Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

5.4.08

कहां लिखा है कि मुस्लिम हूं तो मांसाहार ही करूं?????....

पिछले कई दिनों से स्कूल में बच्चों की परीक्षाएं चल रही हैं तो उसमें व्यस्त रही क्योंकि प्रश्नपत्र बनाने से लेकर उत्तरपुस्तिकाएं जांचने तक बहुत जिम्मेदारी रहती है। भड़ास पर लिखने का समय नहीं मिलता है लेकिन दो-चार दिन में नजर मार लेती हूं। कल घर में जो हुआ उसने मजबूर कर दिया कि भड़ास पर जाकर उगल दूं वरना उस बात से तो दिल ही जला जा रहा है। कल हमारे घर डा.रूपेश आए और अब्बा हुज़ूर ने उन्हें भोजन का आग्रह करके मनुहार करके रोक लिया,वे अपनी व्यस्ततता के बावज़ूद प्रेमवश रुक गए। मैने जनाब डा.रूपेश के लिये शाकाहारी भोजन बनाया लेकिन मेरी बेटी ज़िद करके दस्तरख़्वान पर दोपहर का उसके द्वारा पकाया गोश्त लेकर बैठ गयी। मैंने उसे दबी जुबान से मना किया लेकिन वो मानी नहीं। इस बीच हमेशा की तरह हमारे अब्बा हुज़ूर और जनाब बातों में मशगूल थे और विदेशी गायक माइकल जैक्सन का जिक्र आया तो मेरी बेटी ने बीच में उछल कर कहा कि अभी हाल ही में उसने एक गाना गाया है जो समझ में तो कुछ ज्यादा नहीं आता पर उस गाने में अल्लाह शब्द कई बार आया है और ढेरों अरबी शब्द हैं और शायद हो सकता है कि वह कन्वर्ट होकर मुस्लिम बनने का इरादा रखता होगा जैसे कि विश्वप्रसिद्ध मुक्केबाज़ कैसियस क्ले कन्वर्ट हो कर मुहम्मद अली बन गये थे। दुनिया मुसलमान बनने की राह पर है लेकिन हमारे घर के लोग हैं कि डा.अंकल के कारण हिन्दू बने जा रहे हैं। उसका इशारा हमारे खाने-पीने में आये परिवर्तन की ओर था। बच्चे ते़ज़, चटपटा और मसालेदार मांसाहार के शौकीन हैं लेकिन मैंने जबसे डा.रूपेश के कहे अनुसार अपने भोजन में बदलाव लाया है मैं जोकि हाईब्लड प्रेशर की एक भयंकर मरीज़ा थी अब बिना दवाओं के स्वस्थ हूं बस ध्यान करती हूं और भड़ास से जुड़ी हूं यही मेरे स्वास्थ्य का राज़ है। क्या कारण है कि लोग अभी भी खान-पान को धर्म या मजहब से जोड़ कर देखते हैं जबकि डा.रूपेश कहते हैं कि खान-पान पेट का विषय है और धर्म आत्मा का विषय है,कुछ भी खाने पीने से आप अधार्मिक नहीं हो जाते; शाकाहार और मांसाहार का मुद्दा धर्म जैसी विराटता का करोड़वां हिस्सा भी नहीं हो सकता है। कहां लिखा है कि मुस्लिम हूं तो मांसाहार ही करूं? अगर ऐसा लिखा भी है तो मैं इसे मानने से आप सबके सामने इंकार कर रही हूं। जिसे मेरे बारे में जो सोचना है सोचे मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। यशवंत भाईसाहब जानते हैं कि डा.रूपेश की भोजन संबंधी सोच कितनी शाइस्ता है।
भड़ास ज़िन्दाबाद

5 comments:

Anonymous said...

बाजी,मैं आपकी बात से पूरी तरह से सहमत हूं।

हिज(ड़ा) हाईनेस मनीषा said...

आपा,आपने सही लिखा है अगर स्वस्थ रहना है तो शाकाहार ही ठीक है और अगर जीभ का चटोरापन देखना है तो कुछ भी खाइये लेकिन बकौल डा.रूपेश डेढ़ इंच की जीभ के लिये सारे शरीर को कष्ट क्यों दिया जाए....

गौरव मिश्रा (वाराणसी) said...

aapa mai bhi dr.saab ki baat ko sahi manta hu.......

rakhshanda said...

aap ne theek kaha,waise jahan tak M.Jackson ke Islam se impress hone ki bat hai to Islaam hai aisa...jo iski panah mein aata hai bas isi ka ho jata hai...

Anonymous said...

munavvar ji ki jai,

satay vachan.

hamen hamre hisaab se jeene do.

Jai Bhadaas
Jai Jai Bhadaas