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17.4.08

पत्रकारिता से अच्छी अपनी चाय की दुकान

भड़ास पर पहली पोस्ट है। परिचय देने लायक बहुत कुछ नहीं है फिर भी नियमानुसार देने की कोशिश करता हूं। मैं साहित्य केचस्के से दिल्ली आया और पेट चलाने के लिए पत्रकार बन गया। नौकरी का संकट था इसलिए फ्रीलांसिंग करने लगा। बाद में कुछ चिरकुट टाइप अखबारों में काम किया। यहां काम तो ...... फाड़कर लिया जाता था पर पैसे देने में फटने लगती थी। हर जगह अलग-अलग गलीजखाने थे। लिखने बैठो तो पूरा रंडी रोना हो जाएगा। ऐसे में दो ही विकल्प थे कि काम करने के बाद भी उनका भारोत्तोलन करता या फिर नौकरी छोड़ देता। कई जगह ऐसा ही हुआ तो मालिक-संपादकों के पिछवाड़े पर लात मारकर पेशे से ही बाहर हो गया। आजकल दिल्ली यमुनापार के शकरपुर के एक मोहल्ले में चाय की दुकान चलाता हूं और जहां-तहां अपनी भड़ास निकालता रहता हूं। वहां कोई मुझे नहीं जानता। झूठी विद्वता का रौब है और ही अहंकार। गरीब लेकिन बड़े दिलवाले लोगों की नई दुनिया भी देख रहा हूं। इतनी कमाई हो जा रही है कि मजे से अपने दायित्व का निर्वाह हो रहा है। पत्रकारिता के नाम पर दोगले लोगों को तेल लगाने से अच्छा रि शेवालों का जूठा ग्लास धोना लग रहा है। अभी मोबाइल फोन चालू नहीं करवाया है पर पास के एक ग्राहक के साइबर कैफे में अपनी भड़ास निकालने का जुगाड़ फिलहाल कर लिया है। उम्मीद है कि मेरी भड़ास ज्यादा कड़वी भी हो भाई लोग झेल लेंगे।

8 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

बिहारी भाईसाहब,आपने तो हम सबके दिल में सबसे बड़ी जगह पर कब्जा कर लिया,दिल्ली आने पर आपको सीने से जरूर लगाऊंगा,जितनी कड़वाहट हो उगल दीजिये आपका स्वागत है.....

bambam bihari said...

मैं अपनी भड़ास निकालने के च कर में यह भी नहीं देख पाया कि यशवंत जी ने पोस्ट डाल दी है। उन्होंने मेरा पत्र सार्वजनिक करके कोई गलती नहीं की है योंकि यही मैं करनेवाला था। ब्लाग पर आने की मंशा ही अपने को (कई बार दूसरों को भी)सार्वजनिक करने की होती है।

Anonymous said...

तो पत्रकार भाइयों खासकर भड़ािसयों, िहम्मत है तो चलो छोड़ो पोताखोरी...और खोलो चाय की दुकान...केवल बमबम िबहारी और इनके जैसे तमाम लोगों का मजा लेने के अलावा कुछ करने की िहम्मत है?

VARUN ROY said...

कूवत वाले हो भाई . भड़ास हम आप जैसे लोगों के लिए ही है. आप जैसे लोग जैसे जैसे भड़ास से जुड़ते जायेंगे, पत्रकारिता सहित अन्य जगहों की सड़ांध से भी लोग परिचित होते रहेंगे . इसी तरह शायद बदलाव की बयार बह निकले.
वरुण राय

Deep Jagdeep said...

बम बम भाई कसम से आप ने तो मेरे दिल की बात कह दी। आज कल कई बार महसूस होता है कि मैं भी ऐसे ही हालातों से जूझ रहा हूं। दरअसल कुछ मक्खनबाज और मालिक के पिछवाड़े धोने वाले लोगों हालात बद्दतर कर दिए हैं। न तो उन्हें पत्रकारिता का तक नहीं पता दूसरा जिन्हें पता है उन्हें वो इस वजह से टिकने नहीं देते कि उनकी पोल खुल जाएगी। हम पर गरिया कर खिसियानी बिल्ली की तरह अपनी कुर्सी नोचते रहते हैं। क्या आपकी दुकान पर नौकरी मिल सकती है। मैं अप्लाई करना चाहता हूं।

Deep Jagdeep said...

बम बम भाई कसम से आप ने तो मेरे दिल की बात कह दी। आज कल कई बार महसूस होता है कि मैं भी ऐसे ही हालातों से जूझ रहा हूं। दरअसल कुछ मक्खनबाज और मालिक के पिछवाड़े धोने वाले लोगों हालात बद्दतर कर दिए हैं। न तो उन्हें पत्रकारिता का तक नहीं पता दूसरा जिन्हें पता है उन्हें वो इस वजह से टिकने नहीं देते कि उनकी पोल खुल जाएगी। हम पर गरिया कर खिसियानी बिल्ली की तरह अपनी कुर्सी नोचते रहते हैं। क्या आपकी दुकान पर नौकरी मिल सकती है। मैं अप्लाई करना चाहता हूं।

Ankit Mathur said...

अनाम साहब, किसी व्यक्ति के सराहनीय प्रयास
की आड़ लेकर आप छुप कर क्यों अपनी
कटारी चला रहे हैं. पहली बात तो ये है कि ये एक
ब्लाग है, कोई रणभूमि नही। रही बात हिम्मत की
तो बडो बडो की मां चोदने की हिम्मत है
भडासियो में सामने आओ।
बिहारी भाई आपका स्वागत है भडास पर।
जय भडास।

Anonymous said...

बम बम भोले, हर हर महादेव,
बिहारी भाई आपका स्वागत है, और रही कड़वाहट की बात तो फ़िक्र नक्को यहाँ सभी कडुए अनुभव वाले ही हैं और जो नही हैं वह भी।
आपके साथ आनंद भी आएगा और कंदभी जब आप तेल लगाने वालों की दास्ताँ बताइयेगा। सभी चुतियों की चढ्ही उतार डालो भाई , लगने दो कड़वा लोडे के बालों को ।
अपन भड़ास के बम हैं परवाह नही किसी की

जय जय भडास