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23.4.08

पत्रकारिता पुरानी अंदाज नया

पत्रकारिता पुरानी अंदाज नया
साहब...
यहां हर अखबार की अपनी अलग कहानी है
अंदाज बदलता रहता है, पत्रकारिता पुरानी है
हर पत्रकार अपने आप को बेहतर बताता है
चाहे पत्रकारिता का उसे क-ख न आता है
हमें तो कविता के आइने में, उसे सच्चाई दिखलानी है
अंदाज बदलता रहता है....
सीनियर्स ने मुझे डाली आदत शब्दों से खेलने की
जरूरत ही नहीं पड़ी कभी, जबरन कविता पेलने की
छोटे ये बात जान चुके है, बड़ों को समझानी hai
अंदाज बदलता रहता है...
सभी तीस मारखां जानते हैं पत्रकारिता के असूल
नौकरी करते लाला जी की इन्हें क्यों जाते हैं भूल
भूलने की आदत इनके दिल से हमें भुलानी है
अंदाज बदलता रहता है...
दूसरों को नसीहत दें जरूर, पहले खुद के दिल में झांके
न दूसरों से अपनी तुलना करें, न अपनी कीमत आंके
भाव में बहकर जो लिख दिया, वह शायद मेरी नादानी है
अंदाज बदलता रहता है, पत्रकारिता पुरानी है
विजय जैन

2 comments:

अनिल भारद्वाज, लुधियाना said...

सभी तीस मारखां जानते हैं पत्रकारिता के असूल
नौकरी करते लाला जी की इन्हें क्यों जाते हैं भूल

Thanks for telling us the truth.

अबरार अहमद said...

जैन जी पहले तो सलाम कबूल करें। आपको पहली बार पढा भडास पर। सच को आइना दिखाते हुए आपकी लेखनी काफी धारदार है। कविता बहुत अच्छी लगी। बधाई स्वीकारें।