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15.4.08

तस्वीर का दूसरा रूप

आज सुबह भड़ास देखा ...एक कविता चस्पा। कविता में बेहद सलीके से महिलाओं का दर्द बयान किया गया और हर पुरूष को लताड़ लगाई गई। मानो हर किसी के लिए महिला एक मांस का टुकडा भर होती है। ये तो एक उदाहरण मात्र है। इसी तरह आप दलितों पिछड़ों की बात करने वालों को ले लीजिए। उनके लिखे को पढ़ेंगे तो लगेगा जैसे सारा समाज सवर्ण मानसिकता वाला है और वो खुद सबसे बड़े इनके हितैषी। लेकिन तस्वीर का दूसरा रूप भी है।

मैं कहना चाहता हूँ इन जैसी कविताओं के लेखकों, ढेर सारे सामाजिक सवालों को उठाने वाले बुद्धिजीवियों, चौथे स्तंभ के नाम पर काम करने वाले पत्रकारों.... का दूसरा रूप भी होता है। कितना हास्यास्पद लगता है जब आप किसी विकृति के बारे में लिखें और ख़ुद आप उस विकृति के कहीं न कहीं शिकार हों। आज एक शगल बन गया है की महिलाओं के दर्द का ऐसा बयान करो मानो उनके दर्द का सारा ठेका आपने ही ले रखा हो। आज एक शगल बन गया है दलितों पिछड़ों के मुद्दे को उठाते हुए हर किसी को दलित विरोधी और पिछड़ा विरोधी घोषित कर देना। ये जो हिप्पोक्रेसी है, इसी से मुक्त होने की जरूरत है। और ये चीज आपको भड़ासियों में देखने को नहीं मिलेगी।

भडास पर लोग गालियाँ निकालते हैं...बराबर है..लोग गुस्सा निकालते हैं पर यहां दोगले चरित्र वाले नहीं मिलेंगे। मतलब, ऐसे लोग नहीं मिलेंगे जो कहें कुछ, लिखें कुछ, दिखाएं कुछ, बताएं कुछ। जिनको मैं जानता हूँ वोः दोगले चरित्र वाले लोग नहीं हैं...। भडास की यही खासियत है की यहाँ ऐसे लोग नही हैं...जो पीते तोः दारु हों और लिखते उसकी बुराइयों के बारे में हों। .....त्रासदी भारतीय पत्रकारिता, साहित्य, राजनीति, समाज की है...इनसे जुड़े लोगों की है कि ज्ञान पेलिए और बंद कमरों में अज्ञानियों वाले काम करिए। अब ये ज्यादा दिन नही चलेगा, ये उम्मीद की जानी चाहिए क्योंकि साहित्य और पत्रकारिता में नई पौध जो आई है वो बेहद संवेदनशील और जागरूक है।

महिलाओं के उत्पीड़न का सवाल हो या दलितों पिछड़ों के उत्थान का मसला, इन मुद्दों को जो लड़ने वाले लोग हैं, उन्हें सबसे पहले तो अपनी सोच और अपने व्यवहार में इन मुद्दों के प्रति इमानदार होना पड़ेगा वरना आप कहते रहिए, होना जाना कुछ नहीं है। मेरे कहने का आशय सिर्फ इतना है कि भारतीय समाज में अपने लेखकों, कवियों, साहित्यकारों, पत्रकारों, नेताओं...आदि के प्रति जो अविश्वास पैदा हुआ है उसके पीछे सिर्फ वजह एक है। वो है कथनी और करनी में अंतर। इस फांक को खत्म करने पर ही हमारा देश और हमारा समाज सचमुच मानवीय और लोकतांत्रिक हो सकेगा।

आप सबका
हृदयेंद्र

5 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

भाई सिंह साहब,मैं किसी दूसरे के चरित्र के बारे में तो नहीं जानता लेकिन निजी तौर पर अपने बारे में कह सकता हूं कि बेहद कमीना,पुष्ट,दुष्ट और न जाने क्या-क्या हूं तमाम लोगों के लिये मुझे लगता है कि ये चरित्र भी साला सापेक्ष सी चीज होती है जैसे किसी वेश्या के लिये ग्राहक अन्नदाता भगवान होता है और एक सामाजिक सोच रखने वाले के लिये एक दुश्वरित्र व्यक्ति.... वेश्या तो उसे हरगिज दुश्चरित्र न कहेगी लेकिन समाज तो दोनो को ही बुरा होने का प्रमाणपत्र पकड़ा देगा... बस जागे रहिये खुद को देख कर.....

Anonymous said...

bhai satya kaha,

waisai gyan pelne wale sare field main hain jo band kamre gyan bhool jate hain or kuch or hi.........

baharhaal rupesh bhai ne sahi kaha ki khud ko jada rakhiye

JAi JAi Bhadaas

Anonymous said...

अपने अंदर झांके दूसरी की छोड़ें वैसे जहां तक मुझे याद है। पिछली बार जब भाड़ास किसी दूसरे ब्लागर के साथ विवाद में उलझी थी, तो यशवंत जी ने किसी पर भी निजी टिप्पणी न करने का अनुरोध करते हुए आगे से भड़ास की सदस्यता सक्रीनिंग के बाद करने का एलान किया था। लेकिन मुझे लगता है जो नए भड़ासी आ रहे हैं, वह पहली बात को या तो जानते नहीं या जानबूझ कर नजरअंदाज कर रहे हैं। हृदेंदर जी ने भी वही किया है। क्षमा चाहूंगा मैं न तो आपको जानता हूं न ही जिसके बारे में आपने लिखा है उन्हें जानता हूं, लेकिन इतना जानता हूं कि भड़ास के नाम पर कीचड़ कीचड़ खेल कर आप कुछ हासिल नहीं कर पाएंगे। चंद हिट्स के सिवा बाकी आप सब ज्ञानी इस मूढ़ की बातों को नजरअंदाज कर सकते हैं। आभार। अनाम लिखने की वजह ये है कि मैं नहीं चाहता किसी पक्ष के साथ मुझे जोड़कर इस पर आगे और कींचड़बाजी हो। बस मैं अपनी बात कहना चाहता था, जो सबके सामने हैं।

hridayendra said...

bharat ki yahi trasdi hai anaamdas ji yahan napunsakon ki puri fauj khadi hai aapko bhi napunsak banaey ke liye.....aapki jaankaari ke liye bata dun hridayendra pratap singh ka vyaktitva aisa nahi hai ki usey kisi par kichad uchalney ki jarurat padey....haan dogaley log mujsey bardaast nahi hotey...aur haan unko nanga karney ka hausla bhi rakhta hun....baki duniya ki parwaah karta to aaj hridayendra nahi hota....bina maangi salaah key liye vinamra shukriya...

Anonymous said...

bhai aap apni bhadaas nikalo,

charitra dohan sabhi jagah hota hai, main to patrakaar nahi hoon magar patrakaron ko hi jhelta rahta hoon ;-)

apka katahan satya hai or aap bas lage raho.

Jai Jai Bhadaas