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6.4.08

इस बदलते दौर में


इस बदलते दौर में इतना तो ख्याल रखा है।
हया के चादर में रिश्तों को संभाल रखा है।।

तलाशते तलाशते जिनको इक उम्र गुजर गई अपनी।
उस मंजिल को तमाम रास्तों ने संभाल रखा है।।

मुकददर को कोसने वालों सुन लो।
अपने हाथों में तुमने वो मलाल रखा है।।

इस सूरत में ढूढते हो हमारे सीरत की तस्वीर क्यूं।
वक्त ने दे के सबकुछ हमें अब भी फटेहाल रखा है।।

इजाजत हो तो जरा मसजिद तक हो आउं मैं भी।
इक मुददत से इस दिल में गुनाहों को पाल रखा है।।
अबरार अहमद

13 comments:

Anonymous said...

बहुत खूब। हर एक शेर बहुत ही शानदार है। बधाई।

अनिल भारद्वाज, लुधियाना said...

दिल खोलकर रख दिया अबरार तुमने। ऐसे ही लिखते रहो। मेरी शुभकानाएं तुम्हारे साथ है।

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

अबरार भाईजान,बेहतरीन रचना है,प्रशंसा जितनी करी जाये कम लग रही है.....

Anonymous said...

masha allah,
dil ke dard ko dil se bahar nikala.

aapke dard ko ek bhadaasi hi samajh sakta hai.

Jai Bhadaas
Jai Jai Bhadaas

VARUN ROY said...

बहुत अच्छी ग़ज़ल है अहमद भाई .
मियां आपके शेर में इतना वजन कहाँ से पैदा होता है.
मैं तो रदीफ और काफिये में ही उलझ कर रह जाता हूँ.
ग़ज़ल की अन्तिम पंक्ति जिसे मकता या मसला कहते हैं
बेहतरीन है.

Anonymous said...

bahut khub. dil khush kar dya.

विनीत खरे said...

अबरार भाई, सुभान अल्लाह! मियां समां बाँध दिया आपने तो..... वाह

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...
This comment has been removed by the author.
rakhshanda said...

very very beautiful...is se zyada kuchh nahi kahungi varna vo bhi kuchh galat samjha jayega...haha

Unknown said...

kya bat hai masha allah

Unknown said...

भाई अबरार अहमद बेहतरीन गजल के लिए मुबारकबाद। यूं ही लिखते रहें और दिखते रहें।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

अबरार अहमद said...

हौसलाअफजाई के लिए सभी भडासी साथियों का धन्यवाद। आप सबका स्नेह पाकर गदगद हूं। आगे भी ऐसे ही आप सब के प्यार और इज्जत की कामना करता हूं। बडे भईया सुरशे नीरव जी से आशीर्वाद चाहूंगा।

Anonymous said...

apun thora paachhe aayaa abraar bhaai magar majaa aa gayaa.

mahsus ki jaanevaali rachnaa ke liye badhai