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15.4.08

मदर इंडिया - गीत चतुर्वेदी

geet chaturvedi ka apni kvita pr unka aatm-kathy-
इस कविता में जो घटना आती है, वह मेरे शहर मुंबई के पास स्थित उपनगर उल्हासनगर की है. एक दिन ये दोनों औरतें हमारे दरवाज़े पर आ खड़ी हुई थीं. बात 1995 की रही होगी. 1996 से 2001 तक मैंने लगातार कविताएं लिखीं. फिर ब्रेक लग गया. लंबा. 2001 में ही भास्कर ज्वाइन किया और तब से कई शहरों में डेरे डाले. 2005 में भोपाल पहुंचा, तो वहां कुमार अंबुज ने बहुत प्रेरित किया लिखने को. मदर इंडिया उस पारी की पहली कविता थी. वागर्थ ने अक्टूबर 2006 अंक में छापा इसे. और मई 2007 में इस पर भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार की घोषणा हुई. कविता कई मित्रों ने पहले भी पढ़ी होगी

मदर इंडिया
(उन दो औरतों के लिए ‍ जिन्‍‍होंने कुछ दिनों तक शहर को डुबो दिया था)

दरवाज़ा खोलते ही झुलस जाएं आप शर्म की गर्मास से
खड़े-खड़े ही गड़ जाएं महीतल, उससे भी नीचे रसातल तक
फोड़ लें अपनी आंखें निकाल फेंके उस नालायक़ दृष्टि को
जो बेहयाई के नक्‍की अंधकार में उलझ-उलझ जाती है
या चुपचाप भीतर से ले आई जाए
कबाट के किसी कोने में फंसी इसी दिन का इंतज़ार करती
किसी पुरानी साबुत साड़ी को जिसे भाभी बहन मां या पत्नी ने
पहनने से नकार दिया हो
और उन्हें दी जाएं जो खड़ी हैं दरवाज़े पर
मांस का वीभत्स लोथड़ा सालिम बिना किसी वस्त्र के
अपनी निर्लज्जता में सकुचाईं
जिन्हें भाभी मां बहन या पत्नी मानने से नकार दिया गया हो

कौन हैं ये दो औरतें जो बग़ल में कोई पोटली दबा बहुधा निर्वस्त्र
भटकती हैं शहर की सड़क पर बाहोश
मुरदार मन से खींचती हैं हमारे समय का चीर
और पूरी जमात को शर्म की आंजुर में डुबो देती हैं
ये चलती हैं सड़क पर तो वे लड़के क्यों नहीं बजाते सीटी
जिनके लिए अभिनेत्रियों को यौवन गदराया है
महिलाएं क्यों ज़मीन फोड़ने लगती हैं
लगातार गालियां देते दुकानदार काउंटर के नीचे झुक कुछ ढूंढ़ने लगते हैं
और वह कौन होता है जो कलेजा ग़र्क़ कर देने वाले इस दलदल पर चल
फिर उन्हें ओढ़ा आता है कोई चादर परदा या दुपट्टे का टुकड़ा

ये पूरी तरह खुली हैं खुलेपन का स्‍वागत करते वक़्त में
ये उम्र में इतनी कम भी नहीं, इतनी ज़्यादा भी नहीं
ये कौन-सी महिलाएं हैं जिनके लिए गहना नहीं हया
ये हम कैसे दोगले हैं जो नहीं जुटा पाए इनके लिए तीन गज़ कपड़ा

ये पहनने को मांगती हैं पहना दो तो उतार फेंकती हैं
कैसा मूडी कि़स्म का है इनका मेटाफिजिक्‍स
इन्हें कोई वास्ता नहीं कपड़ों से
फिर क्यों अचानक किसी के दरवाज़े को कर देती हैं पानी-पानी

ये कहां खोल आती हैं अपनी अंगिया-चनिया
इन्हें कम पड़ता है जो मिलता है
जो मिलता है कम क्यों होता है
लाज का व्यवसाय है मन मैल का मंदिर
इन्हें सड़क पर चलने से रोक दिया जाए
नेहरू चौक पर खड़ा कर दाग़ दिया जाए
पुलिस में दे दें या चकले में पर शहर की सड़क को साफ़ किया जाए

ये स्त्रियां हैं हमारे अंदर की जिनके लिए जगह नहीं बची अंदर
ये इम्तिहान हैं हममें बची हुई शर्म का
ये मदर इंडिया हैं सही नाप लेने वाले दर्जी़ की तलाश में
कौन हैं ये
पता किया जाए.

Geet Chaturvedi ka aatm-prichy :
I am the escaped one./ After I was born / They locked me up inside me / But I left./ My soul seeks me / Through hills and valley,/ I hope my soul / Never finds me./ ****** I know, I alone / How much it hurts, this heart / With no faith nor law / Nor melody nor thought. / ****** I have no ambitions or wants / To be a poet is not ambition of mine. / It is the way of staying alone. ****** - Fernando Pessoa

उम्र: 30
लिंग: माले
खगोलीय राशि: धनु
राशि वर्ष: साँप
उद्योग: प्रकाशन
व्यवसाय: Journalist
स्थान: Jalandhar : Punjab : भारत
रुचि:
poetry fiction music cinema.
पसंदीदा मूवी्स:
films by fellini chaplin makhmalbaf bimal roy and gurudutt.the titles are la strada eight n half dastforoush modern times the great dictator do bigha zameen pyaasa and kaaghaz ke phool.
पसंदीदा संगीत:
george michael- father figure careless whispers. bryan adams- please forgive me all for love everhthing i do... i do it for you. guns n' roses- paradise city the november rain sweet child o' mine. nirvana- nevermind. endless list includes ustad amir khan kumar gandharva habib wali mohammad bob dylan mettalica deep purple enrique jason donovan sting elton john red hot chilli peppers saigan kick ali haider norah jones mubarak begum shamshad begum lata mangeshkar mukesh and rafi.
पसंदीदा पुस्तकें:
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ब्लॉग्: वैतागवाड़ी
Geet chaturvedi ka mobile-09915038963

2 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

पंडित जी,इनका भी लिंग "माले" है ये क्या सरकार द्वारा स्वीकार लिया गया कॊई तीसरा लिंग है जोकि ट्रांसजेन्डर्स के लिये प्रयुक्त होने लगा है जैसे कि तमिलनाडु सरकार ने कर लिया है??

Anonymous said...

hare dada,

M A L E ka kuch karo nahi to laal jhanda wale ki pahchaan bhi ling=MALE hi hao jayegee

Jai Jai Bhadaas