बहुत तरक्की कर ली हे.

राज भाटिय़ा said...

डा०रूपेश श्रीवास्तव जी,अब भारत युरोप से १० कदम आगे चल रहा हे,वेसे युरोप मे भी बिन शादी के साथ रहना मना नही, लेकिन उस स्त्री को जो बिना विवाह के साथ रह रही हे वीवी का स्थान प्राप्त नही, पुरुष कभी भी ऎसी स्त्री को बाहर का रास्ता दिखा सकता हे,ओर सन्तान (अगर सिद्ध हो जाये तो )उसी पुरष की हे जिस के साथ स्त्री रह रही हे तो संपत्ति का हक तो पता नही,लेकिन पुरुष को थोडा खर्चा देना पडता हे,लेकिन उम्र भर साथ रह कर भी इस जोडे को पति पत्नी का हक ओर नाम नही मिलता,
तब तक रखैल-वखैल रखा जा सकता है ।यह शव्द आप ने उपयुक्त रखा हे, वेसे ऎसी खबरे सुन कर लगता हे हम ने बहुत तरक्की कर ली हे.