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3.4.08

यह न सोचो कल क्या हो / मीना कुमारी

यह न सोचो कल क्या हो
कौन कहे इस पल क्या हो



रोओ मत, न रोने दो
ऐसी भी जल-थल क्या हो



बहती नदी की बांधे बांध
चुल्लू मे हलचल क्या हो



हर छन हो जब आस बना
हर छन फ़िर निर्बल क्या हो



रात ही गर चुपचाप मिले
सुबह फ़िर चंचल क्या हो



आज ही आज की कहें-सुने
क्यो सोचे कल, कल क्या हो

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंडित जी,ईना-मीना-डीका-डाए-डामानिका-माका-नाका-माका-चिका-पिका-रिका-रमपम पोश-रमपमपोश.......
मीना जी तो बस मुझमें ऐसे ही बसतीं हैं...

यशवंत सिंह yashwant singh said...

sundar rachna...

yashwant