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5.2.08

बड़े होने का धर्म

भड़ास ने अपने बड़े होने का धर्म निभाया है मित्रो ! जिसके लिए मैं आभारी हूँ भड़ास का और भड़ास गुरु यशवंत जी का भी..अगर उनका फ़ोन न आता तो अपने इस समाधान प्रकल्प की छवि ख़ुद एक समस्या की बन जाती ..हुआ यूं की थोड़े उत्साह और थोड़े अज्ञानवश समाधान को ऑनलाइन लॉन्च करते समय मैं समाधान पेर अपनी पीड़ा व्यक्त करने के साधन का जिक्र करना भूल गया...सवाल भी बड़ा वाजिब सा था की आख़िर किसको सुनाएँ अपने वेदना और कैसे ? खैर ! सही वक्त पर मामला संज्ञान मे आ गया सो उसका निवारण भी हो गया है ...अभी जब तक मैं यशवंत जी से सामुदायिक ब्लॉग बनाने और उसको चलाने के गुरुमंत्र सीखता हूँ तब तक आप समाधान पर अपने पीड़ादायक मनोभाव इस ई -मेल के पते पर भेजते रहे..
samadhan_mail@rediffmail.com
मैं प्रयास करूँगा की आपको कुछ राहत के क्षण दे सकूं...
डॉ.अजीत

1 comment:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

दद्दा,चलो भड़ासियों के रोने के लिए एक कन्धा तो मिला । जरा देखिएगा कि साले रो रोकर नदी तालाब न भर दें ,खाली करने के लिये पम्प तैयार रखिएगा....