Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

1.2.08

जंग जारी है

जंग जारी है
ज़िंदगी से
सुबह उठने के साथ
रात को सोने के तक
और शायद सपने में भी
जंग इस बात की है
कि हम खुद को इंसान समझे
या फिर उत्पाद
हमारे अन्दर
जो भावनाएँ हैं
वो सिर्फ उबाल लें
और बह जाएँ
बहुत हो तो कविता कि शक्ल लें
और कागज़ पर छप जाएँ
इससे ज्यादा भावनाओं की कोई कीमत नही
क्यूंकि कीमत तो बाज़ार तय करता है
और बाज़ार में हमारी भावनाओं की कोई कीमत नही
बाज़ार भावना को अपने हिसाब से
बनाता है बढाता है
या फिर मिटाता है
जंग जारी है
कि चाय ठेलों पर लेते हुए चुस्कियाँ
लडातें रहें गप्पें
करते हुए राजनीति पर चर्चा
कोस लें अपनी सरकार
गालियाँ बक सकें
तो बक लें बुश को
और फिर नहो दूर ऊब
तो छेड़ें कोई नया शिगूफा
बात कर सकें तो कर लें
अपने सपनों की
भर सकें तो भर लें
जीवन में प्यार का रंग
कि जंग लड़ते हुए
जी सकें कुछ और पल
इससे पहले
कि जब हम भी उत्पाद हो जाएँ

purnendu
c voter

2 comments:

मयंक said...

jai hind Sir
Achchi hai.....
khair aap hamesha achcha likhte the !!!

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पूर्णेन्दु भाईसाहब,कसमसाहट को के पिघले लावे को शब्दों के सांचे में ढाला है लेकिन तपिश है .....
जंग जीतना है शहीद होने में मै जरा कम ही यकीन रखता हूं लेकिन अगर यही नियति रही तो हरिइच्छा....