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9.2.08

भोभडी के इसे न पढें यह महज महानुभावों के लिए है

भोपाल में जिन लोगों ने मिनी बस का सफर किया होगा वे भोभडी के से परिचित होंगे.. इससे पहले कि मैं गालियों से सभी भडासियों की रिश्तेदारी करूं. एक छोटी सी तम्कीद. तम्कीद यानी फ्यू वर्ड शुरुआती दो शब्द.. भोभडी के भोपाल में होते हैं यह उनके जीवन का मुहावरा है. भोपाल के बस कंडक्टरों के मुंह से निकलने वाला यह शब्द गाली की तरह लगता है पर इसकी तासीर एक भडास की तरह होती है. भोपाल की सारी सवारियां भोभडी की होती हैं जब बस भरी होती है तो 10-10 खडी रहती हैं हर स्टॉप पर और जब नहीं होती तो खडखडाती बस में बस शानदार गालियों के साथ कंडक्टर और उसका खलासी ड्राइवर को चाय पानी देते हुए खर्च के जुगाड में दिन बिताते हैं.... हालांकि इसके बाद जब भी यह दास्तां सुनाई जाएगी उसमें यह जिक्र भी आएगा कि इस ब्लॉग के सारे लेखक भोभडी के हैं और उन्हें भडास का तिया पांचा करना न आया न आएगा...
चलिए इसकी व्याख्या करते हैं. पिछली 862 पोस्टों में से भडासी पोस्टों को छांटिए तो ब मुश्किल 80-100 ढंग ढौले की चीज मिलेंगी... उदाहरण के लिए नीचे की पोस्ट देखें. सुरेश चिपलूनकर (इसे सुरेश चिप्पू या सुरेस चिकपटनानवी न पढें) खबर दे रहें हैं अरे भैया इसे हल्लाबोल पर डालो या फिर अपने महाजाल में ठूंस लो. भडास की मिट्टी में क्यों दबाते हो? यह उदाहरण मात्र है आप खुद सोचें क्या जो लिख रहे हैं वह भडास के लायक है या यो हीं बैठे ठाले की फुफेडी है... फालतू की गालियां घुसेडकर फूहड शब्दों के साथ की गई लीद को तो जाने दीजिए... किस को टारगेट करके लिखी गईं पोस्टों में भी बस आत्मुग्धता का थूक ही नजर आता है. बगल की लिस्ट में शोभाएमान भडासियों के जेर-ए-नाभ में तो दम है ही नहीं उनकी तशरीफ में भी गूदा नहीं बचा... जो था वो भडास के पिछले जलवे में होम हो गया.. वो रियाज की ठुस्सी वो यशवंत का हुक्का. अंकित की थुक्की, मंधाता जी का फूक्का..... और न जाने किस किस का लुक्का, ठुक्का, सुक्का, पुक्का.... अब तो ऐसा लगता है कि भडासियों के सामने कुछ चेहरे होते हैं कि ये पढेंगे हमारी बात और उन्ही को संबोधित करके कुछ अच्छी अच्छी कच्ची कच्ची खुशबूदार बाते लिख दी जाती हैं.. भैये भडासियों खोलो अपनी गंधाती पुटरियां और निकालो अपना माल जो सड रहा है आप लोगों के भीतर इस कचरा बाक्स में उलेट दो वरना ऊपर टंगी तख्ती ...अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा.. को हटाने की जुगत भिडाई जाए... हालांकि इसकी दो वजहें फिलवक्त मुझे समझ में आ रही हैं या तो भडासियों की बीवियों ने ब्लॉग पढना शुरू कर दिया है(यहां बीवियों के भाई यानी साले भी इसी वजह में शामिल हैं, जो लगाई बुझाई करने वालों की नई सी नस्ल है सहेलियों सालियों के बाद वाली) या फिर सभी भडासियों के बॉस ने डंडा कर रखा है, जिसे इधर उधर से निकलते वक्त कोई हिला देता है और बेचारे भडासी बिलबिलाकर कहते हैं.... गां... में घुस गई भडास और मा... में गई पोस्टें.. कमाने खाने दो यार...
क्या भडासियों बिलबिला रहा है न पिछवाडा...
आक्क्क्कथू आक्क्क्कथू आक्क्क्कथू लो कर लो बात जै पडी बापू की......
सचिन लुधियानवी
09780418417

2 comments:

subhash Bhadauria said...

सचिनजी आप दुरस्त फ़र्मा रहे हैं.
घर वालों ने डंडा ही नहीं बांस कर रखा है.एक पोस्ट पर हमने लिख दिया कि हमें प्रभू ने स्त्री क्यों नहीं बनाया अगर बनाया होता तो पिछले चार सालों से हमारे रेग्यूलर इंक्रीमेन्ट क्यों रुकते.हम अपने कोलेज के प्रिंसीपल के साथ आफिस आवर में ही सो जाते.उसकी कुर्षी के पास बैठ कर खूब हाथ फिरवाते.इससे हरामी बुढ्ढों का मानसिक स्वास्थय ठीक रहता है.कम से कम हमारे सी.आर.तो नही बिगडते.बस इस पोस्ट की शिकायत हमारी धर्म पत्नी तक पहुँची हम राजस्थान एक केम्प में थे.मोबाल पर धर्म पत्नीजी के साथ खूब संग्राम हुआ.हमारा पासवर्ड लेकर हमारे सुपुत्र से पोस्ट डिलीट करा दो तीन दिन में डिलीट कर दी गयी.साले साहब जज हैं उन्होंने कानूनी स्थित को समझाया.
ता0 ता.15-01-8 से रोड एक्सीडेंट में टांग तुड़ाकर बिस्तर पर हूँ.भड़ासी यार टांग के हाल तो पूछते नहीं भड़ासी भौजी की तलाश में हैं और यशवंतगुरू भी धार रखके बैठे हैं कब भड़ास की भौजी मिलें और आर पार कर दें.
ढंग की भौजी मिल गयी तो डंडा नहीं सीधा बांस होगा.सपने वाली लड़की की पोस्ट तो याहू पर ज्ञानियों ने बैन करायी घर से भी निकले गये होते.
रही बास की बात सो यार मेरे आज ही टूटी टांग से
नोटरी के पास गुजरात हाईकोर्ट में तीन साल से रुके इंक्रमेन्ट के लिए पीटीशन तैयार करायी है.दो चार दिन में बास को डंडा कोर्ट करेगी,फिर बास हमें दूर दराज़ के गांव में टांसफर का डंडा.सो यार डंडों से नहीं डरते डर तो तुम्हारी भौजी के बांस का है क्या तुम लोग उंगली कर करके घर से निकलवाओगे.यशवंतजी से कहो एक अनाथालय की
व्यवस्था करें जहां हम रह सकें.फिर हम लिखेंगे. तब मुखाड़ी पिछाड़ी से सारे पाखंडी लोग किल्लाते
फिरेंगे .
बहुत दिनों के बाद जानदार पोस्ट पढ़ने को मिली.आपको बधाई सोते से जगाया.
भड़ास के दद्दा यशवंतजी से कहना भौजियों से दूर रहें.बाप की टांग टूटी है .जल्दी से उस टूटी टांग को श्रध्धांजली दें जो एक पांव से नोटरी के घर पर जाकर हुकूमते गुजरात से हाईकोर्ट में इंसाफ मांगने की हिम्मत रखती है.नोटरी करने वाली बहिन ने कहा था आप एक पैर से कैसे आये मैं आपके घर पर सही करने डायरी भेज देती. मैंने कहा दोस्त की बाइक पर पिर उसका कंधा पकड़े.गुजरात हाईकोर्ट की सीढ़िया चढना अभी मुमकिन नहीं है.15 को पलास्टर कटेगा फिर देखेंगे आगे क्या होता है.

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

सचिन जी ,सारे भड़ासियो को अंगूठा घुसाने के लिये दिल से धन्यवाद । आपको एक बात कान में बता देता हूं कि साले भोपाल के नजदीक भोभड़ी के ही नहीं बल्कि पूना के नजदीक भोसरी के भी हैं....