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6.4.08

यह कैसा क्रिकेट

जब आईसीएल शुरु हुआ तो दुनिया के क्रिकेट में इसे एक क्रांति ही माना गया। लगा कैरी पैकर्स की वापसी हो गई। 70 के दशक के अंत में आयोजित इस सिरीज में खेलने वाले खिलाड़ियों को पर बैन लगे। अंतत: इसका अंत सुखद हुआ।

क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने पैकर्स के साथ मिलकर वर्ल्ड सिरीज प्रारंभ की। नाइट क्रिकेट और रंग बिरंगी पोशाको के आगमन के क्रिकेट को रंगीन और दिलचस्प बनाया।

आईसीएल की शुरुआत भी पैकर्स की तरह हुई। क्रिकेटरों पर प्रतिबंध लगे। क्रांतिकारी बदलाव भी हुए। क्रिकेटरों को पैसा देने के लिए क्रिकेट बोर्ड बाध्य हुए। बीसीसीआई को काउंटर करने के लिए आईपीएल लांच करना पड़ा। दुनियाभर के आला दर्जे के खिलाड़ियों पर खुब दाव लगे। लेकिन यह आईसीएल क्या कर रहा है भई।

लगातार सारे मैचों को अंतिम गेंद तक रोचक बने रहना बढ़ती प्रतिस्पर्धा का सबूत है या फिर या जानबूझकर किया जा रहा है। हैदराबाद हीरोज और लाहौर बादशाह के बीच खेले गए दो फाइनलों के फाइनल ओवर को देखकर तो आप यह सोचने को मजबूर हो सकते हैं।

पहले फाइनल में हीरोज के अब्दुल रज्जाक ने अपने अंतिम ओवर में पहले तो तीन वाइड गेंदे डालीं, फिर एक रन आउट समेत तीन विकेट चटकाकर मैच अपनी टीम को जीता दिया। लंबे समय तक पाकिस्तान की ओर से जुझारू क्रिकेट खेलने वाले इस खिलाड़ी से अंतिम ओवर में तीन वाइड गेंद फेंकने की तो शायद ही कोई उम्मीद करेगा। रोमांच थ्रिल सबकुछ एक ओवर में पहले तीन वाइड गेंद डालना फिर तीन विकेट निकालना। बात यही खत्म नहीं होती।

बेस्ट ऑफ थ्री के दूसरे फाइनल के फाइनल ओवर में राणा नावेद ने भी कुछ यही किया। इस गेंदबाज ने भी अपने अंतिम ओवर में दो नो बॉल फेंकी। फिर एक रन आउट समेत दो विकेट लेकर मैच टाई कर दिया। हो सकता है कि यह संयोग ही हों। लेकिन अगर क्रिकेट के रोमांच को कैश कराने के मकसद से ही क्रिकेट के अनिश्चित चरित्र का दोहन किया गया तो क्रांति जो होनी थी हो गई लोग इससे उक्ताना प्रारंभ कर देंगे।

संयोग शब्द का मजाक मत बनने दो भाई।

3 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

गुरू भइया,सचमुच कितना गम्भीर मुद्दा है क्रिकेट, जरा सोचिये कि अगर कोई राष्ट्र क्रिकेट न खेले तो भी भला क्या वो राष्ट्र सभ्य और विकसित माना जा सकता है? राष्ट्र के समेकित उत्थान के लिये हम सब को इस तरह का राष्ट्रीय चिंतन करना परम आवश्यक है वरना भारत तो पिछड़ जाएगा मनोरंजन की दौड़ में। क्या दे पाएंगे हम अपनी आने वाली पीढ़ी को ? न क्रिकेट ,न नाचना , न गाना-बजाना; सोचिये हमारी अगली पीढ़ी के लिये हम अपराधी न बन जाएंगे अगर हम उनके लिये मनोरंजनात्मक देशज धरातल न बना पाए तो। "क्रिकेट के अनिश्चित चरित्र का दोहन किया गया तो क्रांति जो होनी थी हो गई लोग इससे उकताना प्रारंभ कर देंगे।

संयोग शब्द का मजाक मत बनने दो भाई।"
हम सब भड़ासी इस सोच को गांठ बांध कर राष्टीय सोच बनाने में हर संभव प्रयत्न करेंगे क्योंकि क्रांति तो अब खेल और मनोरंजन से ही होगी,जरा हमारे प्रवक्ता मनीष राज भी इस ओर ध्यान दें तो कितना अच्छा हो वो तो बेकार के लफड़ों में उलझ कर इतना मूल्यवान जीवन व्यर्थ नष्ट करे दे रहे हैं ,अरे मनीष भाई,ऊपर वाले को क्या मुंह दिखाओगे? जरा क्रिकेट-गुल्ली डंडा भी तो खेलिये.....

Unknown said...

dr. sab aap pichhe me bhi itna lmba tippiya diye...kirket asr kr gya kya ji?

Anonymous said...

bhai cricket kaisaa bhi ho hamare yahan bikta hai so bikne do,

sab khareed rahe hain.

or hamare media ka kya kahna bina cricket ke to ye poori hi nahi hoti.

aakhir media bhi to ye hi kar rahi hai jo aapko ICL main laga janab.

Jai Bhadaas
Jai Bhadaas