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4.4.08

कुमार विकल

गालियाँ

फ़ैक्टरी के मालिक ने

मेरे बेटे को गालियाँ दीं

हरामख़ोर...

सूअर की औलाद

कुत्ते...कमीने

और न जाने क्या-क्या

मेरा बेटा सुनता रहा

रोता रहा...


अब मैं अपने बेटे को गालियाँ दे रहा हूँ

उसने मालिक को

बराबर की गाली क्यों नहॊं दी

क्यों वह

मेरी ढलती उम्र

बीमार माँ

और स्कूल में पढ़ते भाई

के बारे में सोचता रहा

और रोता रहा ।


नींद
मैं शहर के घंटाघर की बूढ़ी घड़ी से

पूछता हूँ

दादी माँ

मेरी नींद का क्या बना

तुम उसे वक़्त की गोद में सुरक्षित

क्यों नहीं रख सकीं

यदि अब भी कोई लोरी तुम्हारे पास है

तो मुझे थोड़ी देर के लिए सुला दो

मैं अपने मौहल्ले के चौकीदार से

पूछता हूँ ।


दु:ख
दु:ख लड़ने के लिए

एक बहुत बड़ा हथियार है

जो पहले

पानी की भाषा में

आदमी की आँखों में आता है

और फिर

हाथों की धरोहर बन जाता है

पानी के पत्थर बनने की प्रक्रिया

आदमी के इतिहास से पहले का इतिहास है

किन्तु अब

यह प्रक्रिया

आदमी के इतनी आसपास है

कि दु:खी क्षणों में

वह

पानी से एक ऎसा हथियार बना सकता है

जो दु:खों के मूल स्रोतों को

एक सीमा तक मिटा सकता है ।


वे दोनों
(एक परिचित प्रेमी युगल के प्रति)


अच्छा हुआ

वे दोनों

मेरे जीवन से ऎसे निकल गए

जैसे दो प्रेमी

पुस्तक-मेले में आएँ

और बिना कोई क़िताब ख़रीदे

केवल सूची-पत्र इकट्ठे करके ले जाएँ ।

लेकिन मेरा यह डर है

इसी तरह वे

एक-दूसरे के जीवन से चले जाएंगें

बिना एक-दूसरे की क़िताब को पढ़े हुए


क्योंकि उनके लिए

अभी तक जीवन

मात्र एक जिस्मों का मेला है

अक्षरों

शब्दों, वाक्यों

पुस्तकों का नहीं

जिनमें लोगों के दुख-सुख रहते हैं

मनुष्य के मन की प्रेमकथा कहते हैं ।

(कुमार विकल जन्म: 1935 जन्म स्थान वज़ीराबाद, ज़िला गुजरात (अब पाकिस्तान में)
कुछ प्रमुख कृतियाँ एक छोटी-सी लड़ाई (1980), रंग ख़तरे में है 1987), निरुपमा दत्त मैं बहुत उदास हूँ (1993)
विविध रूसी और विभिन्न भारतीय भाषाओं में कविताऒं का अनुवाद। )

(kuchh bihari aur kuchh bahri chutiye mere pichhe lge hain, kumar vikal is ghor sankat me aap bade yad aate ho)

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