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5.4.08

पत्रकार मनीषा पांडेय,मैं अर्धसत्य नामक ब्लाग की माडरेटर मनीषा नारायण हूं

"ब्लागर और पत्रकार मनीषा पांडेय ने वेबदुनिया डाट काम को टाटा बायबाय कह दिया है। उन्होंने दैनिक भास्कर से खुद को जोड़ लिया है। वे भोपाल में अपना नया काम एक अप्रैल को संभाल लेंगी। मनीषा चर्चित ब्लाग बेदखल की डायरी की माडरेटर हैं। उन्होंने वेब दुनिया में हिंदी ब्लागिंग को लेकर काफी कुछ काम किया है। मनीषा की नई नौकरी पर भड़ास की तरफ से ढेरों शुभकामनाएं।"

आज कई दिन बाद जबसे यशवंत दादा वापिस गये हैं तबसे अब तक मैं अपने भाई डा.रूपेश के घर आने का समय नहीं निकाल पायी थी। आज मीडिया रिलेटेड इन्फ़ार्मेशन वाली पट्टी पर इस खबर को देख कर एक बार फिर से मन में कुछ टीस सी उभर आयी। मुझे याद है कि मेरे और मनीषा पांडेय के नाम एक जैसे होने के कारण कितना विवाद हुआ था। यशवंत दादा ने बिना शर्त माफ़ी मांगी, मैंने भी भाई के कहने पर इससे माफ़ी मांगी कि आपको मेरा नाम मनीषा होने पर दुःख हुआ इसके लिये माफ़ करें, इस लड़की ने मेरे भाई को फोन करके कानूनी तिकड़मों की धमकी दी लेकिन भाई ने इसे अपने ही अंदाज़ में हंस कर सहन कर लिया। मैं भी उस घटना को भूलने की कोशिश कर ही रही थी कि एक बार फिर इसका नाम भड़ास पर दिखा तो लगा कि किसी ने ज़ख्म में उंगली डाल कर कुरेद दिया हो। हिन्दी के लिये बहुत कुछ किया होगा इस लड़की ने पर इसने एक बार भी यह नहीं माना आज तक कि जो कुछ भी इसने किया था वो एक गलतफहमी के चलते हुआ या इसने जो लोगों का दिल दुखाया उसके लिये इसे जरा भी शर्मिंदगी हुई है। मन में पीड़ा एक बार फिर से उभर आयी है कि इस लड़की को एकबार तो कम से कम कह दूं कि तुमने जो किया था वो गलत और पीड़ादायक था,तुम्हारे साथ लोगों की सहानुभूति इसलिये चिपक जाती है क्योंकि तुम एक स्त्री हो और मेरा तिरस्कार इस लिये कर दिया जाता रहा है क्योंकि मैं एक लैंगिक विकलांग हूं,हिजड़ा हूं। मुझे घिन आती है तुम्हारे जैसी सोच से चाहे तुम कितने भी बड़े सामाजिक कद के क्यों न हो तुम्हारी सोच का बौनापन हम सबने देखा है, अगर सचमुच पत्रकारिता करती हो या सुलझी सोच का एक अंश भी है आत्मा के किसी कोने में आज भी जीवित तो मुझसे आकर मिलो और एहसास करो अपनी गलती का।

जय भड़ास

2 comments:

rakhshanda said...

itna depressed mat hon Manisha didi,aaj nahi to kal duniya aap ko zaroor samjhegi...be strong

Anonymous said...

main rakshanda jee se ittefaaq nahi rakhta, naa to aaj tak duniyan ne kisi ko samjha hai na samajhne jaa raha hai, magar badalte jamane ke saath hame sabhi ko uski jagah dene ki pahal karni hogi, or uski suruaat bhi hamen hi karni hogee.

Mujhe to bas itna hi kahna hai.

Mujhe maneesha ji se na shikayat hai na shikwa or na hi sahanubhooti, kyounki ye jahan jitna mera hai utna hi inka bhi, bas app tamam log kripya karke sabhi ko barabri ka jagah deen.

Jai Bhadaas
Jai Jai Bhadas