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7.4.08

यहां महिला चरित्र सिर्फ और सिर्फ कामोत्तेजना पैदा करते हैं

शहरी भारत के किशोरों में आजकल हेंताई एनीमेशन फिल्मों के प्रति एक अजीब सा आकर्षण देखने को मिल रहा है। इन एनीमेशन फिल्मों की कहानियां ज्यादातर संभोग जैसे भारतीय समाज में वर्जित विषयों पर आधारित होती हैं। इनमें किशोरवय लड़कियों के साथ ज़ोर-जबर्दस्ती का बोलबाला होता है। जापान की देन और दुनिया भर में लोकप्रियता की जड़ें फैलाते हेंताई एनीमेशन पर ये रिपोर्ट।

महानगर हों या नगर आजकल हर जगह के साइबर कैफे मालिक असमंजस में हैं। वजह, उनके कंप्यूटरों पर आमतौर देखी जाने वाली अश्लील फिल्में नहीं बल्कि एक बिल्कुल ही नया चलन है। ये चलन है अश्लील के साथ-साथ फूहड़ और गंदी कार्टून फिल्में देखने का। अगली बार जब भी आप किसी साइबर कैफे में जाए तो कंप्यूटर के हिस्ट्री बटन पर क्लिक करके देखें या फ़िर अगर इससे भी ज्यादा रोमांचक नज़ारे देखने हो तो ईएमपीईजी फाइलों की सर्च करें। प्रबल संभावना इस बात की है कि आपकी कंप्यूटर स्क्रीन नंगेपन से भरी भद्दी तस्वीरों से चमक उठेगी। छुपी नज़रों से सेक्स को निहारने का दुनिया भर में ये एक नया चलन शुरू हुआ है। नाम है 'हेंताई'। इस जापानी शब्द का अर्थ है अश्लील, या ज्यादा शाब्दिक अर्थ में जाएं तो 'काम विकृति'। हेंताई चूंकी पूरी तरह से काल्पनिक और एनीमेटेड है लिहाजा ये लोगों के मन में कोई अपराधबोध भी नहीं पैदा करती।... यहां महिला चरित्र सिर्फ और सिर्फ कामोत्तेजना पैदा करते हैं, उनके चेहरे कम उम्र उन लड़कियों की तरह होते हैं जिनकी कल्पना ज्यादातर सेक्स को लेकर कुंठित पुरुष किया करते हैं।

मझोले दर्जे के हिंदुस्तानी शहर जैसे भोपाल भी अब इसके बुखार से अछूते नहीं है। शहर के कोह-ए-फ़िज़ा इलाके में एक साइबर कैफे के मैनेजर बताते हैं कि इन अश्लील कार्टूनों को देखने वालों में बड़ी तादाद 20 साल से कम उम्र के किशोरों की हैं। उनके मुताबिक 'बड़ी उम्र के लोग ज्यादातर पुरानी चीज़ें ही देखते हैं।' दिल्ली यूनिवर्सिटी कैंपस के पास साइबर कैफे में काम करने वाले एक शख्स ने बताया कि कार्टूनों के इस विकृत रूप के प्रति लोगों में एक धुन सी सवार हो गई है, ये अश्लील कार्टून लोगों के मनोरंजन और रोमांच का नया ज़रिया बन गए है। दक्षिणी दिल्ली के साइबर कैफे के कंप्यूटरों के हिस्ट्री फोल्डर भी कमोबेश यही कहानी बयान करते हैं।

फिल्मों और कॉमिक्स के रूप में जापानी एनीमेशन, पश्चिमी दुनिया और बाक़ी हिस्सों में लंबे समय से लोकप्रिय है और हेंताई, जापान में बनने वाले सभी अश्लील कार्टूनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

बाहरी दुनिया, जापान में बनने वाली अमूमन सभी एनीमेटेड कार्टून फिल्मों को हेंताई के रूप में ही जानती है। लेकिन ऐसा है नहीं। जापान में इसकी कई श्रेणियां हैं: सबसे पहले तो हेंताई की होमोसेक्सुअल (यॉई) और हेट्रोसेक्सुअल (यूरी), दो अलग-अलग श्रेणियां हैं। पूरी तरह से खुले सेक्स वाली फिल्में 'सीनिन' (वयस्क) या 'इरो' (कामुक) कहलाती है। हल्की-फुल्की या फिर थोड़ी बहुत अश्लीलता वाले एनीमेशन को 'एच' (एक्की) कहा जाता है। 'बाकूनयू' एक ऐसी श्रेणी है जिसमें सामान्य से काफी बड़े-बड़े स्तनों वाली औरतो का जमावड़ा देखने को मिलेगा। 'इन्सेक्ट' कैटेगरी में परिवार के आपसी सदस्यों के बीच में सेक्स की कहानियां दिखाई जाती हैं। जापान में बनने वाली ज्यादातर 'मान्गा' फिल्में और कॉमिक्स 13 साल से ऊपर के लोगों को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं और इनमें कुछ न कुछ एच यानी अश्लीलता का पुट होता ही है।

हेंताई की एक और ख़ास पहचान हैं इनमें दिखाई जाने वाली काल्पनिक या कहें की असंभव कामक्रीड़ा की स्थितियां (सेक्सुअल पोज़ीशन) जो व्यावहारिक रुप में संभव नहीं है। राक्षसी आकृतियों, मृतात्माओं और रोबोटों के साथ सेक्स की कल्पनाएं, चित्रों में बड़े या संवर्धित शारीरिक हिस्सों का प्रदर्शन, बच्चों से सेक्स, बलात्कार, जानवरों के साथ सेक्स, जननांग विच्छेदन, वीर्य-स्नान और प्यार में आत्महत्या जैसे विषय हेंताई की फूहड़ कहानियों का रूप ले चुके हैं।

ज्यादातर अश्लील ब्लू फिल्मों की तरह हेंताई भी औरतों का अपमान और शोषण का जमकर प्रदर्शन करता है। गूगल सर्च इंजन भी इसके अनियंत्रित बहाव को गति दे रहा है। यहां मौजूद ज्यादतर लिंक बस क्लिक करते ही आपके सामने सुंदर, आकर्षक, चमकीली आंखों और शर्मीली मुस्कान धारण किए लड़कियों की तस्वीरें पेश करते हैं। लेकिन थोड़ी ही देर में ही ये काल्पनिक उड़ान इनकी भद्दी, फूहड़, अनैतिक कहानियों की वजह से आंसू और पीड़ा में तब्दील हो जाती है।

पॉर्न साइटों, सीडी, डीवीडी या फिर और भी तमाम माध्यमों के सहारे औरत को दुनिया भर में सेक्स के खिलौने के तौर पर पेश किया जाता रहा है। लेकिन हेंताई चूंकी पूरी तरह से काल्पनिक और एनीमेटेड है लिहाजा ये लोगों के मन में कोई अपराधबोध भी नहीं पैदा करती। न ही इन फिल्मों को देखते समय किसी को नैतिकता जैसी बातों की चिंता रहती है। यहां महिला चरित्र सिर्फ और सिर्फ कामोत्तेजना पैदा करते हैं, उनके चेहरे कम उम्र उन लड़कियों की तरह होते हैं जिनकी कल्पना ज्यादातर सेक्स को लेकर कुंठित पुरुष किया करते हैं।

जापान में आमतौर पर बिकने वाली दूसरी अश्लील सामग्री भी अधपके, नवयुवा चेहरों से भरी पड़ी होती है। कावाई (कम उम्र की सुंदरता) 1970 के बाद से जापान की लोकप्रिय संस्कृति के रूप में फल फूल रही है। पिकाचू ऑफ पोकीमोन निप्पन एयरवेज़ के सभी जहाजों की सुंदरता बढ़ा रहे हैं। हाराजुकू स्टाइल के पहनावे यहां चलन में हैं यहां तक की जापानी सशस्त्र बल का प्रतीकचिन्ह ही 'सुपर क्यूट' हैं।

सेक्स के दौरान औरतों के चरमानंद से भरे कामुक चित्रण की जापान में पुरानी पंरपरा रही है- 12वीं शताब्दी में भी यही हाल था। लकड़ियों पर उकेरा जाने वाला चीन का सत्रहवीं सदी का कामुक शुंगा चित्रण उन्नीसवीं सदी के मध्य तक यहाँ काफी लोकप्रिय रहा। इसकी सबसे ज्यादा मशहूर पेंटिगों में से एक है 'मछुआरे की बीवी का स्वप्न'। जिसमें एक विशालकाय और एक छोटा ऑक्टोपस, अधेड़ उम्र की औरत के साथ कामक्रीड़ारत है। इसके साथ लिखी कविता में दोनो ऑक्टोपस बाप-बेटे के द्वारा महिला को धीरे-धीरे उत्तेजित किए जाने का वर्णन है। छोटा ऑक्टोपस उसके गालों के चुंबन ले रहा है जबकि बड़ा अपनी भुजाओं को लिंग के तौर पर उपयोग करते हुए दिखाया गया है। आज के हेंताई की तरह ही शुंगा कला में भी वास्तविकता से परे भद्दी कल्पनाओं का अतिरेक था। लेखक अनिरुद्ध शंकर इसकी तरफ तेज़ी से बढ़ रहे रुझान को खतरनाक मानते हैं। ऐसा समाज जिसके साहित्य में औरतों के खिलाफ हिंसा और आक्रामकता जैसी चीजें स्वीकार्य होती हैं उसके बारे में कहा जा सकता है कि वो समाज खुद भी औरतों के प्रति हिंसा और अपमान का समर्थक होगा।

शुंगा कला सरकार के कड़े रुख की वजह से 19वीं सदी में लुप्त हो गई। सरकार का मानना था कि इस तरह की स्वच्छंद सेक्स संस्कृति पश्चिमी नकल का आभास देती है। बावजूद इसके 1920 तक जापान अंदर ही अंदर इरो-गुरो-नानसेंसू यानी कामुकता, बेढंगेपन और मतिहीनता को लेकर बेचैन हो रहा था। लेकिन पहले विश्व युद्ध के बाद फूहड़ता औऱ लंपटता के लिए बने कठोर क़ानूनों ने इनके फैलाव को रोके रखा। 1950 के बाद ये बंधन ढीले पड़ने लगे और दुनिया में जापान की किस्मत का सितारा चमकने के साथ ही हेंताई संस्कृति भी लोकप्रिय होने लगी।

सेक्स को लेकर खुलते जा रहे प्रिंट मीडिया ने भी जापान में कामोत्तेजना से जुड़ी आदतों को अपने तरीके से लोकप्रिय बनाया। शुरुआत में समलैंगिक संबंधों के बाज़ार को लक्ष्य बनाकर सामग्री पेश की गई जिसपर आगे चलकर सामान्य सेक्स से जुड़ी पत्रिकाओं ने कब्जा जमा लिया। इस तरह के सेक्स संबंधों के प्रदर्शन में तब से अब तक एक चलन आम रूप से देखने को मिलता है। बड़ी उम्र का मजबूत आदमी हमेशा अपने से काफी कम उम्र की स्त्री के साथ सेक्स करता है। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान पुरुष को महिलाओं के ऊपर हावी दिखाया जाता है।

अपनी छिटपुट आलोचनाओं की वजह से बाज़ार में मौजूद ये सेक्स गेम खुद को बचाने और जिम्मेदार साबित करने की कोशिश भी करते दिख रहे हैं। क्रिटिकल प्वाइंड नाम का वीडियो गेम शुरुआत में ही चेतावनी देता है- "हमारा मकसद किसी व्यक्ति का अपमान या हिंसा करना नहीं है। वयस्कों के बीच सहमति के तहत कोई कामक्रीड़ा उनके बीच भावनात्मक रिश्तों को मजबूत करती है। जिस चीज़ को पाने की आप इच्छा रखते हैं उसके लिए दबाव का इस्तेमाल न करें, चाहे आपका पार्टनर पुरुष हो या महिला।" लेकिन इसमें दिखने वाली वीभत्स काम क्रीड़ाएं बिल्कुल अलग कहानी बयान करती हैं।

हेंताई की उपलब्धता और महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाओं के बीच सहसंबधों पर शोध करने वाले लेखक अनिरुद्ध शंकर इसकी तरफ तेज़ी से बढ़ रहे रुझान को खतरनाक मानते हैं। ऐसा समाज जिसके साहित्य में औरतों के खिलाफ हिंसा और आक्रामकता जैसी चीजें स्वीकार्य होती हैं उसके बारे में कहा जा सकता है कि वो समाज खुद भी औरतों के प्रति हिंसा और अपमान का समर्थक होगा।

हाल ही में एक अमेरिकी साइट www.animetric.com ने सेक्स समाग्री के रूप में एनीमेशन की जरूरत पर बहस की शुरुआत की थी। लोगों का कहना था कि कार्टून बच्चों को ध्यान में रखकर ईज़ाद किए गए थे लिहाजा ये उन्हीं के लिए होने चाहिए। वेबसाइट के एक सदस्य 'फुक्का' ने पत्र के जरिए बताया कि शायद हिंसा के बाद आदमी शांति महसूस करता है। वो कहते हैं, 'ये कल्पनाएं पुरुषों को अपने महिला साथियों के कारण पैदा हुई कुंठा निकालने में सहयक होती हैं।'

ज्यादातर सदस्यों ने हेंताई फिल्मों के प्रति किसी न किसी तरह की नाराज़गी ही जताई। एक और सदस्य स्लिप स्ट्रीम के मुताबिक 'ज्यादातर हेंताई फिल्में बुद्धि से परे, वीभत्स कामक्रिया का नज़ारा पेश करती हैं, हालांकि कभी-कभी इनमें कुछ अच्छी कहानियां पेश करने की कोशिश की जाती है, लेकिन आधे रास्ते में ही ये कोशिश दम तोड़ देती है।'

चेन्नई की वेबसाइट www.animestan.7.foram.com जिसके ज्यादातर सदस्य भारतीय या फिर अप्रवासी भारतीय हैं, ने भी हेंताई पर बहस शुरू की। जब इसके कुछ सदस्यों ने दूसरे सदस्यों को इन फिल्मों के लिंक भेजे तो इसकी प्रतिक्रिया काफी गुस्से से भरी रही जैसे- 'यू रास्कल' और 'मैं तुम्हारे मां-बाप को बताउंगा'।

सामान्य तौर पर मनोरंजक कम और चिंता ज्यादा बढ़ाने वाली हेंताई एनीमेशन फिल्मों का युवाओं में इन दिनों खुमार छाया हुआ है मगर इंटरनेट के खुले ज़माने में इस पर लगाम कसने के तरीके बहुत ही सीमित हैं।

अतुल चौरसिया के साथ अरशद सईद ख़ान

sabhar: tehelka (HINDI)
http://www.tehelkahindi.com/GyaanVigyaan/204.html

5 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

अच्छा है महाराज, अब दूसरों काहगा ला-लाकर भड़ास पर डाल रहे हैं। लेकिन गाय और बैल का गोबर तो लीपने पोतने के काम आ भी जाता है पर ये तो सुअरी का गू है न लीपै लायक न पोतै लायक। कहीं आपने भड़ासियों का G.K. इम्प्रूव करने के लिये तो नहीं लिखा कि देखो इसे भी हगना कहते हैं गोबर के अलावा। अब भड़ासी कुछ दिनों तक इसी से लेपन संस्कार करेंगे। अगली पोस्ट आयेगी "सिनेमा का इतिहास: ब्लैक एंड व्हाईट से लेकर ब्लू फ़िल्मों तक".....

Unknown said...

kya bat hai dr. sab is gobber se koi davaee banaiye na....

rakhshanda said...

kafi daravne halaat hain..

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंडित जी,मैंने सुअरी के गू का अभी तक कोई औषधीय उपयोग नहीं पढ़ा है,एक काम किया जा सकता है कि हम कुछ दिलेर और प्रयोगधर्मी भड़ासी इसे मुंह पर लेप करके देख लेते हैं अगर हमारी कालिख उतर गयी तो ये अच्छा face pack बन कर मार्केट में आ सकता है,वालंटियर्स मेहरबानी करके संपर्क करें; अग्रिम धन्यवाद....

Unknown said...

dr. sab jo krna ho kijiye...lekin aap to invention ko pahle hi sarvjnik kr de rhe hain...public bidk jaegi guru