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16.4.08

''मन अगिया बैताल बा,का कहीं का हाल बा''

''मन में आग लागल बा,तन धिप रहल बा,बालू पर गोर झरक रहल बा,गांड से पसीना बह रहल बा,कांख के केश ग़मकुआ तेल माफिक महक रहल बा,चाचा के लाश जरना पर रख कर पंडीजी मंतर पढ़ रहल बा,पिछ्वाडी फारा में लटकल मोबाइल ट्रिन...ट्रिन....ट्रिन...ट्रिन ...इ कौन हाउ रे कि श्मशान में भी चैन नैखत।''
यह श्मशान का दृश्य था,जहाँ मेरे चाचा को मुखाग्नि दी जा रही थी,माहौल गमगीन था,जिस घर में शहनाई के धुन बजने वाले थे उस घर में शोक का तबला बज रहा था...आह रे आह ...भतीजी के बियाह का अरमान लिए चाचा हम सब को छोड़ कर बड़ी दूर चले गए,विधि का विधान,विधाता कि क्रूरता,प्रकृति का मन मातंग मिजाज,सब कुछ अप्रत्याशित। लेकिन लोग का करे?पूरा गाँव सन्न...दरवाजा पर अंडाल-पंडाल,रंग रोगन सब फीका पड़ गया,विवाह के भोज कि तैयारी कि जगह अब श्राद्ध के भोज कि तैयारी। बर्दाश्त नही हो रहा है,दीवार पर सिर टिकाए खुशबु बहन का निस्तेज चेहरा,चाची का श्वेत-सुर्ख चेहरा....घर-परिवार के लोगों को शोक संतप्त देख कर ख़ुद को क्षण-पल के लिए भी रोक नही पाया ,फक्फका कर रुलाई छुट गयी,अब लो एक बगल से सब चालू...बड़े बुजुर्ग कंधा पर हाथ रख कर दो बोल बोलते भी नही कि वे लोग ख़ुद रोने लग जाते थे। चलो जो huaa बहुत बुरा हुआ हिम्मत रख ,सब ठीक हो जायेगा ...ऐसे शब्द हिम्मत देते महसूस होते थे।
तो इधर श्मशान में घंटी घनघनाया तो बुझे मन से रिसिभ किया...उधर से संगीता का भाई मुकेश था। ''जी सर,परनाम...अभी थाना प्रभारी थाना पर हमको बुलाए हैं,बोले हैं कि तुम्हे साथ में चलना होगा ताकि संगीता के पति का घर दिखलाया जा सके,तो हम क्या करें? मैंने उसे बोला कि यार तुम पगला गए हो का ?थाना प्रभारी को एगो सह्बलिया चाहि कि तुम अभियुक्त का घर दिखाने जाओगे,लेकिन मुकेश कि बातों से ऐसा लगा कि वह जाना चाहता था तो मैंने कहा ठीक है तुम चले जाओ लेकिन सम्पर्क में रहना। उसके बाद लाश को जला कर वापस अपने घर आया,नहान सोनान के बाद देह दुखने लगा थातो एगो चद्दर और तकिया ले कर छत पर चला गया....गंगा कि तरफ़ से आने वाली पुरबा हवा देह को राहत दे रही थी,चैन सा महसूस हो रहा था,जी में आया कि अंकवार में भर लूँ इस हवा को। रात के दस बजने वाले थे,छत पर मोबाइल का टावर बढिया काम करता था तो लगा दिया मुकेश को उधर से बताया कि अभी भगवानपुर थाना में हैं,थाना प्रभारी आराम फरमाने गए हैं बोले हैं कि देर रात चलेंगे तो अभियुक्त धरा जायेगा इसलिए इन्तजार कर रहे हैं। बड़ा गजब बात है। मैंने मुकेश से बोला कि ठीक है सुबह में बताना कि रात में क्या हुआ। तो छत पर नींद बुलाने का अथक जतन करने लगा,लेकिन अचानक परिवार पर हुए इस वज्रपात के कारण मूड ख़राब था,ये साली नींद आए भी तो आए कैसे। रात भर आसमान के तारों पर निगाह टिकाए बेचैन मन भोर्की में जा कर तनी शांत हुआ। शीतल पवन कि थपकिओं ने थोरी नींद ला दी। फ़िर करीब सुबह के छः बजे मोबाइल कि घंटी से ही नींद खुली उधर से मुकेश ही था बताया कि सर जी रात भर बैठल-बैठल गांड गरम हो गया ,भोर्की में थाना प्रभारी दल बल के साथ हमको ले कर संगीता के ससुराल गए और उसके पति संजीव झा और उसके ससुर को पकड़ कर अभी थाना पर आए हैं, सर जी उधर मेरे साथ बहुत बुरा हुआ,सारा गाँव थाना प्रभारी के सामने ही मुझे धमकी देता रहा,गरियाता रहा ,औरत,मरद,बाल बच्चा सब लगभग हम पर टूट पडा था। बाद में प्रभारी ने फोर्स के साथ मुझे गाड़ी पर बिठा दिया तब जा कर मेरी जान में जान आयी। अब हम क्या करें? तो मैंने मुकेश से बोला कि तुम घर चले जाओ ,पुलिस को जो करना है वह करेगी। उसके बाद मैंने थाना प्रभारी को फोन लगाया ..परनाम पाती के बाद उसने बड़े दार्शनिक अंदाज में बोला कि मनीष जी मेरे मन में भी एक भडास है और वह यह है कि संगीता के पति को तो मैंने गिरफ्तार कर लिया लेकिन संगीता और उसके बच्चे को खुशी और सम्मानजनक जिन्दगी आख़िर कैसे दिया जाए? मुझे बड़ा अजीब लगा कि ये पुलिस लोग ऐसा कब से सोचने लगी? तो फ़िर लम्बी बातचीत हुई,डाक्टर रुपेश जी ने मुम्बई के एक वकील से धारा के बारे में जो राय दी थी उसे बताया और बोला कि ठीक है फ़िर कभी आपसे मिलते हैं तो लम्बी बातचीत होगी।
ताजा हालत यह है कि संजीव झा और उसके महान पिता जी फिलहाल जेल में हैं लेकिन यक्ष्प्रष्ण अब भी मुंह बाए खड़ी है कि संगीता और उसके बाल बच्चे का क्या किया जाए? दोनों पक्ष के लोगों ने पंचायत कि बात रखी कि समाधान तलाशा जाए लेकिन संगीता कि सुनें तो वह कहती है कि कोई अनचैती पंचैती नही क्यूंकि उस जानवर के परिवार के अत्याचार से दूर रह कर मैं अपने दोनों बच्चों को उचित माहौल व संस्कार देना चाहती हुं । मुझे न तो संजीव झा जैसा पति चाहिए और नही उसकी संपत्ति का कोई अंश,मुझे बस सुकून भरी जिन्दगी चाहिए।
तो भडासी भाई बहिन log ,बड़ी जटिल स्थिति है ...पुलिस तो अपना काम कर गयी..अब हम लोगों को संगीता के आश्रय व पुनर्वास के सम्बन्ध में कुछ सोचना है ,कुछ ऐसा रास्ता तलाशना होगा कि यह मामला समाज के समक्ष एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत कर सके।
तो भडास खानदान के अभिभावकों ,भैओं ,बहिनों मुंह तो खोलो ,कुछ तो बोलो कि अब क्या किया जाए?
जय भडास
जय यशवंत
मनीष राज बेगुसराय

8 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

मनीष भाई,सबसे पहले तो आपको दंडवत प्रणाम कि ऐसी दुःख भरी दशा में भी आप अपना दुःख भूल कर संगीता के लिये दौड़भाग कर रहे हैं। थाना प्रभारी महोदय को भी मेरी ओर से प्रणाम क्योंकि उन्होंने एक मानवीयता से जुड़ा सवाल उठाया है। संगीता बहन को अगर उनके मायके के लोग सम्मान से रखकर उन्हें योग्यतानुसार पैरों पर खड़े होने का मौका नहीं दे पा रहे हैं किसी भी कारणवश तो उन्हें बता दीजिये कि उनका एक भाई डा.रूपेश श्रीवास्तव मुंबई में अभी भी जिन्दा है मैं आप सबको साक्षी मान कर अपनी सारी चल-अचल संपत्ति उनके और बच्चों के नाम कर दूंगा। ये कोई बड़बोलापन या सामयिक आवेश में कही बात नहीं है.....
जय जय भड़ास

ALOK AGRWAL said...

मनीष सर,डाक्टर साहब जैसे महान लोगों ने तो ऐसी बात कह कर अपने विशाल ह्रदय का परिचय दिया है,संगीता के लिए हम सब अपनी तरफ़ से हर सम्भव चाहे आर्थिक प्रयास हो या कोई अन्य,इसके लिए हम सब साथ हैं. भड़ास संचालक मंडल के सदस्य इस बात पर एक निर्णय दें ताकि संगीता के लिए ठोस पहल की जा सके.

VIJAY SHARMA said...

संगीता और उसके बच्चे के लिए सभी भडासी अगर एकमत होकर निष्कर्ष तलाशे तो बहुत बेहतर परिणाम सामने आयेंगे. मनीष भाई आप आदेश तो कीजिये की हम संगीता और उसके बच्चे के लिए क्या मदद करें?

KUNDAN KARN said...

इस मामले ने यह दर्शा दिया की इंटरनेट विरोध का एक ठोस मंच बन चुका है और भड़ास इस क्रांति का अगुआ बन गया है. मनीष जी आप सचमुच बधाई के पात्र हैं की आपने संगीता के मामले को इतना बल दिया की पुलिस ने उसके क्रूर पति को गिरफ्तार तो कर लिया लेकिन अब हम सभी लोगों को उसके पुनर्वास के सम्बन्ध में एकमत होकर नए सिरे से विचार करने की जरुरत है. डाक्टर रुपेश ने जिस विशालता का परिचय दिया है उसको दिल से सलाम करते हैं.

GARGI SINGH said...

संगीता के लिए हम सबों की सहानुभूति साथ है. भड़ास के क्रांति के इस मंच पर मैं हमेशा साथ हूँ. संगीता और उसके बच्चे के लिए जो आदेश होगा उसके लिए मैं हमेशा तैयार हूँ.आर्थिक मदद हो या कोई और अन्य मदद,आदेश तो कीजिये हम लोग हमेशा तैयार हैं.

Anonymous said...

doctor rupesh aur unki team badhai ki paatr hai .ham ''bhadas'' ko salaam karte hain.

VARUN ROY said...

मनीष भाई ,
सब भड़ासी मिलकर संगीता बहन और भांजे या भांजी जो भी है, के उचित जीवन यापन का ऐसा बन्दोवस्त करें की संगीता बहन के स्वाभिमान को कोई ठेस नहीं पहुंचे . और यशवंत भाई क्यों चुप हैं . वे हमारा मार्गदर्शन करें.
आप तो साधुवाद के पात्र हैं ही, ये रूपेश भाई मुझे कुछ अतिवादी किस्म के जीव मालूम पड़ते हैं. फौरन सब कुछ अर्पित करने को तैयार हो गए जैसे इसी के लिए तैयार बैठे हों कि कब मौका मिले और किसी की मदद के लिए सब न्योछावर कर दें. संगीता बहन के साथ-साथ आपके दुःख में भी हम आपके साथ हैं.
वरुण राय

Anonymous said...

भाई मनीष,
यार आप चीज़ क्या हो ये समझ मैं नही आ रही है, वैसी जो भी हो; हो बड़े कमल के, कोमल भी और मजबूत भी, आपको सहस्र नमन करने को दिल करता है और कर भी रहा हूँ।
चाचा जी का असमय देहावसान और उस से संबंधित कार्य ने ह्रदय को द्रवित कर दिया है। समझ मैं नही आता की आपको क्या कहूं , कहने को कुछ नहीं है मगर पीड़ा मैं हूँ।
संगीता बहन का मुद्दा बड़ा ज्वलंत है और इस का उचित निदान आना तय है क्यूंकि भडासी कमर कस चुके ऐसा तो साफ दिख रहा है। रुपेश भाई ने अपना पक्ष पहले ही रख कर सबको चौंका दिया है, मगर ये ऐसा उदाहरण है की जो भडास का समाज के प्रति नजरिये को दर्शाता है, मैं जनता हूँ की लफ्फाज़और लफ्फाजी सबसे ज्यादा कहाँ है कहूँगा नही क्यूंकि सभी जानते हैं मगर हमारा परिवार अपने दायित्वों के प्रति सतत सजग हो रहा है।
और बस प्रतीक्षा में रहता है इसके निर्वहन को।
समस्या है तो निदान भी होगा,
बस उचित निर्णय सुनने को सब बेताब हैं।

यशवंत दादा और रुपेश भाई के साथ तमाम गुरुजनों से साग्रह निवेदन है की चुतिये भडासी को जल्दी से जल्दी आदेश दे दें ।

जय जय भडास