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7.4.08

रेशमी दिल्ली

रेशमी दिल्ली
ऊपर से शांतिवन का पोस्टर बनी
भीतर से हा-हा कार है ये रेशमी दिल्ली
कल के मुखपृष्ठ आज रद्दी में है पड़े
चालू-सा इक अखबार है ये रेशमी दिल्ली
योग्यता को रौंदते हैं सिफारिश के आक्टोपस
तिकड़म का बाजार है ये रेशमी दिल्ली
गालिब की गजल कैबरे के शोर में दबी
सेक्स का बुखार है ये रेशमी दिल्ली
रहने के हमें एक बरसाती नहीं मिली
वैसे कुतुबमीमार है ये रेशमी दिल्ली
कोई निजाम इसको ठीक कर नहीं सका
सदियों से बीमार है ये रेशमी दिल्ली
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६
(पिछली गजल पर दी टिप्पणी के लिए भाई अनिल भारद्वाज और डॉ.रूपेश श्रीवास्तवजी का आभार)

5 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंडित जी,रेशमी दिल्ली में नेताओं ने इतने टाट के पैबंद लगा दिये हैं कि रेशम दिखता ही नहीं वो तो आप कवि हैं तो आपकी नजर टाट छोड़ रेशम पर ही पड़ती है वरना हमें तो टाट और नेताओं के ठाठ ही दिखता है दिल्ली में......
हम आपके आभार का भार सहन नहीं कर पाते प्रभु आप जितना समय इसमें लगाते हैं उतने में ही कुछ जोरदार लिख दिया करिये ताकि मुल्क और कौम का कुछ भला हो सके......

अबरार अहमद said...

बडे भईया क्या कहने इस रेशमी दिल्ली। बहुम उम्दा। आशीर्वाद दें।

Anonymous said...

bhai saab,

dilli to reshmi hi hai,

taat ke paiband doctor bhai ke mutabik bhale hi netaoun ne lagaye hoon magar main to kahoonga ki hum ne hi apni dilli main paiband piro rakha hai,

baharhaal shandaar rahi aapki ye reshmi dillli

Anonymous said...

doctor ji,abraar bhaai,rajnish ji se puri tarah sahmat ho kar aapse isi tarah ke sahyog kaa aakankshi aapkaa manish .pranam kubul karein

अनिल भारद्वाज, लुधियाना said...

कल के मुखपृष्ठ आज रद्दी में है पड़े
चालू-सा इक अखबार है ये रेशमी दिल्ली
योग्यता को रौंदते हैं सिफारिश के आक्टोपस
तिकड़म का बाजार है ये रेशमी दिल्ली

These lines of Bhai Suresh neerav has great meanings.It cannot be explain through words it can only be felt by heart. Eagerly waiting for next attack on society.