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1.2.08

Harsimran Sethi, Sandhya Samachar

ख़ुश्क दरियाओं में हल्की सी रवानी और है
रेत के नीचे अभी थोड़ा सा पानी और है

इक कहानी ख़त्म करके वो बहुत है मुतमइन
भूल बैठा है कि आगे इक कहानी और है

बोरिए पर बैठिए, कु्ल्हड़ में पानी पीजिए
हम क़लन्दर हैं हमारी मेज़बानी और है

जो भी मिलता है उसे अपना समझ लेता हूँ मैं
एक बीमारी ये मुझमें ख़ानदानी और है

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