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9.4.08

रिक्शेवाले का राजनीतिक ज्ञान

आज बड़े दिनों बाद रिक्शे पर बैठने का संयोग हुआ. भाड़ा तय करने के दौरान मंहगाई पर चर्चा हुई और उसके तर्कों से सहमत होकर मैंने उसे उसके मनमाफिक भाड़ा देना स्वीकार कर लिया. मैंने यूँ ही टाइम पास करने के लिए राजनितिक चर्चा शुरू कर दी. प्रदीप साहा,जो उसका नाम था,चूंकि पश्चिम बंगाल के मालदा जिले का रहने वाला था, इसलिए मैंने केन्द्र सरकार में वामपंथी दलों की भूमिका के बारे में चर्चा शुरू कर दी. चर्चा के दौरान मुझे उसके राजनीतिक ज्ञान पर हैरत हो रही थी. हालांकि वामपंथियों की भूमिका से वह असंतुष्ट था परन्तु भीषण मंहगाई के लिए वह कांग्रेस को ही जिम्मेदार मान रहा था. उसके अनुसार वामपंथी तो मंहगाई से स्वयं असंतुष्ट हैं. मैंने जब पूछा कि अगर वामपंथी सरकार से संतुष्ट नहीं हैं तो समर्थन वापस क्यों नहीं लेते हैं. इसपर जानते हैं उसने क्या कहा- वामपंथी बेवकूफ थोड़े न हैं. सत्तासुख का ये अवसर फ़िर मिले न मिले इसलिए समर्थन देना उनकी मजबूरी है. और हो हल्ला इसलिए मचाते रहते हैं कि बदनामी का सारा ठीकरा कांग्रेस के सर फूटे और वो बेदाग बने रहें. सबसे हैरत हुई मुझे परमाणु करार पर वामपंथियों के विरोध पर उसके विचार जानकर. उसका कहना था कि वामपंथियों का विरोध मात्र दिखावा है. उनका असल मकसद तो सरकार की इस मुद्दे पर बांह मड़ोड़ कर अपना उल्लू सीधा करते रहना है. मुझे अब उसकी बातों में मजा आने लगा था. मैंने जब सरकार के भविष्य के बारे में उसका विचार जानना चाहा तो एक राजनीतिक विशेषज्ञ की भांति उसने कहा कि चुनाव तो अब अपनी नीयत समय पर ही होंगें पर इस गठबंधन का दुबारा सत्ता में आना मुश्किल है. उसकी नजर में बीजेपी सत्ता में आ सकती है परन्तु उसे भी गठबंधन सरकार ही चलानी होगी. हालांकि बीजेपी से भी उसे कोई ख़ास उम्मीद नहीं है. उसका मानना है कि सभी राजनीतिक दल और सभी नेता एक जैसे हैं. मजे की बात है कि जिस गठबंधन के सहारे आजकल की सरकारें चल रही हैं, एक रिक्शे वाले को भी उससे चिढ है. वर्तमान राजनीति की अधिकांश बुराईयों के लिए वह भी गठबंधन की मजबूरियों को ही जिम्मेदार मानता है. आपको हैरत होगी कि प्रदीप साहा मैट्रिक पास भी नहीं है और देश के बारे में इतना सोचता है जितना हमारे नेता शायद ही सोचते होंगे. मैंने इस बाबत उससे पूछा भी. जानते हैं उसने क्या जबाव दिया ? उसने कहा - हमारा देश है साहब. इसके अच्छे बुरे का सोचना तो पड़ेगा . मैं हैरान हूँ कि जिस देश का एक रिक्शा वाला भी इतना जागरूक है उस देश में सड़े हुए नेता चुनकर कैसे आ जाते हैं और उनके हाथ में सत्ता कैसे चली जाती है? काश, हमारे रहनुमा कम से कम उस रिक्शेवाले की तरह सोच पाते.

3 comments:

Ankit Mathur said...

वरुण भाई, कमाल का अनुभव है आपका।
मेरा अपना मानना है कि पश्चिम
बंगाल के लोग और किसी चीज़ में रुचि लें या ना लें
परंतु क्षेत्रीय व राष्ट्रीय राजनीतिक गतिविधियों पर नज़र ज़रूर रखते हैं। राजनीति के लिहाज़ से यदि देखा जाये तो वे अक्सर वामपंथी विचारधारा का समर्थन करते मिल जाते हैं। जो कि आपके मामले रिक्शे वाले के विचार अपवाद है।

Ankit Mathur said...

वरुण भाई, कमाल का अनुभव है आपका।
मेरा अपना मानना है कि पश्चिम
बंगाल के लोग और किसी चीज़ में रुचि लें या ना लें
परंतु क्षेत्रीय व राष्ट्रीय राजनीतिक गतिविधियों पर नज़र ज़रूर रखते हैं। राजनीति के लिहाज़ से यदि देखा जाये तो वे अक्सर वामपंथी विचारधारा का समर्थन करते मिल जाते हैं। रिक्शे वाले के विचार अपवाद है।

Anonymous said...

bhai,

apka anubhav kamal ka hai, magar batata chaloon ki ye anubhav bihariyon ke liye naya nahi,
jahan rikshe wale or paan wale behtar rajnaitik paricharcha karte hain or sateek tippni bhi dete hain.

Jai Jai Bhadaas