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2.4.08

ये कहाँ आ गए हम ?


अभी कल शाम की बात है, बाबा बाज़ार से वापिस आये तो बडे थके थके से नज़र आये . कारण पूछा तो जवाब मिला बढ़ती महंगाई देखकर मन बोझल हो जाता है,’’ बेटा मंहगाई का ये दानव जिस तरह से अपना मुंह फैलाता जारहा है,समझ में नही आता आने वाले दिनों में किस किस को निगल जायेगा. ये कोई नयी बात नही है,बाबा जब भी बाज़ार से वापिस आते हैं उन्हें ये चिन्ता यूंही निढाल किये रहती है. मैंने कहा बाबा जब हमारी ये हालत है तो सोचिये, इस देश का गरीब आदमी कैसे जी रहा होगा, बाबा धीरे से हंस दिए थे ‘’बेटा जी, इसे जीना थोडी कहते हैं,ये तो बस जीवन को ढोना हुआ,आये दिन किसानों कि आत्महत्या, शहर में बढ़ता खून खराबा,आतंकवाद सब इसी कि देन तो हैं,लेकिन सबसे ज्यादा तरस मुझे मध्य वर्ग पर आता है,क्योंकि सब से ज्यादा चिन्तंनिये स्थिति बेचारे मध्य वर्ग कि है,जो न इधर का रहा न उधर का. मैं अभी इस विषय पर उन से और बात करना चाहती थी पर कुछ कारणों से नही कर पायी.पर उनकी ये बात मन में कहीं ठहर सी गयी थी,जब ज़रा ध्यान से सोचा तो उनकी बात पूरी तरह से समझ में आगई.आज जो हालत हैं वो हमें कहाँ ले जायेंगे ,हम खुद नही जानते.चीजों की कीमतें आसमान को छू रही हैं.ज़मीन से लेकर एक सूई तक की कीमत कई कई गुना बढ़ चुकी है.अमीर और गरीब के बीच का फासला इतना बढ़ चूका है कि उसके आगे आसमान की उन्चाइयां भी काम नज़र आती हैं . गरीब आदमी तो तब भी इन हालत को अपना नसीब जानकार संतुष्ट हो जाता है लेकिन असल मुसीबत तो मध्य वर्ग कि है जो न तो गरीब है न ही अमीर,जो खुद को अमीरों जैसा दिखाना चाहता है,जिस के शौक जिस की ज़रूरतें धीरे धीरे अमीरों वाली हो गयी हैं पर source of income उसके क़दम रोकती है,उसे चीख चीख कर उसकी कमजोरी का अहसास दिलाती है लेकिन वो क्या करे,वो तो रुक भी नही सकता, चाहे तो भी नही,अपने जैसे ही लोगों को होड़ में आगे निकलते देखता है तो बेतहाशा भागना शुरू कर देता है,चाहे क़दम साथ दें या नही. ख्वाहिशों, आकान्शाओं की ऐसी होड़ लगी है कि हर आदमी उसे पूरा करने में खुद तक को भूल बैठा है. ऐसा लगता है एक अंधा रास्ता है जिस में एक ही सिम्त में लोग दौड़ रहे हैं,मंजिल कहाँ है,खुद उन्हें भी नही मालूम. और अंजाम----शाएर ने इन्हीं के लिए कहा है -------मेरे लिए किसी कातिल का इन्तेजाम कर

करेंगी क़त्ल खुद अपनी ज़रूरतें मुझको

High blood pressure,डिप्रेशन और दिल कि बढ़ती हुयी बीमारियाँ अंजाम की भयानक तस्वीर खुद दिखाती हैं .

कभी कभी सोचती हूँ आने वाले हालात कैसे होंगे,कहाँ जाकर हम रुकेंगे? पर जवाब कहीं नही मिलता,आज हर ओर ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने की चाहत दिखाई दे रही है,आज के युवा वर्ग का तो बस एक ही मिशन है,handsome salary पैकेज पाना,वो आँखें बंद करके वही profession चुन रहा है जो उसे पैसे की इस अंधी दौड़ में न सिर्फ आगे कर दे बल्कि एक छलांग में बाकी को काफी पीछे छोड़ दे,आज जिसे देखिये अपने बच्चों को इंजिनियर डॉक्टर बनाना चाहता है या बिजनेस मैनेजमेंट में भेज रहा है,उस profession को लोग हिक़ारत की निगाह से देखते हैं जो इस दौड़ में उन्हें पीछे कर सकते हैं…क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि कोई माँ बाप अपने बच्चे को लेखक या शिक्षक बनाने का सपना देखें?

किसी और की क्या बात करें,खुद अपने घर में कई बातें आने वाले कल की अजीब सी तस्वीर दिखाती हैं मुझे,अभी एक हफ्ता पहले की बाट है,मेरा भाई(अभी १४ साल का है) मुंह बनाये नाराज़ नाराज़ सा घूम रहा था,मैंने वजह पूछी तो जो वजह उसने बात्यी,सच कहती हूँ मुझे हैरान कर गयी,पापा उसके लिए shopping कर के आये थे,और उसे अपनी जींस पसंद नही आई थी,मैंने जींस देखी और हैरानी से पूछा कि ये अच्छी भली तो है,क्या कमी है इसमें? पता है उसने क्या कहा?'आपी देखने में तो अच्छी है पर branded कहाँ है,आजकल branded dresses का fashion है,पापा इस बात को समझते ही नही’कितनी अजीब बात है ना ,जब इतने इतने बच्चे की ये mentality हो तो ये दौड़ हमें कहाँ रुकने देगी?यही वजे है कि आज किसी को किसी के दुख दर्द की तो छोडिये,बात करने कि फुरसत नही है,किसी और की शिकायत क्या करना,मेरे पापा के पास न बच्चों के लिए समय है न mama के लिए,बैंक से आते ही study room में जाते हुए ‘don’t disturb me’ का एलान कर देना रोज़ का मामूल है.मामा कभी बर्दाश्त खो देती हैं तो शिकायत करने की गलती कर जाती हैं तब जवाब मिलता है ‘तुम्हें क्या मालूम,आज बैंक कितने competition के दौर से गुज़र रहे हैं,हंसी खेल नही है जॉब करना…और ममा खामोश हो जाती हैं कि खामोशी से बढ़कर अच्छी कोई दावा नही है.पर मेरा दिल चाहता है उनसे पूछूँ कि पापा इस competition में तो आप जीत जायेंगे पर क्या जिंदगी के ये पल ये छोटी छोटी खुशियाँ जो आप अपने लोगों से छीन रहे हैं,क्या ये दुबारा वापस आसकेंगी?

पर न में कह सकती हूँ न ही वो सुनना चाहेंगे,क्योंकि जिस अंधी दौड़ का वो हिस्सा हैं,वहाँ लोग आंखों से अंधे ही नही कानों से बहरे भी हो जाते हैं.

4 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

सुन्दर है आपा...

Unknown said...

aapa bahut marmik. ek andhi daud....ke bare me khra vishleshan

Anonymous said...

बहुत अच्छा वर्णन किया है आपने आपा जी ....इस दौर ने सचमुच सब कुछ छीन लिया है.

यशवंत सिंह yashwant singh said...

sach kaha aapne. aapki lekhni lagatar dhardhaar hoti ja rahi hai. badhayi. ese sensativity aur nazar ko kayam rakhne ki zarurat hai.

yashwant