Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

16.4.08

येः भड़ास चीज ही ऐसी है...

सभी मित्रों को सुप्रभात.....उम्मीद है सभी भाई बंधू स्वस्थ और प्रसन्न होंगे....आज फिर भड़ास पर पहुँचा....थोडी खुशी थोड़ा गम...जैसी कुछ अनुभूति हुयी.....दरअसल मेरी एक पोस्ट से कुछ विवाद जैसी हालत पैदा हो गई..बहुतों को सच इस कदर बुरा लगा की मुझे ही बिना मांगी कई सलाह दे दी गई......खैर...इस बीच कुछ सवाल जरुर मेरे मन में आ रहे हैं....मसलन....क्या भड़ास पर भी लअफाजी होगी...क्या यहाँ भी सच लिखने,बोलने और पड़ने से परहेज किया जायेगा.....कुछ बेहद उत्साही लोगों के भड़ास पर होने के बावजूद यहाँ भी वही होगा जो दूसरी जगहों पर मठाधीश टाइप लोअग कर रहे हैं....आख़िर सच को सच कब बोला जायेगा....तमाम विचारकों और विद्वानों से सवाल का जवाब चाहता हूँ....कुकर्मी पत्रकारों और साहित्यकारों को यहाँ भी नंगा करने से बचा जाएगा...बस लिखा जाएगा अच्छा, अच्छा और साफ जो सबको अच्छा लगे....बुरा न लिखे क्यूंकि इससे कुछ मठों के उजड़ने का खतरा पैदा हो जाएगा....कुछ हितों पर चोट पहुँचेगी....सच दो तरह के होते हैं..एक प्रिया सच और दूसरा अप्रिय...यहाँ भी अप्रिय सच कोई नही बोलना चाहता क्या..अगर बुरे को बुरा कहा जाए तोः कोई मानने को तैयार क्यों नही होगा....आप सबको जो पसंद आये वोः करें....मैं यहाँ लिखूंगा लेकिन वही जो सबसे ज्यादा सच होगा..फिलहाल अब मैं कुछ दिनों के लिए दर्शक की भूमिका में रहूंगा.....और उस स्थिति को भी एन्जॉय करूँगा......उम्मीद है येः भूमिका भी मजेदार होगी......बाकी हम तोः दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है जिधर से गुजर जायेंगे रास्ता बना लेंगे.......अंत में इतना ही की कुछ ऐसा लिखिए और कीजिये जिससे इस ठहरे हुए पानी में लहर तोः पैदा हो वरना लम्बी-लम्बी लफ्फाजी का मतलब क्या....
हृदयेंद्र

8 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

हृदयेंद्र जी,बस इतनी जल्दी.... अरे मेरे भाई ये तो ऐसा परिवार है जहां लोग एक दूसरे को चुटकियां लेते ही हैं इधर सब हद दर्जे के ढीठ लेकिन भावुक हैं बुरा कोई नहीं मानता बस कुछ देर को दुखी हो गये तो गरिया लेते हैं एक-दूसरे को भी और फिर गले मिल जाते हैं ऐसे ही अधपगलों दिलवालों(दिलवालियों का भी)जमावड़ा है अपना ये परिवार... लिखते रहो मेरी जान अभी तो बहुत कुछ लिखना है...

VARUN ROY said...

हृदयेंद्रजी ,
दुर्भाग्य से मैं वो पोस्ट नहीं पढ़ पाया था जिस पर कि तथाकथित विवाद हुआ. पर एक बात मैं कहना चाहूँगा कि अगर आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता चाहते हैं तो लोगों को भी ये स्वतंत्रता तो देने होगी. आख़िर टिपण्णी वाली जगह इसी के लिए है और हम सब अपने लिखे पर लोगों की टिपण्णी चाहते हैं. अब टिपण्णी तो लोग अपनी सोच, समझ और विचारधारा के अनुरूप ही देंगे. मेरा ख्याल है कि टिप्पणियों को सम भाव से लेने की जरूरत है. आपको जो सच लगता है उसे लिखते रहिये, हमलोग अपनी मति के अनुसार टिप्पणियां देते रहेंगे. एक और elderly सलाह दूँगा कि - सच कहना अगर बगावत है तो समझो कि हम बागी हैं- इसे हमेशा याद रखिये. बाकी बातें तो रूपेश भाई ने कह ही दी है.
वरुण राय

Anonymous said...

bhai sab sach pel dalo,

acha ya bura ki parwaah mat karo, waisai bhi sach sach hota hai acha ya bura nahi or sach hai to teekha bhi hoga hi, lagne do teekha bas daalte raho jee bhar ke.

Jai JAi Bhadaas

Anonymous said...

HRIDAYENDRA JI...AAP TO GAJAB KI CHIJ HAIN PRABHU...JAI HO...JAI HO...JAI HO BHADAS.

Anonymous said...

हृदयेंद्रजी आपने भी वही बात कर दी जो अक्सर इस तरह बिना सोचे समझे अधिकार मांगने वाले, अपनी जिम्मेदारी को हाशिए पर रख देते हैं, ये नहीं सोचते कि जिम्मेदारी कौन निभाएगा। अगर भड़ास पर लिखने का मतलब हर उस बंदे जो आपकी नजर में दोगला, बुरा या मक्कार है के खिलाफ गाली बकना या अपने नजरिए से उसे नंगा करना ही मकसद है, तो दो जहां का मालिक आप सब का भला करे। वरूण राए जी को यूं तो पोस्ट न पड़ने की वजह से इस बात पर टिप्पणी करने का हक नहीं था, लेकिन उन्होंने समझदारी दिखाते हुए बजाए उस पोस्ट पर टिप्पणी करने आपको अपनी जिम्मेदारी और आपके नजरिए पर आने वाली टिप्पणियों को खुले दिल से स्विकार करने की जो बात कही है वो भी काबिल ए गौर है। सभी भड़ासियों के लिए, सभी चिट्ठाकारों के लिए। इस लिए उनकी टिप्पणी सार्थक महसूस होती है।

दूसरी बात आपने कहा है कि आपकी पोस्ट पर विवाद हो गया है, लेकिन मुझे ऐसा कुछ नहीं लगता। क्यों मेरी टिप्पणी के सिवा सबने आपकी पोस्ट से सहमति जताने वाली टिप्पणियां दी है।

तीसरी बात कि मैंने बिन मांगे सलाह दी, आपने इसे बात पर तन्ज के लहजे में कहा है। इसके लिए बस वरूण जी की ही टिप्पणी की ओर ध्यान दिलाना चाहूंगा कि कमेंट्स का ऑप्शन ही इसी लिए है, अगर आपने कमेंट डालने की छूट दे रखी है मतलब आप कमेंट सुनने के लिए तैयार हैं। अगर आप इस बिन मांगी सलाह से इतने ज्यादा व्यथित हैं, तो आपने सक्रीनिंग करने के बाद इसे पोस्ट ही क्यों किया। आपने तो वह विकल्प चुना है कि आपके पास करने के बाद ही टिप्पणी प्रकाशित हो। फिर आप इसे नजरअंदाज भी कर सकते थे। दूसरी बिन मांगी सलाह मैं ये दूंगा कि आप कमेंट देने की ऑप्शन हटा ही दें। या अपने चहेतों को ही कमेंट देने की छूट देने का विक्लप चुन लें। ब्लागर ये सुविधाएं भी देता है। ये तो वो बातें थी जो मेरी टिप्पणी पर कहीं बातों का जवाब है।

मैं आपसे इतना कहना चाहता हूं, कि वह गीत जी हों या कोई और आप उनके चरित्र या निजी चीजों के बारे में कुछ भी कहने से पहले ये सोच लें कि इसके पीछे आपका मकसद क्या है। जो आप कह रहें हैं उस बात का प्रमाण क्या है। आपने आगे सीरिज भी शुरू करनी है, हो सकता है आप उसमें उन लोगों की प्रशंसा भी करें सिर्फ निंदा के लिए ही नहीं प्रशंसा के लिए भी प्रमाण कh जरूरत होती हैं। जिसके बारे में आप लिख रहे हैं ये भी बताएं उनके साथ आपका निजी तर्जुबा कितना है और कैसा हैं। उन्हें आप कितने अर्से से जानते हैं। उनसे कब कब कहां मिले। कब बंद कमरों में उसने कुछ ऐसा किया कि आपको शर्मिंदा होकर उनके बारे में ऐसा लिखना पड़ा, जो सवालिया निशान के दायरे में आ जाए। हम ये बातें भी जानने के उत्सुक हैं। अगर आप कुछ उनसे मुलाकातों के किस्सों के जरिए बताएं, तो हमें भी समझने में आसानी होगी कि आप क्या कहना चाहते हैं। हो सकता है आप सही ही हों। सब को पता तो चले। ये भी बता दें कि ये सब लिखने से हमारे समाज के लोगों की नपुंसकता कैसे दूर होगी। फिर बता दूं कि भड़ास पर मैं सिर्फ मीडिया जगत की ताजा जानकारियों के लिए आता हूं। पहले के विवाद के दौरान मुझे बहुत दुख हुआ था। इस लिए मैंने कभी भड़ास या ऐसे किसी भी ब्लाग का हिस्सा न बनने का मन बनाया था। तभी यशवंत जी ने बडप्पन दिखाते हुए, भड़ास को सार्थक बनाने के मंत्र सुझाते हुए विवाद को खत्म किया था। उसके बाद सब वैसा ही था भी, लेकिन आप की पोस्ट मुझे भड़ास से ज्यादा द्वेष और ईष्या से भरी लगी। किसी की चर्चित कृति की प्रशंसा आपको पसंद नहीं आई तो आपने जेहन में कहीं पड़ी हुई इधर उधर की कोई चुभन जाहिर कर दी। बाकी आप सबसे समझदार हैं, जो चाहें करें। इस विषय पर से मेरी आखरी टिप्पणी ही समझें। क्यों कि मैं नहीं चाहता कि इस कीचड़बाजी का मैं हिस्सा बनूं। आभार।

hridayendra said...

aadarniya gumnaam ji aap jitna waqt mujey apni behad gairjaruri salaah dene mein lagatey hain..agar khud ko koi kaam ki salaah de paayein to bahut kuch behtar apney liye kar paayengey...ummid hai bhavisya mein mera kimti waqt jaya nahi karengey...
kunwar hridayendra pratap singh rathaur

Anonymous said...

kunwar hridayendra pratap singh rathaur..ji
aapko bahut kuch kehne ka vichar tha lekin bujurgon ki ek baat yaad aa gai ki keechad me pathar maro to khud par hi cheente aate hai.

Anonymous said...

मैंने तो पहले ही कहा था, कि आपके पास वक्त ही कहां है। देखिए न आपके पास तो हिंदी में टंकित करने का वक्त तक नहीं हैं। आपके पास गीत से मिलने का वक्त भी नहीं था, ताकि आप जान पाते जो आप लिखने जा रहे हैं वो कितना सही है। आपने कौन सा नया तीर मारा है। आपके कथित नई सोच वाले पत्रकार कहां तथ्य जानने में वक्त जाया करते हैं। सब से मजेदार मनगढ़ंत कहानी को किसी भी खबर के साथ जोड़ कर लिखना आपने उन्हीं से सीखा होगा। वैसे आपके पास अपने नाम को लम्बा करने का काफी वक्त है, तभी तो हर पोस्ट के साथ ऐसा होता जा रहा है। मेरी इस टिप्पणी का जवाब देते समय आप अपने नाम के साथ दो अलंकार और लगाना न भूलिएगा। आभार मुझे समय देने के लिए। मैं आप को ये आभार प्राप्त करने का मौका देता रहूंगा।