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23.3.08

तुम lucky हो होली तुम्हारा त्यौहार नही है....


रख्शंदा-http://rakhshanda-prettywoman.blogspot.com/


ये कमेंट किसी को भी सुनकर अजीब लग सकता है,,वैसे भी त्यौहार कोई भी हो,,हर धर्म के लोगो को बडे प्यारेलगते हैं,,इनके आने की आहट ही हमारे दिलो में नयी उमंग सी भर देती है.में सिर्फ अपने त्योहारों की बात नहीकर रही..दिवाली आने के पहले उस के आने का माहोल ही इतना प्यारा लगता है की दिल अपने आप लोगो के दिलोमें उसके प्रति होने वाली उत्सुकता को समझ सकता है.लेकिन उन्हीं त्योहारों में से एक त्यौहार के बारे में यदिकोई ऐसा कहता है तो उसके कहे इस जुमले में छुपे उस मर्म को समझा जासकता है,,हो सकता है,कुछ लोगो कोये जुमला पसंद आया हो,पर कल दो घटनाएं ऐसी हुयीं,जिन्होंने मुझे ये लिखने पर मजबूर कर दिया,,ये घटनाएंकहने को इतनी बड़ी नही हैं की किसी अखबार की सुर्खियाँ बनें लेकिन अगर इसे समझने की कोशिश की जाये तोयकीन कीजिए,ये किसी भी भावुक मन को तड़पा देती हैं.

निशा दीदी,हमारे ऊपर वाले पोर्शन में किरायेदार हैं,ओर मेरी अच्छी दोस्त हैं,मैं घंटो उनके साथ समय बितातीहूँ.उनका बोल्ड नेचर मुझे बहुत पसंद है.परसों ही की बात है,,नाश्ते से फारिग हो कर में सीधी ऊपर चलीआई,सोचकर गई थी की निशा दीदी को तो होली की तय्यारिओं से ही फुरसत नही होगी,पर अपने कमरे में वोअपनी किसी दोस्त के साथ busy थीं,में ये देख कर हैरान रह गई की वो अपनी दोस्त के आंसू पोंछ रही थी,कारणपूछा तो जो कुछ उन्होंने बताया उसे सुनकर कितनी देर तो में कुछ बोलने लायेक ही रही,,निशा दीदी की वो दोस्त सुमन(नाम असली नही है) होली के दिन निशा दीदी के घर रहने आरही थी,,जानते हैं क्यों? क्योंकि होली के दिन उसे अपने घर में रहते डर लगता था,अपने घर में डरपर किस से? किसी और से नहीअपने सगे जीजाजीसे,,सुमन दीदी ने बताया की उसके जीजाजी का चरित्र अच्छा नही है,उनकी नज़रें ही उसे इतनी गन्दी प्रतीतहोती हैं की वो जहाँ तक हो सके उनका सामना कम से कम करती है,आम दिनों में तो इतनी हिम्मत नही होतीउनकी,पर पिछले साल होली पर उन्होंने रंग लगाने के बहाने उसके साथ बड़ी अश्लील हरकत की,,उसने गुस्से मेंउन्हें बुरा भला भी कहा लेकिन वो आदमी बड़ा ढीठ था,उसने ये बात अपनी माँ को भी बातायी पर नाज़ुक रिश्ताहोने के कारण वो दामाद को कुछ नही कह सकी,अब होली फिर आगई थी और सुमन दीदी की बहेन परिवार सहितमायके होली मनाने आरही थी,पर सुमन दीदी के लिए ये त्यौहार खुशी लेकर नही डर लेकर आरहा था,,उन्होंनेहोली के दिन अपने घर में रहने से बेहतर अपनी दोस्त के घर रहना मुनासिब समझा.मुझे हैरान देख कर सुमन दीने अपने आंसू पोंछते हुए कहा था,,तुम हैरान हो पर ये कोई नयी बात नही है,,तुम lucky हो की होली तुम्हारा त्यौहार नही हैजब वो ये बात कह रही थी,तो उनके लहजे की बेबसी,चाहते हुए भी कुछ करने की उनकीकुंठा,,उनकी तड़प, मुझे अन्दर तक झकझोर गई.

बात सुमन दी की ही होती तो शायेद मैं ये उनकी बदकिस्मती समझकर कुछ दिन में भुला देती पर कल यानी होलीके दिन जो कुछ हुआ,उसने मुझे सारी रात सोने नही दिया.

अनीला,हमारे घर पे काम करती है,यही कोई १४/१५ साल की अल्हड़ सी बच्ची,,बहुत तेज़ हैं काम में,पर बहुतभोली भाली,,उसकी माँ पास ही चूने भट्टे में मजदूरी करती है.उसने मामा से बोला था की होली वाले दिन सुबहसुबह आजयेगी और जल्दी चली जायेगी,क्योंकि,दिन चढ़ते ही रंग लगाने वालों की मस्तियां शुरू हो जाती हैं.यहाँकुछ खुदगर्जी हमारी भी रही जिसे इंसानी फितरत का हिस्सा कहा जासकता है,मामा ने उसे मन नही किया,भलाइतने सारे काम कोन करना पसंद करताबहेर्हाल,,सुबह लगभग बजे होंगे,जब वो आई,ज़ोर ज़ोर से रोतीहुयी,उसका हाल देखकर हम सब भोंचाक्के रह गए,,रंगों से लत पत,बिखरे बाल,चेहरे पर काला पेंट पुता,अस्तव्यस्त कपड़े,,वो रोये जारही थी,मामा ने कितनी कोशिश की पर वो चुप होने का नाम नही ले रही थी,,करीब आधेघंटे के बाद वो थोड़ा नॉर्मल हुयी,तब रो रो कर जो कुछ उसने बताया,उसने मुझे गम ओर गुस्से से भर दिया,,एकपल को सुमन दी की बात मुझे ठीक लगीअनीला ने बताया की वो रास्ते में थी,और जल्दी से जल्दी यहाँ पहुँचजाना चाहती थी पर रास्ते में ही कुछ लड़के रंग लिए उसके पीछे पड़ गए,उसने मन किया तो वो ज़बरदस्ती करनेलगे,तभी किसी बुजुर्ग ने उन्हें डाँट कर भगाया,,वो उस समय तो चले गए, अनीला चल पड़ी,रास्ते में एक लीचीका बागीचा पड़ता है,,वही वो उसका इंतज़ार कर रहे थे,,वो छोटी बच्ची चिल्लाती रह गई मगर वो भेडिये रूपीमदमस्त जानवर,,अपनी ताकत ओर मस्ती का उदाहरण पेश करते रहे,,जाने उसके साथ क्या अनर्थहोजाता,,जब फरिश्ता बनकर कुछ लोग मोके पर वहां आगयेहमारा घर पास ही था,सो वो भागती हुयी यहाँ पहुँचगई..मामा ने बड़ी मुश्किल से उसे संभाला,सारा दिन वो हमारे घर रही,मामा ख़ुद शर्मिंदा थीं की उन्होंने आज उसेआने से मन क्यों नही किया,,कल का दिन मेरी जिंदगी के बदतरीन दिनों में से एक था,,रात जब लेटी तो मासूमअनीला के आंसू मुझे अपने दिल पर गिरते महसूस हुए,,कैसी है ये दुनिया,कैसा है इसका समाजओर क्या है यहाँ स्त्री का अस्तित्व,,जिस स्त्री की कोख से पुरूष जन्म लेता है,उसी को जब चाहता है भेडिये की तरह भंभोड़ कररख देता हैये समाज,उसके रीत रिवाज,,सब ढोंग हैंसच तो ये है की ये दुनिया,ये समाज एक ओरत के लिए किसी शिकारगाह से कम नही,,जंगल है ये दुनिया,जहाँ ओरत का अस्तित्व कोई नही,,हम कुछ भी कहें,कितना भी ख़ुद को मज़बूत बनाने की कोशिश करेंकिसी किसी रूप में,कही कही,हम अपनी जैसी मासूम लड़कियोंको इस श्कारगाह में तड़पता देख कर आंसू बहने के सिवा कुछ नही कर सकतीं

में मानती हूँ,अलग अलग रूप में ये दोनों घटनाएं पुरूष की घटिया मानसिकता की ओर इशारा करती हैं,,जो कहीं कहीं,किसी किसी चोर रास्तों से अपनी गन्दी हवस की संतुष्टि करता रहता है,होली जैसा पवित्र त्यौहार इसका दोषी नही है,पर सोचिये तो कही कहीं ये सुमन दी के जीजा और उन मदमस्त लड़कों जैसे विक्षिप्त पुरुषों को ऐसी घिनावनी हरकत का अवसर प्रदान करने का जिम्मेदार तो है क्या दिवाली या ईद जैसे त्यौहार पर भी किसी ने ऐसी घटनाएं होते देखि हैं? क्या दूसरे त्यौहार किसी पुरूष को किसी स्त्री को इतने अजादाना तरीके से छूने का मोका देते हैं? नहीनिश्चित ही बाकी त्योहारों की तरह होली का स्वरूप भी पवित्र मानसिकता का प्रतीक है,पर इस तरह की घटनाएं क्या इस की पवित्रता का मजाक उडाती नही प्रतीत होतीं?

में जानती हूँ भडास पढने वालो में पुरुषों की गिनती महिलाओं से काफी अधिक है,और में ये भी नही कह रही की सारे पुरूष ऐसी घटिया मानसिकता वाले होते हैं,,पर आप भी जानते हैं की आप ही के आस पास,आपके ही रिश्तेदारों में कहीं ऐसे लोग भी हैं जो इस पवित्र त्यौहार को कलंकित कर रहे हैं,,,सोचियेयदि सौ लोगों की खुशियों में कहीं एक आँख बेबसी के आंसू से बहा रही हो तो क्या हम वास्तव में खुश हो सकेंगे?

यदि आप लोगों में से कोई किसी एक ऐसे विक्षिप्त इंसान को बेनकाब कर सका तो में समझूंगी,,मेरी मेहनत बेकार नही गई…....

4 comments:

रीतेश said...

लेख लड़कियों के लिए प्रेरक और लड़कों के लिए शर्मनाक है.

लेकिन, आपने बड़ी साफगोई से कबूल किया है कि आप अपने घर पर बाल मजदूर की सेवा लेती हैं.

ये भी तो एक विरोधाभास ही है कि लड़कियों की जिंदगी के एक पहलू से आप दुखी हैं लेकिन दूसरे पहलू की खुद ही हिस्सेदार हैं.

rakhshanda said...

ritesh ji,kuchh had tak aap ki bat theek hai lekin main aapko bata dun ki Aneela hamaari family ki member jaisi hai,ham usey baki logon se zyaada pay karte hain,main ye bat kisi ko batana to nahi chaahti thi par jab aapne aisa kaha hai to aapko bata dun ki after work,main ya meri sister usey padhai bhi karvaate hain.I accept ki wo hamaare yahaan kaam karti hai par i m sure ki hamaare yahaan kaam karke uskaa bhalaa hi ho raha hai na ki bura....anyway thanks for ur comment

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मन को कड़वाहट से भर दिया इन बातों ने और दुखी हूं कि लोग त्योहारों के बहाने से इस तरह की कुत्सित हरकतें करते हैं । रीतेश भाई ने एक बात बात लिखी और हमारी महिला मोर्चा की सेना-नेत्रिणी ने मान लिया कि अनीला बाल मजदूर है ,अरे रक्षंदा आपा आप पहले कन्फ़र्म करिये कि बाल मजदूर की कानूनन उम्र क्या बताई गयी है ,१४-१५ साल की लड़की बाल मजदूर की परिभाषा में नहीं आती है ।

rakhshanda said...

thank u bhaiya for ur support,n sorry ki main aapko reply nahi kar payi,believe me,in do ghatnaaon ne mujhe itna pareshan kar diya tha ki in dino normal nahi rah payi thi...kuchh achha nahi lag rahaa tha..par jab se sab kuchh likh diya hai,,aisa lagta hai jaise dil ko thoda sukoon mil raha ho...waise kaise hain bhaiya aap?
aor kaisi rahi aapki holi...khoob masti ki hogi...hehe...bura na maanen 'holi hai'