Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

31.5.08

प्रेम कवितायेँ

प्रेम कवितायेँ

साठ पार के इस कवि को लिखनी है एक प्रेम कविता ,
अपने मन के भीतर के प्रेम के सोते को वह फिर उदगारना चाहता है ,
स्मृतियों की खोह मे कहाँ तक भटक सकेगा यह कवि ,
क्या याद आ सकेगा जीवन का पहला गीत ,
प्यार की उस पहली झुरझुरी को कैसे महसूस करेगा यह कवि ,
अभिव्यक्ति की अबोध निश्चलता कैसी उपजेगी कवि के भीतर ,
दिल की किन परतों मे तटोलेगा वे शब्द जिनकी मिठास शायद अब भी कायम हो,
आख़िर कितना मुश्किलहै इस उम्र मे प्रेम कवितायेँ लिखना ।

दीपेंद्र

राजस्थान पत्रिका भोपाल से - मीडिया घमासान शुरू

आखिरकार राजस्थान पत्रिका का मध्यप्रदेश संस्करण पत्रिका के नाम से भोपाल से लांच हो ही गया। इस अखबार का भोपाल के लोग और मीडिया जगत विगत पाँच वर्षों से इन्तजार कर रहे थे। लोगों का इन्तेजार बेकार नही गया, बहरहाल इन्तजार का फल मीठा होता है वाला मुहावरा एक बार फिर सच साबित हुआ।
यह तो सर्वविदित है की राजस्थान पत्रिका का कलेवर अत्यन्त रोचक व स्तरीय है। साहित्य की भूख और व्यवस्थित ख़बरों के दीवाने पत्रिका को जरूर पढेंगे। फिलहाल पत्रिका अपने नए कद्दावर अंदाज मैं मध्यप्रदेश की जनता को लुभा रहा है। अच्छी खबरें अच्छा ले आउट और साथ ही रोचक सामग्री पत्रिका को सम्पूर्णता प्रदान कर रहा है।
भोपाल में पत्रिका की धमाकेदार लांचिंग करने वाली टीम के मुखिया संपादक भुवनेश जैन और समाचार संपादक दिनेश रामावत इस बात का श्रेय ले सकते हैं कि उन्होंने भोपाल में दैनिक भास्कर को काफी चिंता में डाल दिया है, जो इन लोगों की प्राथमिक सफलता मानी जाएगी। भोपाल मैं ही पढे बढे पत्रकार धनंजय प्रताप सिंह का नया रूप देखकर यहाँ का मीडिया चकित है।
बाजार में ये चर्चा थी कि पत्रिका का प्रकाशन भोपाल में अगस्त महीने से होगा लेकिन समय से पहले मध्य प्रदेश आकर पत्रिका ने सभी स्थापित प्रमुख अखबारों को चिंता मैं दाल दिया है। भोपालमैं पत्रिका की लौन्चिंग के पहले दिन से ही प्रमुख अखबारों के सर्कुलेशन गिरने की खबर है । पत्रिका के आने की खबर के कारण हाल ही में दैनिक जागरण और नवभारत, दोनों ने भोपाल में खुद को री-लांच किया है ताकि वे अपने पाठकों के आधार को बनाये रख सकें। उधर नव्दुनिया के पैर शुरुआत मैं ही उखड़ते नजर आ रहे है। पत्रिका अब भोपाल में लांचिंग के बाद अब ग्वालियर और इंदौर में अपना अखबार लांच करने की तैयारी में जुट गया है। जानकारों का मानना है कि पत्रिका भास्कर से उसी तरह बदला लेने के मूड में है जिस तरह भास्कर ने राजस्थान में जाकर किया था।

Pt. Suresh NeeravP

Panditji, Youn to aamtaur se ghazlon mein do-ek sher achhe hote hain magar aapki is taaza ghazal ka har sher chuninda aur chutila hai.Aisa lag raha hai jaise aapki lekhni din per din jawan hoti ja rahi hai.Makhta aapke dard bakhoobi bayan karta hai.
Badhai
Mrigendra Maqbool.

सुधरने के लिए

हास्य-गजल
शहर को भागा है गीदड़ आज मरने के लिए
लोमड़ी ने भर दिया उसको सुधरने के लिए
चूहा लाया है कुतर के सुंदरी की साड़ियां
मूड में चुहिया खड़ी सजने-संवरने के लिए
जोतकर खेतों को अपने तू खुशी से फूल जा
बैठे है तैयार नेता फस्ल चरने के लिए
जितने ठसके से दिए जाते हैं आये दिन बयान
उतने ही माहिर हैं सब उनसे मुकरने के लिए
कल मिनिस्टरजी ने फोड़ा पुल पे जा के नारियल
चोट काफी थी यही पुल को बिखरने के लिए
गिफ्ट में निकला टिकिट कश्मीर से इराक का
ये सबब काफी नहीं क्या मेरे डरने के लिए
एक कुर्सी तक कहां नीरव को हो पायी नसीब
उनको सिंहासन मिला खुलकर पसरने के लिए।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

जिन्दगी

जिन्दगी
जिन्दगी हर पल सिखाती रही, पर शायद हम सीख न सके
भुलाने की कोशिस भी बहुत की, पर हम बुरा वक्त भूल न सके
भूलते तो कैसे हम वक्त को, लोग हमको याद दिलाते रहे।
याद भी किया तो किसको, जो हमको हर पल भुलाते रहे।
हम लायक है या नालयक बस इसी सवाल को सुलझाते रहे।
लायक समझके किसी झिड़का, कुल लायक समझ गले लगाते रहे।
कोई कमेन्ट करे न करे बस हमतो दिल की बात लिखते रहे।

30.5.08

आदमी या कुत्ते

yasawant ji

pahali bar BHADAS par POST bhej raha hu. par usame type nahi kar pata is liye word ki file send kar raha hu, ho sake to jagah dejiyega.

SAGAR S PATIl
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(सागर भाई, आपने जो मैटर भेजा था, वो चाणक्या फांट में था। उसे मैंने फांट कनवर्टर के सहारे चाणक्या से यूनीकोड में करके यहां प्रकाशित कर रहा हूं। ....यशवंत)
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आदमी या कुत्ते

सागर एस पाटिल
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आज एक मोबाइल वालों की दुकान में जाने का मौका मिला। वहां दरवाजे पर एक जानवर बना था और नीचे लिखा था हैप्पी टू सी यू और वो जानवर था कुत्ता। तो मन में आया अब यहीं दिन रह गया था देखने के लिए कि एक कुत्ता हमें देखकर खुश हो रहा है। अब आदमी और आदमियत बची ही नहीं हमें देखकर खुश होने के लिए।

खैर जब पत्रकारिता में आया था तभी से कुछ जानवरों की श्रेणी में आ गया था। तब लगा कि शायद यही कीमत रह गई है मेरी और मेरे जैसे और ग्राहकों की जो उस मोबाइल सेवा को ले रहे हैं या लेने की सोच रहे हैं। पर अंदर गया तो कुछ शानदार कपड़े पहने लोग थे। मुझे तो लगा था कि उसी तरह के कुछ जानवर होंगे अंदर।

रिसेप्शन पर एक कुतिया बैठी होगी जीभ निकालकर और लिखा होगा मे आई हैल्प यू या एनी प्राब्लम से टू मी। एक कुत्ता बैठा होगा और लिखा होगा एक्जीक्यूटिव या मैनेजर या और कुछ। लेकिन वैसा कुछ भी नहीं दिखा वहां तो सब आदमी जैसे दिखने वाले ही जानवर थे। मैंने एक सज्जन से मदद मांगी तो उन्होंने पूरे उत्साह के साथ मदद की। जब मैं चलने को हुआ तो देखा उस वैल ड्रेस तथाकथित पढ़ लिखे आदमी की शर्ट पर लिखा था हैपी टू हैल्प यू और नीचे उन सज्जन का नाम लिखा था। तो मुझे लगा कि उन महाशय इनकी पढ़ाई तो गई बेकर क्योंकि बाहर लिखा था हैप्पी टू सी यू और अंदर लिखा है हैप्पी टू हैल्प यू।

मन में इन खयालों को लेकर मैं निकल आया उस दुकान से और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरी भी जीभ लटक गई है मेरी भी पूंछ निकल आई है। हड़बड़ा कर चेक किया तो तसल्ली हुई कि नहीं अभी उस जानवर और मुझमे इतना तो फर्क है कि मेरी जीभ नहीं लटकी है और न ही मेरी पूंछ निकली है। लेकिन क्या पता कब तक..........

sagar s patil
srp1330@gmail.com

ग्वालियर मीडिया में उथल पुथल शुरू

ग्वालियर महानगर में दो समाचार पत्रों की लांचिंग अब कुछ दिन ही दूर है ! हालांकि दोनों ही समाचार पत्र लोकल ग्रुप हैं लेकिन उद्योगपति घराने से हैं ! लिहाज़ा competition जबरदस्त है ! फिलहाल होर्डिंग्स वार के साथ पत्रकारों का भी आना जाना शुरू हो चुका है ! "BPN TIMES" में करीब एक दर्ज़न पत्रकार इधर उधर आमद दर्ज कर चुके हैं किसी बड़े ग्रुप के समाचार पत्र के पत्रकार झटका नहीं दे पाए हैं फिर भी कुछ को अच्छे पैकेज मिले हैं वहीं दैनिक अदित्याज़ ने अभी से रंग जमाना शुरू कर दिया है ! दैनिक अदित्याज़ के अत्याधुनिक संसाधनों से सुसज्जित फुल एयर कंडीशन ऑफिस एवम जबरदस्त प्रचार प्रसार के कारण अच्छे ग्रुप के पत्रकार भी वहां जुड़ने को लालायित हैं फिलहाल युवा पत्रकारों में रेडियो चस्का के कॉपी एडिटर रविशेखर, अच्छे पैकेज पर अपनी कुर्सी पकड़ चुके हैं हालांकि उनके रेडियो चस्का छोड़ने की पुष्टि नहीं हुई है इसी तरह हिंदुस्तान times के भुब्नेश तोमर , नई दुनिया से दीप्ति , दीपक, उमेश, नवभारत से हेमा खलातेने भी अपनी जमा ली है ! उधर अन्य मीडिया में भी उथल पुथल मची हुई है दैनिक आचरण बतोर समाचार संपादक वरिष्ट पत्रकार देव श्रीमाली ने भी कार्यभर ग्रहण कर लिया है वहीं डेस्क प्रभारी के रूप में राजेंद्र कश्यप भी आचरण का दामन थम चुके हैं! आचरण में सिटी चीफ रह चुके सुरेश शर्मा हिंदुस्तान एक्सप्रेस के स्थानीय संपादक के रूप में काम देखने लगे हैं ! इसी तरह नए अखबारों की लौन्चिंग करीब देख दैनिक भास्कर भी चोकन्ना हो चुका है ! और नए पत्रकारों की भरती सुरू कर दी है ! जिनमे अभी बीपी श्रीवास्तव, अजय रावत, प्रवीण चतुर्वेदी, सत्यजीत, दीपाली जा चुके हैं फिलहाल कुछ भी हो पत्रकारों की बल्ले बल्ले हो चुकी है !

pt. suresh neerav

Panditji, laajawab rachna hai, bachchan ban-ne aur nirala banane ka andaz wakai nirala hai.

ye haashya rachana to hai magar vyang bhi behtareen hai.

Mrigendra Maqbool.

चार दिन से रेल की पटरियां जाम है!

प्रतिभा कुशवाहा
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चार दिन से रेल की पटरियां जाम है! कूड़े के ढेर से नहीं बल्कि लाशों से। लाशें किसी गैरों की नहीं अपनों की। मरूभूमि की तपिश ही इन लाशों का दाह-संस्कार कर रही है क्योकिं पुलिस इन्हें अपनों को नहीं सौंप रही है। उनकी मां, बहनें, पत्नियां रो-रोकर छाती पीट रही है, इस समय उनके दिमाग में कही भी कोई मांग नहीं है। बस एक गुजारिश है कि यह खेल बंद किया जाए। उनके गालों पर सूखे हुए आंसू एवं रूंधा गला खुदा से अपने प्रिय के प्राण वापस चाहती है।

रेल की पटरियों के समान कभी भी मानवता एवं राजनीति नहीं मिलती है। बस साथ-साथ चलती है, दोनों एकदूसरे के सहयोग नहीं कर पाते क्योकिं कुछ लोग ऐसा नहीं चाहते। वह नहीं चाहते कि राजनीति का ‘मुखड़ा’ सुंदर हो। उन्होंने राजनीति को सभी प्रकार की विकृतियों का अखाड़ा बना दिया है। बड़े गर्व से कहते है कि आओ, ‘इस अखाड़े में अपने-अपने करतब दिखाओ। और देखना कि मूर्ख, अनपढ़ लोग कैसे हमारे तमाशों पर ताली पीटते ...। किलविसी मुस्कान के साथ उनके दिमाग के किसी कोने पर यह विकृति आती है कि ‘इस तरह बारी-बारी से अपने करतब दिखा कर हम अपना पेट पालते रहेगे और साथ ही कई पीढीयों तक का जुगाड़ भी कर लेगे।’

चार दिन से रेल की पटरियां जाम है! कुछ फालतू के लोग आने-जाने के लिए मरे जा रहे है। यह नहीं कि इतनी गर्मी में यात्रा करना सेहत के लिए हानिकारक है। अरे! रोजी-रोटी के लिए हमें जाना है। ‘क्यों, घास की रोटियां खतम हो गई, जो हमारे राजा ने खाई थी।’ हमारा बच्चा बीमार है! क्या इस देश की जनसंख्या कुछ कम है? रोज तो रेल चलती है दो-चार दिन नहीं चलेगी तो क्या...। कमबख्त, भिकमंगे कहीं के! रेल से यात्रा करेगें। चार दिन से रेल की पटरियां जाम है! अभी उच्चाधिकारियों की मीटिंग चल रही है, सभी बड़े मुद्दो पर व्यस्त है। कार्यवाही चल रही है, देखिए क्या नतीजे निकलते है। सब कुछ अपनी गति से हो रहा है, कब तक होगा पता नहीं। हर बड़े काम में समय तो लगता है।

अभी-अभी खबर है कि पटरियों पर पड़ी लाशें एक-एक कर गायब हो रही। विपक्ष का दावा है कि सत्ता वाले ऐसा काम कर रहे है क्योकिं हम लाश पर राजनीति कर रहे थे, वह नहीं कर पा रहे है। इसी जलन के चलते वे ऐसा कर रहे है। अत: हम मांग करते है कि लाशों के गायब होने पर सीबीआई जांच करवाई जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम और लाशें गिरा देगे। तभी एक बच्ची फुसफुसा कर कान में कहती है, ‘एक काला-मोटा, भैंस पर सवार आदमी (यमराज) सभी लाशें ले गया है।’ लगता है उन्होंने अपनाधंधा-पानी बदल लिया है। और बदले भी क्यों न, उनके पेट पर हमने जो लात मार दी है! लाशों के ढेर लगाकर।

(प्रतिभा कुशवाहा ने इस व्यंग्य को भड़ास पर प्रकाशित करने के लिए मेल किया था। उन्हें धन्यवाद।)

Bhopal new battleground of Hindi newspapers

Soorma Bhopalis are faced with a new challenge. Its media challenge. Last month the Madhya Pradesh capital saw Nav Dunia hitting the stands. A new avtaar of Nai Dunia. Today, Rajathan Patrika is to flood the market. It is also under a new label. Patrika and not Rajasthan patrika. The two newspapers from established groups are a tough challenge to both Dainik Bhaskar and people of Bhopal who have a variety of choice. The new names Nav Dunia and Patrika are a mystery for people. Probably they want to make a new beginning on a new pitch. Certainly a great idea to try to beat Bhaskar in its name game. When Bhaskar launched Gujarati edition in Ahmedabad, Dainik Bhaskar appeared as Divya Bhaskar. It really needed some divya hand to beat the monopoly of Gujarat Samachar. Even though Bhaskar is completing five years in Gujarat and has been instrumental in bringing lots of change in Gujarati media right from salaries of Gujarati journalists to content variety and presentation, the fact remains Gujarat Samachar remains at the top. Lets see, how patrika and Nav Dunia and Patrika wrestle with Bhaskar to gain control of Soorma Bhopali.





journalists must read Indlish by Jyoti Sanyal



Mrityunjay Bose Principal Correspondent Maharashtra Herald, Mumbai has suggested that journalists must read Indlish by Jyoti Sanyal (Viva Books). The book is about writing simple English. Its author is late Jyoti Sanyal who worked for 30 years with 'The Statesman' (Kolkata) and then became Dean of Asian College of Journalism, Bangalore. He had also compiled The Statesman Style Book, one of most authentic stylebooks for news rooms. He also devoted quite some time for www.clearenglish.in The 394 page book is priced Rs 295.



साभारः http://www.gujaratgobal.com/

हम भी फ्लाप तुम भी फ्लाप

हास्य-गजल
हम भी फ्लाप तुम भी फ्लाप
तिकड़म में पर दोनों टॉप
मिलकर खेलें कविता-कविता
मैं बच्चन तो दिनकर आप
उसे बना देंगे आलोचक
जो हो जनम से झोलाछाप
अपनों को काटेंगे झट से
आस्तीन के हम हैं सांप
मक्खनबाजी के मंत्रों का
सुबह-शाम करते हैं जाप
माल पचा लेना औरों का
नहीं मानते बिल्कुल पाप
हुनर हमारा सिर्फ झटकना
सम्मानों के लॉलीपॉप
हम भी फ्लाप तुम भी फ्लाप
तिकड़म में पर दोनों टॉप।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६

वरिष्ठ पत्रकार राजेश माथुर का निधन




वरिष्ठ पत्रकार राजेश माथुर का गुरुवार को निधन हो गया।

68 वषीय माथुर को पिछले कुछ समय से फेफड़ों में तकलीफ थी। उनके परिवार में दो पुत्र व एक पुत्री है।

20 जनवरी 1940 को उज्जैन में जन्मे राजेश माथुर ने दैनिक नवयुग से पत्रकारिता जीवन की शुरुआत की। 1962 से 1992 तक वे राजस्थान पत्रिका में रहे। इस दौरान उन्होंने मिडलची के नाम से `मझधार में´ कॉलम लिखा। मध्यमवर्ग की समस्याओं पर माथुर का यह कॉलम व्यंग्य पर आधारित था। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में माथुर की कई व्यंग्य रचनाएं प्रकाशित हुई। माथुर को पत्रकारिता के लिए भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कार भी मिला।



भड़ास की तरफ से राजेश जी को श्रद्धांजलि।



(साभारः http://shuruwat.blogspot.com/)

गरीबी से मरते हैं लोग, अपने दिल्ली में

आज सुबह सुबह अखबार पर पहली निगाह मारने के दौरान उसी खबर पर निगाह टिकी जहां गरीबी, मां और मौत के बारे में लिखा गया था। दिल्ली में आर्थिक तंगी से मां व बेटे ने जान दे दी।


ऐसी घटनाएं तो होती रहती हैं पर जब भी होती हैं, अंदर से हिला जाती हैं। इस बाजार के हमले ने उन लोगों को बिलकुल फटेहाल बना दिया है, जिनके पास दंद फंद नहीं है, जिनके पास नौकरी नहीं है, जिनके पास शिक्षा नहीं है। ऐसे लोग जो तीन पांच करके नहीं जी सकते, आखिर किस तरह ईमानदारी से जी सकते हैं। क्या इनकी मौत ही इनकी नियति है।


क्या सरकारों को भयंकर बाजार के इस दौर में हर व्यक्ति को रोजगार और हर परिवार को न्यूनतम आर्थिक सुरक्षा की गारंटी नहीं देनी चाहिए?

पर सवाल वही है कि जब हर कोई अपना नोट और वोट बनाने में लगा हो तो जनता और उसके जीवन से जुड़े सवालों पर भला कौन सोच सकता है।


जय भड़ास
यशवंत

कमीने कालिया की नई करतूत उर्फ नई भड़काऊ चिट्ठी

अविनाश, तुम साले चुप क्यों हो, मुझे बलात्कारी साबित करो वरना मैं तुम्हारी फाड़ूंगा।

तुम साले, एनडीटीवी के बल पर, एनडीटीवी का बैनर इस्तेमाल कर अपने को सबसे प्रभुत्वशाली पत्रकार और बौद्धिक साबित करना चाहते हो।

भले एनडीटीवी की आंखो में तुम्हारी हरकतें नागवार न गुजरे, पर मैं तुम्हें न छोड़ूंगा।

तुम कितने कमीने हो, तुम किस तरह हम भड़ासियों को उकसा रहे हो, उसकी प्रतीक तुम्हारी चिट्ठियां हैं जो कभी तुम हृदयेंद्र को भेज रहे हो, कभी मुझे.....


तुम्हारी नवीनत चिट्ठी, तुम्हारी बीमार मानसिकता और तुम्हारे अंदर के दैत्य को साक्षात दिखा रही है.....


On 29/05/2008,

avinash das avinashonly@gmail.com wrote:
moorkh ho... aur kya kahoon... mitrata mein sabko le doobege... jaari rakho apna abiyan... log tumhare baare mein raay bana rahe hain, mere baare mein nahi...

aur moorkh, rahta ghaziabad mein hoon... dilli ka address NDTV ka hai- dilli mein maamla darj karwaya hai... wo saare links mere nahi, tumhare charitra ki kahani kah rahe hain...



और हां, नई खबर ये है कि भडा़स के देश के कोने कोने से साथी दिल्ली आने लगे हैं, पहली खेप में अपने भड़ास के मुख्य प्रवक्ता मनीष राज आ चुके हैं।

ये कल से मेरे साथ पूरे दिन और पूरी रात रहेंगे, इसलिए मैं अब डबल ऊर्जा से भर चुका हूं।

दोस्तों, कालिया के खिलाफ प्रणय राय और राधिका राय को मेल भेजना जारी रखें। इसकी जल्द ही कटने वाली है।

जय भड़ास
यशवंत

29.5.08

भडास का सत्याग्रह अभियान।

भडासी मित्रों,



भडास ने निर्णय किया है की मोहल्ला ब्लोगर अविनाश की कारगुजारियों से हम उनके तमाम आकाओं को अवगत कराये। जिसके लिए हम अपना गांधीगिरी अभियान चलायेंगे।

जिस प्रकार एक ब्लोगर ने अपने ब्लॉग की बजाय एनडीटीवी के होने का कह कर ब्लॉग समुदाय का अपमान किया है संग ही एक मीडिया हॉउस का नाम बेचा है और मेल में खुद को बजाय अपने ब्लाग मोहल्ला का माडरेटर बताने के, एनडीटीवी का एडीटर बताया है पर हम सब मिल कर इस ब्लोगर के ख़िलाफ़ इस मीडिया हॉउस को मेल के माध्यम से इसकी कागुजारियों से अवगत कराएँ।



तमाम भडासी से अपील है कि एनडीटीवी के चेयरमैंन और निदेशक प्रणय राय और निदेशिका राधिका को मेल करके अपना विरोध व्यक्त करें।



एनडीटीवी के चेयरमैंन और निदेशक प्रणय राय का मेल आई दी prannoy@ndtv.com है

और निदेशिका राधिका का मेल आई डी rroy@ndtv.com है।



रजनीश के झा


प्रवक्ता
भडास

भड़ास की गांधीगीरी शुरूः प्रणय राय और राधिका राय को पत्र

दोस्तों, अविनाश दास की तानाशाही और अलोकतांत्रिक रवैये के खिलाफ भड़ास गांधीगीरी शुरू कर रहा है। अभी यह गांधीगीरी आनलाइन तरीके से की जाएगी। इसके बाद के चरण में आफलाइन तरीका अख्तियार करा जाएगा। हमें एनडीटीवी प्रबंधन के विवेक पर भरोसा है, इसलिए शुरुवात में मैंने इस चैनल के चेयरमैंन और निदेशक प्रणय राय और निदेशिका राधिका राय को मेल भेजा है। असंपादित मेल नीचे है। आप भी इस मेल के कंटेंट को उठाकर और आपको जो महसूस होता हो, उसे लिखकर प्रणय और राधिका को भेजें।

कम से कम 315 मेल तो जानी ही चाहिए।

प्रणय और राधिका की मेल आईडी क्रमशः इस तरह है.....

prannoy@ndtv.com और rroy@ndtv.com



जय भड़ास...यशवंत

---------------------------------

from

Yashwant Singh yashwantdelhi@gmail.com

to

prannoy@ndtv.com

cc

rroy@ndtv.com

date
29 May 2008 17:10

subject
Complain of Avinash Das, a epmployee of NDTV India news channel

mailed-by
gmail.com

श्रीमान प्रणय राय जी
चेयरमैंन और निदेशक
एनडीटीवी


महोदय,

एनडीटीवी इंडिया हिंदी न्यूज चैनल में कार्यरत अविनाश दास नामक सज्जन लगातार अपने स्वार्थ में एनडीटीवी के नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे न सिर्फ एनडीटीवी के नाम से हिंदी के ढेर सारे पत्रकारों और ब्लागरों को धमका रहे हैं, बल्कि एनडीटीवी के बैनर के इस्तेमाल की धमकी देते हुए जेल भिजवाने की बात कर रहे हैं।

दुनिया के सबसे बड़े हिंदी ब्लाग भड़ास http://bhadas.blogspot.com/ के मुख्य माडरेटर यशवंत सिंह के चरित्र और व्यक्तित्व को नीचा दिखाने के लिए वे लगातार अपने ब्लाग पर झूठी रिपोर्टें और मनगढ़ंत कहानियां प्रकाशित कर रहे हैं। ऐसा वो पहले भी कर चुके हैं और आज भी कर रहे हैं। जब उनके आरोपों का जवाब भड़ास के सदस्यों ने दिया तो वे उन्हें जेल भेजने के लिए एनडीटीवी के नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं।


सबूत के तौर पर नीचे वो मेल है जिसे अविनाश ने भड़ास के पांच सदस्यों को भेजा है और मेल के अंत में खुद को बजाय अपने ब्लाग मोहल्ला का माडरेटर बताने के, एनडीटीवी का एडीटर बताया है।


ऐसा नहीं है कि अविनाश ने ये पहली बार किया हो, वो पहले भी कई पत्रकार लड़के लड़कियों को एनडीटीवी में नौकरी दिलाने के नाम पर अपने ब्लाग से जुड़ने और लिखने को मजबूर करते रहे हैं। उन्होंने ऐसे ही काम अतीत के संस्थान प्रभात खबर में रांची, पटना और देवघर रहते हुए किए हैं। वहां उन्होंने न सिर्फ घपले किए बल्कि कई महिलाओं के इज्जत से खिलवाड़ का भी उन पर आरोप रहे हैं। इसके सबूत के तौर पर मेरे पास कई मेल हैं जो खुद अविनाश के पुराने साथियों ने भेजे हैं।

महोदय, हिंदी मीडिया के बौद्धिक लोगों को नीचा दिखाना और खुद को महान साबित करने के वास्ते अविनाश ने समय समय पर अपने ब्लाग पर अभियान चलाया है। इस अभियान में उन्होंने एनडीटीवी में खुद के होने का फायदा उठाते हुए लोगों को बार बार धमकाया है। इससे लोगों में अविनाश के साथ साथ एनडीटीवी की छवि को लेकर भी नकारात्मक सोच बनने लगी है।


एक ताजा मामले में उन्होंने भड़ास के मुख्य माडरेटर यशवंत सिंह के चरित्र को लेकर मीडिया ट्रायल की ही तरह अपने ब्लाग पर ब्लाग ट्रायल चलाते उन्हें बलात्कारी घोषित कर दिया। क्या एनडीटीवी ने अविनाश को यह अधिकार दिया है कि वो किसी की भी इज्जत के साथ खिलवाड़ कर उसे नीचा दिखा सकें।



अब जबकि पानी सिर से उपर बह चुका है और अविनाश दास एनडीटीवी के बैनर के जरिए लगातार आम हिंदी पत्रकारों और ब्लागरों को उत्पीड़ित कर रहे हैं, उनके चरित्र पर दाग लगा रहे हैं, ऐसी स्थिति में अविनाश के खिलाफ मानहानि के दावे के बारे में हम लोग गंभीरता से सोच रहे हैं।



पर उससे पहले हम चाहते हैं कि आप जैसे प्रबुद्ध व्यक्ति के सामने इस मामले को लाया जाए ताकि आप उचित निर्णय लेकर एनडीटीवी की निष्पक्ष और सकारात्मक छवि को हिंदी समाज के बीच और मजबूती प्रदान कर सकें।


आप से अनुरोध है कि इस व्यक्ति के अतीत से लेकर वर्तमान तक के क्रियाकलापों का जांच कराएं और उचित कार्रवाई करें अन्यथा मजबूरन हमलोगों को कोर्ट और धरने जैसी कार्रवाइयों का सहारा लेना पड़ सकता है।


महोदय, एनडीटीवी की जो इमेज पूरे देश में है, वो बेहद निष्पक्ष और लोकतांत्रिक है। हम इस निष्पक्ष बैनर की साख के चलते ही आपके दरवाजे पर आए हैं।



हमें आपसे न्याय की उम्मीद है।

यशवंत सिंह
मुख्य माडरेटर
भड़ास ब्लाग

पुनश्च......

नीचे ये मेल वो है जिसे अविनाश ने पांच ब्लागरों को भेजा है और अपना परिचय एनडीटीवी के एडीटर के रूप में दिया है ताकि पुलिस इनके प्रभाव में आ सके.....। इस मेल की मूल कापी मेरे पास सुरक्षित है। अगर आप हमें समय दें तो हम पूरे मामले के बारे में आपको विस्तार से बता सकें। हालांकि लोगों का कहना है कि आप किसी बाहरी व्यक्ति से मिलते नहीं पर हमें विश्वास है कि आप एनडीटीवी की साख से जुड़े एक सवाल पर जरूर हम लोगों को सुनेंगे।



यशवंत





अविनाश द्वारा प्रेषित मेल
===============
---------- Forwarded message ----------



From: avinash das avinashonly@gmail.com





Date: 28 May 2008 19:00



Subject: Complain of a Blogger Community



To: Yashwantdelhi@gmail.com, hridayendra singh <singh.hridayendra@gmail.com>, rudrakshanathshrivastava7@gmail.com, manish_rj@yahoo.com, rajneeshjha@gmail.com


श्रीमान,
मैं हिंदी का एक आम ब्‍लॉगर हूं। पिछले दिनों बलात्‍कार के एक आरोपी के बारे में जब मैंने अपने ब्‍लॉग पर लिखा - http://mohalla.blogspot.com/2008/05/blog-post_25.html - उसके बाद इस आरोपी ने अपने कम्‍युनिटी ब्‍लॉग पर अपने और अपने साथियों के माध्‍यम से मुझ पर हमले तेज़ कर दिये। ये हमला निजी तौर पर चरित्रहनन से लेकर रंगभेदी टिप्‍पणियों के रूप में किये जा रहे हैं। हमारे ब्‍लॉग पर भी कई नामों से ये ऐसी टिप्‍पणियां कर रहे हैं, जिनके आईपी एड्रेस एक हैं। मैं कुछ लिंक आपको भेज रहा हूं।

http://bhadas.blogspot.com/2008/05/blog-post_44.html
http://bhadas.blogspot.com/2008/05/blog-post_26.html
http://bhadas.blogspot.com/2008/05/blog-post_8226.html
http://bhadas.blogspot.com/2008/05/blog-post_62.html
http://bhadas.blogspot.com/2008/05/kaala-kaarnaama-kaaliya-ka-antim-bhag.html
http://bhadas.blogspot.com/2008/05/blog-post_3239.html
http://bhadas.blogspot.com/2008/05/blog-post_7086.html
http://bhadas.blogspot.com/2008/05/blog-post_5422.html
http://bhadas.blogspot.com/2008/05/blog-post_9886.html

ये और इनके साथी जिस आईपी एड्रेसेज़ का इस्‍तेमाल करते हैं - वे हैं 220.226.32.64 और 61.12.30.18 और 59.180.132.85
मेरी दिल्‍ली पुलिस से गुज़ारिश है कि मेरी शिक़ायत विधिवत रूप से दर्ज करें और उचित कार्रवाई करके मुझे राहत पहुंचाएं।

भवदीय,
अविनाश
आउटपुट एडिटर, एनडीटीवी इंडिया
अर्चना कांप्‍लैक्‍स, ग्रेटर कैलाश पार्ट वन
नई दिल्‍ली

मानसिक विक्षिप्त की एक और घिनौनी हरकत....

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avinash das
to me
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12:12 pm (1 hour ago)
जिस दिन आपकी बेटी या बहन पर यशवंत बलात्‍कार करेगा, उस दिन आपको ये सारे मेल फारवर्ड karunga....

us ghatiya jaanwar ko baar-baar mana karne ke baavjood mujhey mail karne ka silsila badastoor jaari hai.....

ndtv prabandhan sey iski vikshiptata aur ndtv jaise banner ke chavi dhoomil karne key prayaas key baarey mein kamse kam humein jald sey jald ndtv prabandhan ko sachet karna hoga taaki yeah bhediya....us jimmedaar sanghtan ki ki chavi hamaare aur blog jagat mein dhoomil hone sey roka ja sakein...

hridayendra

इस मानसिक विक्षिप्त से ब्लॉग जगत को कौन बचायेगा...

जैसा की सभी ब्लोग्गर बंधुओं को गंदगी के मोहल्ले में लोटने वाले बदबूदार सूअर और और उसके कुटुंब की कारस्तानियों का पता लग ही चुका है...इस मानसिक विक्षिप्त का किया क्या जाए इसपर विमर्श चल रहा है...अपने वैचारिक विरोधियों को किसी भी कीमत पर जेल भिजवाने की कुत्सित मनोवृत्ति का परिचय देती इस घटिया जान्वाज की कुछ पंक्तियों का मजा आप भी लीजिये....
कठपिंगल has left a new comment on your post "धन्यवाद ब्लोग्गर मित्रों...":
अभी कहां धन्‍यवाद बेटा। अभी तो दिल्‍ली पुलिस तुम्‍हारे ब्‍लॉग के पन्‍ने पलटरही है। अभी देखते जाओ, क्‍या क्‍या होता है। मेरे बलात्‍कारी बालक - अभी कुछ दिन में अपने प्‍यारे घर रहने जाओगे। भले ही ज़मानत पर बाहर आकर फिर गंध मचाओगे। Posted by कठपिंगल to भड़ास at 28/5/08 1:40 PM----------------------------------इससे पहले कठपिंगल ने ये संदेश दिया भड़ास को.....कठपिंगल has left a new comment on your post "कालिया से हुए पत्र व्यवहार का अप्रकाशित अंश.....":
भाई साहब, आप लोगों की जानकारी के लिए बता दें कि भड़ास पर रंगभेद का मुक़दमा होने जा रहा है। इस मामले में तीन साल की जेल होती है। जहां जहां कालिया लिखा है - मिटा दीजिए। ये गुप्‍त सूचना है, सिर्फ़ आपलोगों के लिए।
......क्या मजेदार बात है की सुबह कठपिंगल जी का कमेंट आता है और शाम को ही शिकायती पत्र की धमकी भी मेल द्वारा हमें मिल जाती है....इस बाजारू आदमी की नीचता , इसके संबंधियों की नीचता के बारे में लोग यहाँ वहाँ बेहद रस लेकर हमेशा बातें करते रहे....लेकिन उनको अफवाहों का नतीजा मान लेने का नतीजा लगता है...मुझे भी भुगतना ही पड़ेगा....
इस नीच की कुत्सित मनोवृति को दुनिया के सामने लाने के अलावा किसी को कुछ नही करना चाहिए...मेरे बार-बार मना करने और बुरी तरह बेइज्जत करने के बावजूद ये घटिया जानवर मुझे मेल करने में तुला है....भगवान् इस घटिया आदमी से बचने का कोई तरीका है किसी के पास....
(उम्मीद करता हूँ...अपनी पर्याप्त बेइज्जती करवाने, अपनी पत्नी और परिवारिजनों के सुंदर चरित्र? को चौराहे पर लाने के बाद भी अगर कुछ विवेक बचा होगा तोः येः नासूर ब्लॉग जगत के साथ मुझे भी अपनी घटिया और घिनौनी हरकतों से दूर रखेगा)....इन्ही उम्मीदों के साथ...प्रिया मित्र अभिषेक, विकास परिहार जी, सुरेश गुप्ता जी, और दुसरे दुखी ब्लोग्गर साथियों से माफ़ी मांगता हूँ....साथ येः प्रार्थना भी अभी अगले एक सप्ताह तक कोई ब्लॉगसमूह न चेअक करें.....शायद उसके बाद इनपर कुछ बेहतर मिल सके....क्यूंकि मानसिक विक्षिप्त जिसे किसी अस्पताल में होना चाहिए..अभी ब्लॉग जगत में है....जाहिर है...उथल-पुथल तोः मचेगी....लेकिन इसका भी हल निकला ही जायेगा....
आप सबका
हृदयेंद्र
(नीच जानवर....बस कर...यही कह सकता हूँ)....

तुम मुझे बलात्कार के प्रयास का आरोपी साबित करो वरना मैं तुम्हें कालिया-कमीना-फादरचोद कहूंगा

दिल्ली का कालिया दैत्य अपने बुने जाल में धंसता चला जा रहा है। यकीं न हो तो नीचे के दोनों प्वाइंट्स पर नजर डालिए....

नंबर एक
एनडीटीवी के बैनर का दुरुपयोग करने का सिलसिला अविनाश अब भी जारी रखे हुए है। हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं और एनडीटीवी प्रबंधन से इसे स्वतः संज्ञान में लेने का अनुरोध करते हैं। इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि ....

कालिया ने जो मेल दिल्ली पुलिस के लिए तैयार की है और हम लोगों को डराने के लए भेजी है, उसमें मुद्दा तो ब्लागिंग से जुडे़ झगड़े का है लेकिन उसने अप्लीकेशन में अपना काम और पद एनडीटीवी का दिखाया है, मोहल्ला और माडरेटर का नहीं दिखाया है। ये दोगलापन है। वैसे तो आप दिन भर मोहल्ला मोहल्ला और माडरेटर माडरेटर और ब्लाग ब्लाग चिल्लाएंगे, जब खुद पर पड़ेगी तो पुलिस के पास एनडीटीवी का बैनर लेकर जाएंगे। यह बताता है कि कालिया अंदर के कितना दोहरा, खोखला और धूर्त टाइप प्राणी है।

जहां जिस तरह काम बने, बना लो के फंडे पर जीने और सोचने वाला यह बंदा एक और बड़े फंदे में फंस गया है।

अतीत में भी अविनाश ने एनडीटीवी के बैनर के सहारे पत्रकारों को नौकरी देने का झांसा देते हुए उन्हें अपने ब्लाग पर लिखने के लिए बाध्य करता रहा है। यह सरासर किसी संस्थान की प्रतिष्टा का दुरुपयोग है। हम इस कृत्य की घोर निंद करते हैं और एनडीटीवी प्रबंधन से ऐसे भेड़िए टाइप आदमी के बारे में छानबीन करने की गुजारिश करते हैं।

((अपने भड़ासी साथियों और शुभचिंतकों से अनुरोध है कि वो एनडीटीवी के कर्ताधर्ता प्रणय राय या अन्य किसी शीर्षस्थ अधिकारी की मेल आईडी मुझ तक मेल से पहुंचाएं। मेरी मेल आईडी है yashwantdelhi@gmail.com))


नंबर दो
वो बार बार मुझे बलात्कार के प्रयास का आरोपी बता रहा है। मैं इस मामले में लगातार चुप हूं क्योंकि मैं इसमें कुछ भी बोल के अपने लोगों को तमाशा नहीं बनाना चाहता, अपने लोगों पर कीचड़ नहीं उछालना चाहता। जितनी भी बदनामी होनी है, वो सिर्फ मेरी हो ले। ये मेरा बड़प्पन या त्याग नहीं, ये मेरी सहज वृत्ति है जिसे हमेशा से जीता आया हूं और आगे भी बरकरार रखूंगा।

तो मैं कह रहा था कि हाहाकार मचाकर बंदर कूद गया लंकर के अंदर वाली स्टाइल में कालिया जिस तरह लगातार इस मुद्दे को गलत-सलत तरीके से उछालकर और शब्दों के मैथुन से भांति भांति के एंगिल पैदाकर मुझे बदनाम करने की कोशिश कर रहा है, उसमें वो अब खुद ही फंसने वाला है।

मेरा चैलेंज है कि वो मुझे बलात्कार के प्रयास का आरोपी ठहराए वरना मैं उसका नाम सदा के लिए कालिया कमीना फादरचोद रख दूंगा। वो बताए कि उसने किस आधार पर मुझे बलात्कार के प्रयास का आरोपी कहा है। मेरी चुप्पी का मतलब मेरी कमजोरी नहीं, मेरी मजबूरी नहीं, मेरा मनुष्यता में यकीन है जिसके नतीजे में हमेशा मेरे हिस्से दुख, बुराई और दर्द ही आते रहे हैं और इन्हीं से सींचा गया हूं मैं और इसी सिंचाई से अंदर की मजबूती आती है।


डा. रूपेश, यशवंत, रजनीश के झा, हृदयेंद्र प्रताप सिंह, मनीष राज से तुम्हारा कोई निजी झगड़ा नहीं है, ये वैचारिक झगड़ा है और ये केवल पांच से नहीं बल्कि भड़ास के 315 सदस्यों और लाखों पाठकों से है।


तुम्हारी कमीनगी अतीत में कइयों के द्वारा खोली जा चुकी है, लोगों का तुम पे भरोसा नहीं है क्योंकि तुम्हारा हर कदम अपने स्वार्थ को केंद्र में रखकर होता है। अगर तुमने जीवन में इमानदार लड़ाइयां लड़ी होतीं तो हम सारे भड़ासी खुद ब खुद तुम्हें अपना नेता मान लेते लेकिन तुम्हें क्या पता कि इमानदारी किसे कहते हैं, सहजता किसे कहते हैं, सरलता किसे कहते हैं। तुम अभी जीना सीख ले बेटा।

अभी तो तुम एनडीटीवी के बैनर के चलते उछल रहा है, सोच वो दिन जब तुम्हारे उपर कोई बैनर वैनर न होगा, सिर्फ बर्र के छत्ते होंगे और उस छत्ते पर ढेला हम लोग मारेंगे।


तुम्हारे पास 24 घंटे का वक्त है अविनाश। या तो तुम अपनी सभी पोस्टों से बलात्कार के प्रयास के आरोपी शब्द को हटाओ या फिर तुम कालिया कमीना फादरचोद कहे जाने के लिए व अन्य दुष्परिणाम झेलने के लिए तैयार रहो।

मुझे कानून की धाराओं का नहीं पता। न कभी पता करने की जरूरत पड़ी। पर मुझे इतना पता है कि कालिया मुझे उखाड़ने के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है और कोई भी लैंग्वेज इस्तेमाल कर सकता है।



नंबर तीन
अविनाश, पुलिस के नाम का इस्तेमाल करके डराना भी एक अपराध है। तुम्हें शायद नहीं पता। हमारे पास सारे सबूत इकट्ठे हो रहे हैं। तुमने गीदड़भभकियों के जरिए सामने वाले को डराने का खेल रांची, पटना और देवघर में खेला होगा जिससे लोग डरे भी होंगे। या तो फिर तुमने दिल्ली में सरल सहज व संवेदनशील बुद्धिजीवियों से पंगा लिया होगा जो तुम जैसे थेथर, नंगे और कुंठित पंगेबाज से भिड़ने में डरते होंगे। इस बार ही तुम असल लोगों से भिड़े हो। तुम्हें अगर फाटा पायजामा साबित करते हुए सड़क पर न टहलवा दिया तो हम लोगों का नाम भी हरामी द ग्रेट नहीं।


जय भड़ास
यशवंत

(....भाई भड़ासियों से माफी के साथ कि मैंने इस मुद्दे पर न लिखने का वादा किया था पर मजबूरन व आत्मरक्षार्थ मुझे ये जंग लड़नी पड़ रही है। उम्मीद है अन्यथा न लेंगे और अपना प्यार बनाये रखेंगे)

जरा हमसे नजरें लड़ाओ तो जाने
यो नजरें तुम्हारी है जलवों के थाने
है आसान जितने ये पलभर में करने
है मुशकिल ही उतने ये वादे निभाने
छुड़ा करके दामन चले हो सितमगर
मेरी यादों से जा के दिखाओ तो जाने
हैं दरीचों में यादों के बावस्ता अब तक
वो रेशम के लम्हें वो मंजर सुहाने
है मकबूल उल्फत की महफिल में हमसा
कोई सिरफिरा आगे आये तो जाने।
मृगेन्द्र मकबूल

मै जिंदा हूँ...

बहुत दिनों बाद अपनी भड़ास निकाल रहा हूँ इस का मतलब ये नहीं की कुछ दिनों के लिये मर गया था। हफ्ते भर के लिये झीलों की नगरी भोपाल में हूँ । यहाँ आजकल बहुत उमस है । अख़बारों की बारिश खूब हो रही है , चेनलों के ओले भी गिर रहे हैं । अच्छे-अच्छे अखबार और पत्रकार ओछेपन की छतरी लगा कर घूम रहे हैं । पत्रकारिता जगत के तथा कथित (बूढे) बुद्धजीवी पैसे के प्रलोभन की आंधी में पेड़ की तरह उखड़ कर अपना एरिया बदल रहे है । इधर चुनाव की स्वर्णवर्षा में भीगने के लिये बंधु कमर कस रहे हैं । अनुभव और भी हैं लेकिन धीरे - धीरे ही बाटूँगा... हाँ सचिन भाई ( नई इबारतें ) से छोटी सी मुलाक़ात हो गई थी । अच्छा लगा ।

अगर तुम्हें जेल की पथरीली दीवारों के अंदर रख दिया जाए जो एकदम बहरी होती हैं, और एक फुसफुसाहट तक भीतर नहीं आने देतीं, तब भी तुम्हें कुछ फर्क नहीं पड़ेगा

सबद...


मेरे दोस्त और युवा लेखक-पत्रकार अनुराग वत्स ने एक बहुत अच्छा ब्लॉग बनाया है । मैंने रिल्के पर राजी सेठ की की यह टिप्पणी वही से उठाई है । आप भी पढिये , मजा आएगा और हाँ , ऐसी चीजें और पढ़ना चाहें टू अनुराग ब्लॉग का चक्कर लगाएं -http://www.vatsanurag.blogspot.com/


हरे प्रकाश उपाध्याय



रिल्के पर राजी
(सबद उन लेखकों के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता है जिन्होंने इसे अपनी रचनाओं के प्रकाशन के लिए उपयुक्त स्थान माना और शीघ्रता से अपनी रचनाएँ उपलब्ध कराई। लेखकों की रचनाओं के प्रकाशन की शुरुआत हमने वरिष्ठ कवि कुंवर नारायण की कविताओं से की थी। अब इसी क्रम में हमें हिन्दी की वरिष्ठ कथाकार राजी सेठ का सहयोग प्राप्त हुआ है। राजी का रिल्के प्रेम जग ज़ाहिर है। उन्होंने जितनी लगन और काव्यात्मक सूझबूझ से महान जर्मन कवि रिल्के को हिन्दी में गृहस्त बनया है वह अपने-आप में प्रतिमान सरीखा है। उनका रिल्के के पत्रों का अनुवाद पुस्तकाकार प्रकाशित-प्रशंषित हो चुका है। यहाँ हम रिल्के पर लिखा उनका लेख पहली दफा छाप रहे हैं।)
अंतरालों का अन्वेषक - रिल्के
एक अच्छी कविता लिखने के लिए तुम्हें बहुत से नगर और नागरिक और वस्तुएं देखनी-जाननी चाहिए। बहुत से पशु और पक्षी ...पक्षियों के उड़ने का ढब , नन्हें फूलों के किसी कोरे प्रात: में खिलने की मुद्रा , अज्ञात प्रदेशों ...अनजानी सड़कों को पलटकर देखने का स्वाद। अप्रत्याशित से मिलन। कब से अनुमानित बिछोह। बचपन के अनजाने दिनों के अबूझ रहस्य , माता-पिता जिन्हें आहत करना पड़ा था , क्योंकि उनके जुटाए सुख उस घड़ी आत्मसात नहीं हो पाए थे। आमूल बदल देनेवाली छुटपन की रुग्नताएं। खामोश कमरों में दुबके दिन। समुद्र की सुबह। समुद्र ख़ुद। सब समुद्र । सितारों से होड़ लगाती यात्रा की गतिवान रातें। नहीं , इतना भर ही नहीं । उद्दाम रातों कि नेह भरी स्मृतियाँ ...प्रसव पीड़ा में चीखती औरत । पीली रोशनी । निद्रा में उतरती सद्य: प्रसूता । मरणासन्न के सिरहाने ठिठके क्षण । मृतक के साथ खुली खिड़की वाले कमरे में गुजारी रात्रि और बाहर बिखरा शोर ।
नहीं, इन सब यादों में तिर जाना काफी नहीं ; तुम्हें और भी कुछ चाहिए ....इस स्मृति -सम्पदा को भुला देने का बल । इनके लौटने को देखने का अनंत धीरज .....जानते हुए कि इस बार जब वह आएगी तो यादें नहीं होंगी । हमारे ही रक्त ,मुद्रा और भाव में घुल चुकी अनाम धप-धप होगी , जो अचानक ,अनूठे शब्दों में फूटकर किसी घड़ी बोल देना चाहेगी , अपने आप ।
यह रिल्के है। इन पंक्तियों को जब पढ़ा था तो यह बात ज्ञात नहीं थी। किसी पत्रिका में छपे एक लेख में एक उद्धरण कि तरह ये पंक्तियाँ पढ़ने में आई थीं। पंक्तियों ने इतना उद्वेलित किया था कि लगभग अभिमंत्रित-सी स्थिति में मैंने इसका बरबस अनुवाद कर डाला था। एक आंतरिक लय जैसी अनुवाद में स्वत: गुंथती चली गई थी। तब यह भी ज्ञात नहीं था की यह के रिल्के एकमेव उपन्यास का कोई खंड है, कविता नहीं । उसी समय याद आया कि एक बार पहले भी ऐसे अनुभव से गुजरना हो चुका है। रिल्के के शब्दों की टंकार ऐसी ही प्रतिक्रिया जगा चुकी है। वर्षों पहले किसी यात्रा में सहयात्री द्वारा पढी जाती गुजरती पत्रिका और उस लेख में अंग्रेजी में उधृत ये पंक्तियाँ जिसका अर्थ कुछ-कुछ ऐसा था कि धीरे-धीरे डूब रहा हूँ अपने ही घाव में जो कभी नहीं भरते, इसलिए खड़ा रहता हूँ अपने ही रक्त में। रक्त स्नात यातना में...पंक्तियों का क्रम उतना याद नहीं, प्रतिक्रिया याद है। लगा था, संवेदन की सघनता ने आवेग को इतना प्रवाही बना दिया है कि पाठक के मन में प्रवेश कि सुविधा एकाएक उपलब्ध हो गई है।
दोनों उद्धरणों को साथ रख कर देखने में एक अजीब विरोधी-सी अनुभूति हुई थी। एक में अनुभव की समावेशिता का इतना निरंकुश आग्रह, दूसरे में अपने ही घावों में डूबे रहने की आत्मरत नियतिबद्ध पीड़ा। कौन-सा रिल्के सच है ? तब इस बात पर ध्यान नहीं गया था कि पंक्तियाँ नहीं पकड़ रहीं (क्योंकि पंक्तियाँ तो लेखक के पास अनंत होती हैं और उनमे से 'कुछ' में सारा सत्वा समाया नहीं होता), पंक्तियों के पीछे की उत्कटता पकड़ रही है, जो रिल्के का अकाट्य यथार्थ है। उत्कटता रिल्के के लिए अनिवार्य है। वही उसकी सघनता का आत्मीय आयाम है। वह जब भी कुछ कहने को उद्हत होता है, उसी मनाग्रता को छूने के लिए लपकता है, जहाँ आवेग अपनी सृष्टि का पूरापन रच सके। अपनी ऊर्जा से उसका आदि-अंत ढूंढ ले। उसका बाहरी यथार्थ से कोई संबंध हो या न हो. शायद इसीलिए यथार्थ की वास्तविकता यहाँ अलग किस्म की है।
अपने यथार्थ की विराटता का भी हमें ज्ञान होना चाहिए। अब तक की अजानी लगभग हर चीज को उस ज्ञान में शामिल होना चाहिए। अंतत: हमें अपने भीतर इसी प्रकार के साहस की ज़रूरत है - अजनबी, असाधारण, अव्याख्येय अनुभवों का सामना करने का साहस। जीवन को समझने के लिए लोगों की तंगदिली ज़्यादा बाधक होती है।
रिल्के के आतंरिक रुझानों की बात तब ज़्यादा स्पष्ट हुई जब रिल्के की एक छोटी सी पुस्तक पढने का अवसर मिला। पुस्तक का नाम था- लेटर्स टू अ यंग पोएट। इस पुस्तक ने रिल्के की संवेदना के चरित्र को अदबदाकर खोल दिया। यह पुस्तक रिल्के के दस पत्रों का संकलन है जो मिलिट्री अकादमी (जहाँ स्वयं रिल्के की दीक्षा हुई थी), में दीक्षारत एक युवक फ्रान्ज़ जेवियर काप्पुस को लिखे गए थे। वस्तुतः काप्पुस कवि बनने का आकांक्षी था और अपनी कविताओं पर कवि की राय जानना चाहता था। इस सन्दर्भ में पत्राचार चार वर्षों (१९०३-१९०८) तक का लंबा सिलसिला चल निकला। उन दोनों की भेंट कभी नहीं हो पाई थी। यह बात उल्लेखनीय है कि तब रिल्के की आयु सत्ताईस वर्ष और काप्पुस की बाईस वर्ष थी। उस आयु में जैसी तीव्र परिपक्व विराटोन्मुख तड़प के दर्शन हुए हैं, वह असाधारण है। रचनात्मक साहित्य के प्रारूपों में जो समानुभूति रुक-रुक कर व्याख्या करते उद्घाटित होती है, वह यहाँ सीधे प्राप्त हो गई है। इसका एक कारण तो पत्र विधा की हार्दिकता है। दूसरा, इस पुस्तक में काप्पुस के पत्र शामिल नहीं हैं, अतः रिल्के की मानसिकता का शुद्ध रूप पाठक को उपलब्ध हो गया है। यह निर्बाध उद्वेलन उसके निहायत जटिल, दुरूह और उद्दीप्त रचानारूपों से अलग किस्म का नहीं है। इनसे गुजरते समय ऐसा लगता है कि संदर्भ का सहारा पाते ही रिल्के अपने आप से बोलने लगता है। प्रश्न का छोटापन उस संबोधन में पिचक कर रह जाता है। उत्प्रेरित रचना की एक स्मृति चित्त में रह जाती है जो अपनी उत्कटता के चलते पवित्र और खरा प्रभाव छोड़ती है। इन पत्रों में रिल्के अपने ही रक्त की रिसती बावड़ी में खड़ा दिखाई देता है। चूँकि सृजनात्मकता का मुद्दा केन्द्र में है, इसलिए वह उस आत्यान्तिकता तक गया है।
एक ही काम है जो तुम्हें करना चाहिए - अपने में लौट जाओ। उस केन्द्र को ढूंढो जो तुम्हें लिखने का आदेश देता है। जानने की कोशिश करो कि क्या इस बाध्यता ने तुम्हारे भीतर अपनी जड़ें फैला ली हैं ? अपने से पूछो कि यदि तुम्हें लिखने की मनाही हो जाए तो क्या तुम जीवित रहना चाहोगे ?...अपने को टटोलो...इस गंभीरतम ऊहापोह के अंत में साफ-सुथरी समर्थ 'हाँ'' सुनने को मिले, तभी तुम्हें अपने जीवन का निर्माण इस अनिवार्यता के मुताबिक करना चाहिए।
या फिर
अगर अपना रोज का जीवन दरिद्र लगे तो जीवन को मत कोसो। अपने को कोसो। स्वीकारो कि तुम उतने अच्छे कवि नहीं हो पाए कि अपनी रिद्धियों-सिद्धियों का आह्वान कर सको। वस्तुतः रचियता के लिए न दरिद्रता सच है, न ही कोई स्थान निस्संग। अगर तुम्हें जेल की पथरीली दीवारों के अंदर रख दिया जाए जो एकदम बहरी होती हैं, और एक फुसफुसाहट तक भीतर नहीं आने देतीं, तब भी तुम्हें कुछ फर्क नहीं पड़ेगा। तुम्हारे पास बचपन तो होगा...स्मृतियों की अनमोल मंजूषा...एकांत विस्तृत होकर एक ऐसा नीड़ बनाएगा, जहाँ तुम मंद रोशनी में भी रह सकोगे।
यह सब कह कर रिल्के उद्गमों की जांच-पड़ताल और शुद्धता की बात करता है।लेखन कर्म में जुड़ी मंशाओं की आत्मलोचक चीर-फाड़। यह निर्ममता रिल्के में खूब है। जो कुछ उसने इस पुस्तक के माध्यम से कहा है वह आज से पहले कभी इतना ज़रूरी नहीं लगा क्योंकि छपने के साथ- साथ अमरता की महती इच्छा लेखकों की बड़ी जमात को ग्रस चुकती है। पर ऐसा लगता है, इन पत्रों में रिल्के सृजनकर्म की आध्यात्मिक सरहदों को टटोल रहा है।आध्यात्मिक शब्द का इस्तेमाल आज के बौद्धिक समाज में खतरे से खली नहीं है। हाल ही में एक आलोचक ने साहित्य में आध्यात्मिकता की बात उठाकर सुधी जनसमूह को बर्रे की छत की तरह छेड़ दिया था, पर आध्यात्मिकता भी और सब शब्दों की तरह एक शब्द है - एक निर्मूल्य वाहक। वह हर क्षेत्र को उपलब्ध है।उसकी संदर्भवत्ता उसके इस्तेमाल में है।साहित्य में इस शब्द के इस्तेमाल से बनी लचीली विराट और निहायत निजी ज़मीन है।अतिक्रमण द्वारा जिस स्थूल और प्रकट सरहदों को हम लांघने की बात करते हैं, वह आध्यात्मिकता है।जिस अनुमानिता से लड़ते रह कर हम नए विधागत या भाषागत प्रयोगों में उतारते हैं, वह भी साहित्य की है।जिस विवेक से हम वाग्जाल में से वांगमय की तलाश करते हैं वह भी साहित्य की आध्यात्मिकता है। यह कोई धार्मिकता नहीं है कि धर्म-निरपेक्षता को परिभाषा देने के लिए दूसरे छोर की तरह काम आए। इस पहलू पर विचारणीय मात्र इतना है कि अदृश्य की परिसीमा को महसूस कर पाना क्या सृजनकर्म की अपनी ही कोई अवस्था है या लेखक के अपूर्व संवेदन का कोई असाधारण गुण ? रिल्के को लेकर यह प्रश्न हमारे सम्मुख एकदम तीव्रतम बना रहता है। एकांत और विराटता रिल्के जैसे रचनाकार के लिए एक ही सीध में खड़े हैं। एकांत नकारात्मक नहीं, विराट और समावेशी है। वह अकेलापन या निस्संगता भी नहीं, अपने चैतन्य का गहरा आभास है।अपनी पूर्णता को पाने के लिए अनुपस्थिति का विराट अनुभव : एकांत को अपने भीतर ज़ज्ब होने दो फ़िर कभी तुम्हारे जीवन से नहीं होगा। एक सतत सुनिश्चित अंतर्वाह की तरह तुम्हारे भीतर प्रवाहित रहेगा जैसे हमारे रक्त में घुल-मिल चुका हमारे पुरखों का रक्त...रिल्के का एकांत एक ऐसे निर्दोष,सक्रिय,शांत असीम को पाने का है जहाँ उन चीजों का दखल न हो जो बनते हुए विजन को छोड़ सकें। उसकी हर चिंता, चिंतन के दौरान दूर जाते हुए उसी एक अनिवार्यता तक लौटती दिखती है।प्रेम की परिभाषा भी यहाँ इस रूप में है : जहाँ दोनों एकांत सुरक्षित रहते हुए भी एक-दूसरे का अभिनन्दन कर सकते हों।
शायद यही कारण रहा हो की रिल्के का अपना एकांत सबंधात्मक जीवन सदा तनाव में रहा।१९१० में क्लैरा से उसका विवाह दो वर्ष से अधिक नहीं चल पाया।एक निस्संग साधक और उत्कट प्रेमी उसके भीतर विरोधी स्थिति में मौजूद रहे।यों देखा जाए तो रचनाधर्मी के लिए यह प्रश्न आज भी उतना ही अनिर्णीत है।इतने छोटे कलेवर में इतनी सघन बातों का संदर्भ बार-बार इसी के निकट ले जाता है कि इन्हें लिखनेवाला आत्मसंबोधन की किसी हार्दिक स्थिति से गुजरता हुआ अपने कर्म की सत्ता और सार्थकता को तलाश रहा है।रिल्के, केवल ५१ वर्ष जिया (१८७५-१९२६, जन्म : प्राग)।उसका बचपन अवसादमय था और उसे आर्थिक संगर्ष भी झलने पड़े।बाद के दिनों में वह अद्वितीय शिल्पी रोदां का घनिष्ठ बना।आजीवन रिश्तों और रचनाओं के बीच लहुलुहान होता रहा।उजाले की हर सतह को छेदती उसकी रचनात्मकता, विराट को मनुष्य की भासा में छू लेने की उसकी उत्कटता...यह सब उसे उस पाए का रचनाकार बनता है जिसका अवतरण भाषा में कभी-कभार ही सम्भव हो पता है।

लीडर को आम जलसे में गैंडे की खाल दी

हास्य गजल
जालिम ने देस्ती की वो बढिया मिसाल दी
खटिया भी अपनी कल मेरे आंगन में डाल दी
इक हादसे में कट गई कल जेब यार की
लेकर तलाशी रूह हमारी खंगाल दी
दिखलाया धूमधाम से पब्लिक ने आईना
लीडर को आम जलसे में गैंडे की खाल दी
महबूब को ये सोचा था कुल्फी खिलाएंगे
कुल्फी के रेट ने तो हवा ही निकाल दी
मिलती नहीं है क्रीम मुझे मेरे ब्रांड की
झुंझलाके उसने कल पे मुलाकात टाल दी
कमजोर दिल के लोग भी हैं इश्क के मरीज
फिर क्यों खुदा ने हुस्न को ये मस्त चाल दी
ये कहके सब उतार दो कर्जा विदेश का
मंत्री पे एक बच्चे ने गुल्लक उछाल दी
पीकर कई मरे पढ़ी नीरव ने जब खबर
अपनी बची शराब मुझे उसने ढाल दी।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६

जिन युवा लेखकों को अपना पहला उपन्यास लिखना है वे गोदर गाँवा में आकर लिख सकते हैं


हाल ही में प्रगतिशील लेखक संघ का राष्ट्रीय सम्मेलन बेगुसराय के गोदर गांवा में संपन्न हुआ। अब उसी गाँव से एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ कि जिन युवा लेखकों को अपना पहला उपन्यास लिखना है वे गोदर गाँवा में आकर लिख सकते हैं । अगर आप भी गाँव में बैठ कर अपना उपन्यास लिखना चाहते हैं तो सम्पर्क कर सकते हैं। सम्पर्क के लिए फ़ोन नम्बर +91-98291-90626 प्रेम चन्द गांधी अथवा राजेंद्र राजन से +919430885162 पर बात करें।
(यह ख़बर कवि प्रेमचंद गाँधी के सौजन्य से । गोदर गावां बिहार में है )

कितना सुंदर था वो बचपन ,कैसा है ये आज का बचपन


भोला बचपन , प्यारा बचपन ,कितना सुंदर था वो बचपन,सुबह देर से उठाना , जल्दी सोना , बिन चिंता सपनो मै खोना, कभी रोना तो कभी हँसना , सबसे अपनी बातें मनवा लेना , कितना न्यारा था वो बचपन , प्यारी सी किताबे रंग बिरंगी , सुंदर कविताएं चाँद तारो की , थोड़ा सा काम ,पूरे दिन आराम , खेल खेलना दोस्तो संग , सूरज की शादी चाँद के संग, गुड्डे - गुडियों से खेला करते थे बचपन मै झूला करते थे ,न चिंता किसी की न फिक्र कोई , पंख बिना ही उड़ जाते थे, सारी खुशियाँ झोली मै भर लेते थे , कभी भागते तितलियों के पीछे तो कभी नीले आकाश को छुवा करते थे, मम्मी - पापा के प्यारे थे हम , सबके राज दुलारे थे .
आज का बचपन---------------------
भोला बचपन,प्यारा बचपन, पर जाने क्यों आज , नीरस हो गया बचपन , सुबह जल्दी उठना , रात देर से सोना, चिंता मै सपनो का खोना , हंसने का भी टाइम नही अब , रोने को भी टाइम नही है, हर दम चिंता सताती , पढ़ाई की ही रट लगी रहती , निकलना है सबसे आगे , मम्मी हरदम यही समझाती , खो गई चाँद - तारो की कहानी , हो गई अब ये बहुत पुरानी , अब कोई नही भागता तितलियों के पीछे , न देखता है नीला आकाश कोई , और न अब पंछियों सी ही आजादी है , खेल - खिलोने छुट गए सब , संगी- साथी भी रूठ गए अब , हरदम नंबर आने की होड़ लगी है , सबको पीछे कैसे छोड़ना है , यही जोड़ - तोड़ लगी है , अपना वजन है कम , किताबो का ज्यादा है , इस कोम्पटीसन के जमाने ने तो , बच्चो से बचपन ही छीन लिया है .

मोहल्ले में निकल रही भड़ास और भड़ास बना मोहल्ला

बहुत दिनों बाद अपने एक मित्र के बताने पर भड़ास पर आया तो देखता हूं कि भड़ास में एक मोहल्ला बन गया है और मोहल्ले में भड़ास निकल रही है। बात आगे कहने से पहले यशवंत जी एवं सभी बंधुओं से क्षमा चाहता हूं कि भड़ास पर भड़ासी भाइयों का साथ देने की जगह कुछ विपरीत लिख रहा हूं। यदि पहली बार पढने में मेरी कही गई बात गलत या बुरी लगे तो अनुरोध है कि इस पोस्ट को दोबारा पढ़ें और शांति से आत्ममंथन करे।
सबसे पहली बात तो यह है कि भड़ास एक सामुदायिक ब्लॉग है जिसका उद्देश्य पूरे देश के पत्रकारों और आम जन को अपने मन की भड़ास और कुंठाओं को को निकालने का एक मंच प्रदान करना है। हम भड़ास पर बात करते हैं उन सभी गलत बातों की जो समाज में या फिर पत्रकारिता जगत में चल रही हैं। तो फिर नम्बर वन या नम्बर टू वाली बात ही नहीं उठती। और अगर हम लोग ही इस होड़ा-होड़ी में लग जायेंगे तो फिर सनसनी को खबर बना कर प्रस्तुत कर रहे और टी.आर.पी. की अन्धी दौड़ में लगे हुए खबरिया चैनलों में क्या फर्क़ रह जाएगा? और अगर हम ऐसा करते हैं तो कहीं न कहीं हम अपने उद्देश्य से तो भटकते ही हैं साथ ही साथ भड़ास ने जिस पुण्यकर्म के लिए जन्म लिया है उसे भी दूषित करते हैं।
एक तरफ तो हम ब्लॉगिंग को भविष्य के एक सशक्त वैकल्पिक मीडिया के रूप में प्रस्तुत करते हैं और दूसरी तरफ ऐसी छींटाकशी करते हैं। और रही बात नम्बर वन की तो चाहे आज खबरिया चैनल कितनी भी टी.आर.पी. कमा लें पर खबर के मामले में दूरदर्शन की बराबरी नहीं कर सकते क्यों कि आज भी दूरदर्शन “अमिताभ बच्चन के पैदल सिद्धिविनायक मन्दिर जाने” या फिर “मल्लिका शेरावत या राखी सावंत की नंगी टांगों” को मुख्य खबर बना कर नहीं दिखाता। वह आज भी अपने मापदंण्डो पर तटस्थ है। इसीलिये उसकी विश्वस्नीयता आज भी बरकरार है।
मैं यह नहीं कहता कि व्यवसायिक प्रतिद्वन्दिता नही होनी चाहिये। वह भी एक समग्र विकास के लिए बहुत ज़रूरी है परंतु यह भी ध्यान रखा जाए कि यह व्यवसायिक प्रतिद्वंदिता कहीं दुश्मनी में न बदल जाए। और अगर बदले भी तो कम से कम बशीर बद्र साहब की उन लाइनों को तो अवश्य याद रखा जाए जो कहती हैं: दुश्मनी जम के करो पर यह गुंजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिन्दा न हों।
अभी के लिए बस इतना ही लिख रहा हूं आगे इस मसले पर और भी बहुत कुछ है लिखने को पर वो बाद में लिखूंगा। और अंत में मैं यह और कहूंगा कि आप सभी लोग बड़े पत्रकार हैं। बड़े-बड़े लोग हैं। मैं तो एक छोटे से शहर का रहने वाला हूं और अभी पत्रकारिता का शऊर सीख रहा हूं। हो सकता है की अत्यधिक आदर्शवादीता दिखा रहा हूं। सो अगर कुछ गलत लिख या बोल दिया हो तो क्षमाप्रार्थी हूं। छोटा समझ कर मांफ करें। और मेरी प्रतिबद्धिता भड़ास के प्रति है इसीलिए भड़ास के भले के लिए ही सोचूंगा न कि किसी व्यक्ति विशेष के लिए। और आपको भी इसीलिए बोल रहा हूं क्यों कि जब कोई विवाद होता है तो समझाया अपने व्यक्ति को ही जाता है। किसी सड़क चलते इंसान को नहीं समझाया जाता।

आखिर किस रंग का है कालिया

भड़ासी साथियों क्या कालिया को नहीं मालूम कि रंगभेदी टिप्पणियों का मतलब क्या होता है। उसे यह मालूम होना चाहिए कि इस तरह की टिप्पणियां हिंदुस्तान में नहीं चलती है। हम हिंदुस्तानी एक नस्ल के हैं और यह कालिया किस नस्ल का है, शायद इसे खुद भी नहीं पता। इसलिए यह रंगभेदी टिप्पणियों जैसे आरोपों को थाने तक ले गया है। अभी तक तो हिंदुस्तान में नस्लीय टिप्पणियां ही थाने तक जाती रही हैं, लेकिन जिस तरह से भड़ास में अविनाश की रंगभेद को लेकर रिपोटॆ डाली गई है, यह सिफॆ एक गीदड़भभकी है। इस तरह से यह साबित हो गया है कि कालिया सिफॆ चाटुकारिता जनॆलिस्ट है। अब तक के इसके कैरियर को देखा जाए तो इसने जितना काम किया, उससे ज्यादा अपनी बदनामी करा डाली।
कालिया को संदेश
कंककककककक कालिया भाई कुछ भी कहो जैसा नाम वैसा काम मैने सुना था कि आदमी को अगर अपने ऊपर लगे पापो के बोझ को हलका करना हो तो उसे कुछ अछे करम भी करने चाहिए‍ लेकिन इस कालिए के तो इतने भायानक करम है पता नहीं अब ये ऊंट किस करवट बैठेगा और किसको अपना शिकार बनाएगा‍।
लुधियाना से अमरदीप गुप्ता व आलोक सिंह रघुवंशी

तुम मुझे बलात्कार के प्रयास का आरोपी साबित करो वरना मैं तुम्हें कालिया-कमीना-फादरचोद कहूंगा

दिल्ली का कालिया दैत्य अपने बुने जाल में धंसता चला जा रहा है। यकीं न हो तो नीचे के प्वाइंट्स पर नजर डालिए....

नंबर एक
एनडीटीवी के बैनर का दुरुपयोग करने का सिलसिला अविनाश अब भी जारी रखे हुए है। हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं और एनडीटीवी प्रबंधन से इसे स्वतः संज्ञान में लेने का अनुरोध करते हैं। इसकी पुष्टि इस बात से होती है कि ....

कालिया ने जो मेल दिल्ली पुलिस के लिए तैयार की है और हम लोगों को डराने के लए भेजी है, उसमें मुद्दा तो ब्लागिंग से जुडे़ झगड़े का है लेकिन उसने अप्लीकेशन में अपना काम और पद एनडीटीवी का दिखाया है, मोहल्ला और माडरेटर का नहीं दिखाया है। ये दोगलापन है। वैसे तो आप दिन भर मोहल्ला मोहल्ला और माडरेटर माडरेटर और ब्लाग ब्लाग चिल्लाएंगे, जब खुद पर पड़ेगी तो पुलिस के पास एनडीटीवी का बैनर लेकर जाएंगे। यह बताता है कि कालिया अंदर के कितना दोहरा, खोखला और धूर्त टाइप प्राणी है।

जहां जिस तरह काम बने, बना लो के फंडे पर जीने और सोचने वाला यह बंदा एक और बड़े फंदे में फंस गया है।

अतीत में भी अविनाश ने एनडीटीवी के बैनर के सहारे पत्रकारों को नौकरी देने का झांसा देते हुए उन्हें अपने ब्लाग पर लिखने के लिए बाध्य करता रहा है। यह सरासर किसी संस्थान की प्रतिष्टा का दुरुपयोग है। हम इस कृत्य की घोर निंद करते हैं और एनडीटीवी प्रबंधन से ऐसे भेड़िए टाइप आदमी के बारे में छानबीन करने की गुजारिश करते हैं।

((अपने भड़ासी साथियों और शुभचिंतकों से अनुरोध है कि वो एनडीटीवी के कर्ताधर्ता प्रणय राय या अन्य किसी शीर्षस्थ अधिकारी की मेल आईडी मुझ तक मेल से पहुंचाएं। मेरी मेल आईडी है yashwantdelhi@gmail.com))


नंबर दो
वो बार बार मुझे बलात्कार के प्रयास का आरोपी बता रहा है। मैं इस मामले में लगातार चुप हूं क्योंकि मैं इसमें कुछ भी बोल के अपने लोगों को तमाशा नहीं बनाना चाहता, अपने लोगों पर कीचड़ नहीं उछालना चाहता। जितनी भी बदनामी होनी है, वो सिर्फ मेरी हो ले। ये मेरा बड़प्पन या त्याग नहीं, ये मेरी सहज वृत्ति है जिसे हमेशा से जीता आया हूं और आगे भी बरकरार रखूंगा।

तो मैं कह रहा था कि हाहाकार मचाकर बंदर कूद गया लंकर के अंदर वाली स्टाइल में कालिया जिस तरह लगातार इस मुद्दे को गलत-सलत तरीके से उछालकर और शब्दों के मैथुन से भांति भांति के एंगिल पैदाकर मुझे बदनाम करने की कोशिश कर रहा है, उसमें वो अब खुद ही फंसने वाला है।

मेरा चैलेंज है कि वो मुझे बलात्कार के प्रयास का आरोपी ठहराए वरना मैं उसका नाम सदा के लिए कालिया कमीना फादरचोद रख दूंगा। वो बताए कि उसने किस आधार पर मुझे बलात्कार के प्रयास का आरोपी कहा है। मेरी चुप्पी का मतलब मेरी कमजोरी नहीं, मेरी मजबूरी नहीं, मेरा मनुष्यता में यकीन है जिसके नतीजे में हमेशा मेरे हिस्से दुख, बुराई और दर्द ही आते रहे हैं और इन्हीं से सींचा गया हूं मैं और इसी सिंचाई से अंदर की मजबूती आती है।


डा. रूपेश, यशवंत, रजनीश के झा, हृदयेंद्र प्रताप सिंह, मनीष राज से तुम्हारा कोई निजी झगड़ा नहीं है, ये वैचारिक झगड़ा है और ये केवल पांच से नहीं बल्कि भड़ास के 315 सदस्यों और लाखों पाठकों से है।


तुम्हारी कमीनगी अतीत में कइयों के द्वारा खोली जा चुकी है, लोगों का तुम पे भरोसा नहीं है क्योंकि तुम्हारा हर कदम अपने स्वार्थ को केंद्र में रखकर होता है। अगर तुमने जीवन में इमानदार लड़ाइयां लड़ी होतीं तो हम सारे भड़ासी खुद ब खुद तुम्हें अपना नेता मान लेते लेकिन तुम्हें क्या पता कि इमानदारी किसे कहते हैं, सहजता किसे कहते हैं, सरलता किसे कहते हैं। तुम अभी जीना सीख ले बेटा।

अभी तो तुम एनडीटीवी के बैनर के चलते उछल रहा है, सोच वो दिन जब तुम्हारे उपर कोई बैनर वैनर न होगा, सिर्फ बर्र के छत्ते होंगे और उस छत्ते पर ढेला हम लोग मारेंगे।


तुम्हारे पास 24 घंटे का वक्त है अविनाश। या तो तुम अपनी सभी पोस्टों से बलात्कार के प्रयास के आरोपी शब्द को हटाओ या फिर तुम कालिया कमीना फादरचोद कहे जाने के लिए व अन्य दुष्परिणाम झेलने के लिए तैयार रहो।

मुझे कानून की धाराओं का नहीं पता। न कभी पता करने की जरूरत पड़ी। पर मुझे इतना पता है कि कालिया मुझे उखाड़ने के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है और कोई भी लैंग्वेज इस्तेमाल कर सकता है।



नंबर तीन
अविनाश, पुलिस के नाम का इस्तेमाल करके डराना भी एक अपराध है। तुम्हें शायद नहीं पता। हमारे पास सारे सबूत इकट्ठे हो रहे हैं। तुमने गीदड़भभकियों के जरिए सामने वाले को डराने का खेल रांची, पटना और देवघर में खेला होगा जिससे लोग डरे भी होंगे। या तो फिर तुमने दिल्ली में सरल सहज व संवेदनशील बुद्धिजीवियों से पंगा लिया होगा जो तुम जैसे थेथर, नंगे और कुंठित पंगेबाज से भिड़ने में डरते होंगे। इस बार ही तुम असल लोगों से भिड़े हो। तुम्हें अगर फाटा पायजामा साबित करते हुए सड़क पर न टहलवा दिया तो हम लोगों का नाम भी हरामी द ग्रेट नहीं।


जय भड़ास
यशवंत

(....भाई भड़ासियों से माफी के साथ कि मैंने इस मुद्दे पर न लिखने का वादा किया था पर मजबूरन व आत्मरक्षार्थ मुझे ये जंग लड़नी पड़ रही है। उम्मीद है अन्यथा न लेंगे और अपना प्यार बनाये रखेंगे)

28.5.08

हिन्दी-ब्लॉग का बेताज बादशाह "भड़ास"...... चिंदी चोर कालिया की फटी

कुछ दिनों पहले भडास पर हमारे मुखिया ने सूचना डाली थी की भडास दुनिया का न.१ हिन्दी ब्लॉग है। साथ ही सभी ब्लोगरों को खुली चुनौती की अगर कोई है जो भडास से आगे है तो अपनी बात साबित करे, हम उनकी बातों को वरीयता देते हुए अपने दावा वापस ले लेंगे। आज भडास पर ३१५ ब्लोगर हैं, भडास के पोस्टों की संख्या ३'१३५ के पार जा चुकी है। इस संख्या को चुनौती देने के लिए कोई सामने नही आया। यानि की सबकी सहमति और हिन्दी ब्लॉग के शिखर पर निर्विरोध "भडास"।


हिन्दी पत्रकारिता की तरह ही हिन्दी ब्लॉग में भी मठाधीश वह जिनको सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने निजी स्वार्थ और लोलुप स्वभाव से सरोकार है, ने इस चुनौती को तो स्वीकार नही किया क्योँकी वो बेचारा कहीं भी रेस में नही था परन्तु इस बात का मुगालता की बहुत से ब्लॉग के बाद जन्मा ये "भडास" अपनी सार्थकता,सर्वश्रेष्ठता,उपयोगिता,संग ही सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति सजग कैसे हो सकता है जबकि मठाधीश तो हम हैं और कारिस्तानी और कारगुजारियों का सिलसिला....... ये ऐसा चला की थमने का नाम नही फ़िर भी भडास का शिखर पथ जारी रहा। कारिस्तानी ऐसी की ब्लॉग जगत से ही प्रतिबंधित करने की साजिश। उस ब्लॉग को प्रतिबंधित करवाने की जो सबसे ज्यादा लोगों की बात सुनता है, देखता है, रखता है और सिर्फ़ इतना ही नही अपनी सार्थकता भी सिद्ध करता है। हमारे मुख्य प्रवक्ता मनीष राज द्वारा सुनीता प्रकरण पर भडास के संग उसको न्याय दिलाने का सामुहिक प्रयास। सलाहकार शशिकान्त अवस्थी द्वारा एक माँ को उसके घर पहुँचाने में सार्थक सहयोग।


ये सिर्फ़ इसलिए नही की हम ब्लोगर हैं बल्कि इसलिए की हमारा इस समाज के प्रति दायित्व, जिम्मेदारी सिर्फ़ इस वेब के पन्ने पे बहस और खत्म नही है जो अमूमन लोकतंत्र का चौथा पाया करता है, पेज बनाना और जिम्मेदारी से इतिश्री और लो भैये हम बन गए बुद्धिजीवी, टी वी पर सनसनी, बेतुके खबर क्यूंकि टी आर पी का चक्कर और ये हमारे समाज के पैरोकार.


समाज के इन बहुरूपिये से भडास का भडासीपन बर्दास्त नही हो रहा। बड़े बड़े फन्ने खान भडास के आगे बौने हो गए हैं और इनमे वह पत्रकार भी हैं जो ब्लॉगजगत के मठाधीश हैं मगर सब से परे अपने प्रगति पथ पर अग्रसर भडास आगे ही बढ़ता जा रहा है।

भडास की बढ़ती लोकप्रियता, कार्यशैली, और समजोंन्मुखी कार्य के लिए भडास पिता यशवंत को बेहिचक "ब्लोग पिता" का खिताब दिया जाय। और ये इस लिए नहीं की भडास नम्बर में सबसे आगे है बल्कि इसलिए क्योँ की सामजिक दायित्वों का निर्वहन समाज में जा कर करता है, ब्लोग मठाधीश की तरह ग्रीन रूम में बैठ कर नहीं.


एक बार फिर से तमाम ब्लोगर को चुनोती हमारी संख्या, पोस्ट, और ब्लोग अतिथि की संख्या के आधार पर हम ये घोषणा करते हैं की भडास शीर्ष पर है। अगर किसी मित्र,बंधू को एतराज हो तो आगे आयें।


यह दावा खारिज हो सकता है, जब कोई दूसरा हिंदी ब्लागर यह दावा करे या जानकारी दे कि उसका ब्लाग या फलां का ब्लाग सदस्य संख्या, हिट्स व पेज व्यू, पोस्टों की संख्या चारों मामले में भड़ास से उपर है।अगर इस पर किसी भी ब्लागर को कुछ कहना हो तो उनका स्वागत है क्योंकि उनकी बात से हम भी सीखना व जानना चाहते हैं।


रजनीश के झा
प्रवक्ता
भड़ास

और ये रही अविनाश द्वारा दिल्ली पुलिस से की गई शिकायत की मेल

इस मेल को खुद अविनाश ने यशवंत, डा. रूपेश, हृदयेंद्र, मनीष राज और रजनीश के झा के पास भेजा है। इसे मैं भड़ास पर इसलिए प्रकाशित कर रहा हूं कि ब्लागर समुदाय यह देख ले कि यह आदमी किस हद तक गिर सकता है।

ब्लागरों की आजादी की बात कहने वाला यह शख्स, बोलने की आजादी की बात करने वाला यह शख्स खुद तो चाहे जो करो, लेकिन जब दूसरा जवाब दे तो वो पुलिस के पास चला जाता है। यही है इस शख्स का चरित्र। आज पूरी तरह नंगा हो चुका है, इस मेल के बाद।

मैं अपने सभी साथियों से अनुरोध करता हूं कि वो इस मेल से बिलकुल ना डरें। जेल सिर्फ मैं जाऊंगा क्योंकि भड़ास पर लिखी गए हर शब्द के लिए मैं खुद को जिम्मेदार मानता हूं।

मैं अपनी तरफ से कोई शिकायत या कंप्लेन पुलिस में दर्ज नहीं कराऊंगा। हालांकि अविनाश ने जिस कदर मेरी मानहानि की है और जो कुछ लिखा है, और जिस कदर खुद जज बनकर मुकदमे का निपटारा अपने ब्लाग पर करते हुए मुझे शैतान घोषित कर फांसी की सजा सुनाई है, वो अपने आप में हिंदी ब्लागिंग में मिसाल है।

आज के दिन को मैं हिंदी ब्लागिंग का काला दिन मानता हूं जब कथित प्रगतिशील, मठाधीश और ब्लागिंग का दरोगा कहे जाने वाला यह ब्लागर अपनी दाल न गलते देख असल में पुलिस के पास चला गया है।

इसी के साथ मैं ये ऐलान करता हूं कि अविनाश के इस मेल के बाद उसका चेहरे का पूरी तरह पर्दाफाश हो गया है, इसलिए अब उसके खिलाफ कुछ भी कहा जाना बेकार है। अंतः भड़ास पर अब से अविनाश या मोहल्ला को लेकर कोई भी एक शब्द नहीं लिखे, ये मेरा सभी भड़ासियों से अनुरोध है।

अंततः हमारी जीत हुई

कौन सच्चा है, कौन झूठा है, उसका चेहरा सामने आ गया

रही जेल जाने की बात, तो स्टुडेंट पालिटिक्स के दिनों में जाने कितनी बार पुलिस की लाठियां खाई हैं, मार पड़ी है। इसलिए कि हम एक मिशन पर थे। आज भी अगर मैं जेल जाता हूं तो यह एक मिशन के तौर पर होगा और मैं इसके लिए सहर्ष तैयार हूं।

जय भड़ास
यशवंत



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अविनाश द्वारा भेजे गए मेल का संपूर्ण मजमून
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Complain of a Blogger Community

from avinash das avinashonly@gmail.com
19:00 (0 minutes ago)
to Yashwantdelhi@gmail.com, singh.hridayendra@gmail.com, rudrakshanathshrivastava7@gmail.com, manish_rj@yahoo.com, rajneeshjha@gmail.com
date 28 May 2008 19:00
subject Complain of a Blogger Community
mailed-by gmail.com

श्रीमान,

मैं हिंदी का एक आम ब्‍लॉगर हूं। पिछले दिनों बलात्‍कार के एक आरोपी के बारे में जब मैंने अपने ब्‍लॉग पर लिखा - http://mohalla.blogspot.com/2008/05/blog-post_25.html - उसके बाद इस आरोपी ने अपने कम्‍युनिटी ब्‍लॉग पर अपने और अपने साथियों के माध्‍यम से मुझ पर हमले तेज़ कर दिये। ये हमला निजी तौर पर चरित्रहनन से लेकर रंगभेदी टिप्‍पणियों के रूप में किये जा रहे हैं। हमारे ब्‍लॉग पर भी कई नामों से ये ऐसी टिप्‍पणियां कर रहे हैं, जिनके आईपी एड्रेस एक हैं। मैं कुछ लिंक आपको भेज रहा हूं।

http://bhadas.blogspot.com/2008/05/blog-post_44.htmlhttp://bhadas.blogspot.com/2008/05/blog-post_26.htmlhttp://bhadas.blogspot.com/2008/05/blog-post_8226.htmlhttp://bhadas.blogspot.com/2008/05/blog-post_62.html
http://bhadas.blogspot.com/2008/05/kaala-kaarnaama-kaaliya-ka-antim-bhag.html
http://bhadas.blogspot.com/2008/05/blog-post_3239.htmlhttp://bhadas.blogspot.com/2008/05/blog-post_7086.htmlhttp://bhadas.blogspot.com/2008/05/blog-post_5422.htmlhttp://bhadas.blogspot.com/2008/05/blog-post_9886.html

ये और इनके साथी जिस आईपी एड्रेसेज़ का इस्‍तेमाल करते हैं - वे हैं 220.226.32.64 और 61.12.30.18 और 59.180.132.85मेरी दिल्‍ली पुलिस से गुज़ारिश है कि मेरी शिक़ायत विधिवत रूप से दर्ज करें और उचित कार्रवाई करके मुझे राहत पहुंचाएं।

भवदीय,

अविनाश
आउटपुट एडिटर,
एनडीटीवी इंडिया
अर्चना कांप्‍लैक्‍स, ग्रेटर कैलाश पार्ट वन
नई दिल्‍ली

भड़ासियों को जेल में डलवाने की साजिश रच रहा है अविनाश

सबसे बड़ा ब्लाग और सबसे बड़ा ब्लागर बनने की हसरत पाले अविनाश हर वो हथकंडे आजमाने में जुटा है जिससे भड़ासियों का मनोबल तोड़ा जा सके और इनकी एकजुटता को ध्वस्त किया जा सके। शायद ऐसी मिसाल दुनिया के किसी देश में न हो जिसमें एक ब्लागर दूसरे ब्लागर को नीचा दिखाने के लिए पुलिस के साथ मिलकर कुचक्र रचे। कभी भड़ास और इसकी भदेस भाषा के समर्थन में हर जगह पैरोकारी करने वाले, लेख लिखने वाले, टीवी पर रिपोर्ट दिखाने वाले अविनाश अब इस ब्लाग के सबसे बड़ा ब्लाग हो जाने के बाद से परेशान हैं। इसी के बाद से उन्हें पेचिश उठी है, और उस स्थिति में उन्होंने.....

--कुछ महीनों पहले पहली बार उन्होंने भड़ास पर पाबंदी लगाने के लिए गूगल को मेल भेजो अभियान चलाया, पर उसका मुखर विरोध कर भड़ासियों ने ध्वस्त कर दिया

-इसी के तहत उन्होंने मेरे चरित्र और व्यक्तित्व के खिलाफ एकतरफा तरीके से अभियान चलाते हुए बलात्कारी, शैतान और न जाने क्या क्या होने का फैसला सुना दिया। पूरा का पूरा ब्लाग ट्रायल कर डाला। और यह ट्रायल अब भी चला रहा है। हम इसका जी जान से विरोध करते रहेंगे।

-इसी के तहत भड़ासियों को जेल में डलवाने के लिए आज पुलिस के साथ मिलकर कुचक्र रच रंहा है अविनाश। तभी इस कठपिंगल की तरफ से भड़ास को संदेश भेजा गया है कि दिल्ली पुलिस इस ब्लाग की फाइलें पलट रही है और जल्द ही हम भड़ासी जेल में होंगे।

यकीन न हो तो कठपिंगल का ये संदेश पढ़ लीजिए....



कठपिंगल has left a new comment on your post "धन्यवाद ब्लोग्गर मित्रों...":

अभी कहां धन्‍यवाद बेटा। अभी तो दिल्‍ली पुलिस तुम्‍हारे ब्‍लॉग के पन्‍ने पलट
रही है। अभी देखते जाओ, क्‍या क्‍या होता है। मेरे बलात्‍कारी बालक - अभी कुछ दिन में अपने प्‍यारे घर रहने जाओगे। भले ही ज़मानत पर बाहर आकर फिर गंध मचाओगे।
Posted by कठपिंगल to भड़ास at 28/5/08 1:40 PM


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इससे पहले कठपिंगल ने ये संदेश दिया भड़ास को.....

कठपिंगल has left a new comment on your post "कालिया से हुए पत्र व्यवहार का अप्रकाशित अंश.....":

भाई साहब, आप लोगों की जानकारी के लिए बता दें कि भड़ास पर रंगभेद का मुक़दमा होने जा रहा है। इस मामले में तीन साल की जेल होती है। जहां जहां कालिया लिखा है - मिटा दीजिए। ये गुप्‍त सूचना है, सिर्फ़ आपलोगों के लिए।
Posted by कठपिंगल to भड़ास at 28/5/08 10:54 AM
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तो भई कठपिंगल, जाकर उन लोगों को भी खबर कर दो कि यशवंत तैयार बैठा है जेल जाने के लिए। लेकिन जेल अकेले नहीं जाएंगे। जाएंगे तो उसके बाद अविनाश बाबू भी जाएंगे क्योंकि उन्होंने जो मानहानि की है और कर रहे हैं, उसकी कीमत वो जिंदगी भर चुकाएंगे, सिर्फ एक बार जेल जाकर नहीं। दूसरे, बोलने की आजादी सिर्फ उसी को नहीं मिली है जो वो जो चाहे लिखे और बाकी लोग उसके डर से चुप रहें। यह आजादी सबको है। अगर वो अपने हिप्पोक्रेट तरीके से किसी को फंसाने, धंसाने, डराने, गिराने, भगाने, बदनाम करने में लगा है तो कोई खुलकर उसके इन साजिशों का विरोध कर रहा है।


दूसरे, हम भड़ासी तुम्हारी गीदड़ धमकियों को किसी तरह लेते हैं, इसका सटीक जवाब डा. रूपेश और हृदयेंद्र ने दे दिया है। लो पढ़ लो.....


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डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) has left a new comment on your post "धन्यवाद ब्लोग्गर मित्रों...":

यार मैं तो सोचता था कि ये बड़ा शातिर आदमी है लेकिन ई तो ससुरा एकदम्मै
छुद्दुर निकला,पोलिस का नाम लेकर डरा रहा है। अबे चिरकुट,फ़टहे,फ़टी मुर्गी की पैदाइश
एक काम कर मेरी जितनी पोस्ट हैं उन्हें उठा और देश के हर पुलिस स्टेशन में शिकायत
दर्ज करवा दे कि मैंने तुझे भून कर खा जाने की कसम खाई है और बता कि तुझे कौन कौन सी गालियां लिखूं कि तू उनका प्रिंट आउट निकाल कर शिकायत कर सके? अब बिल में घुस कर अपने जैसे लोगों से गांड मरवा कर थोड़ा ताकत उधार ले लेना ताकि मुझसे मुखातिब हो कर बात कर सके.... और अगर सामने आने की ताकत हो तो मैं तो घोषित बुरा आदमी हूं, चल ब्लागिंग छोड़ कर पहले तेरी बजाता हूं फिर बाद में ब्लागिंग करूंगा... याद आया मैं वो हूं जिसने ब्लागवाणी को लौड़े पर मार दिया था.... हाथ पैर की लड़ाई लड़ना हो तो यशवंत दादा से नहीं मुझसे लड़ तो पता चलेगा कि कितना दम है,वरना कलम बहादुर बन कर बकरचुद्दई करना बंद कर... रही बात बदनाम करने की तो मैंने आज तक नाम की बात ही नहीं करी बदनामी-नेकनामी से मेरा रिश्ता नहीं है बस जो अच्छा लगा उसका हो लिया और जो बुरा लगा उसको साइड कर दिया लेकिन मुंह लगा तो उसकी गांड में सरसों की खेती करने से पीछे नहीं हटा... याद रखना कि मैं नंगा ही पैदा हुआ था और आज तक आचरण में नंगा हूं, अगर नंगई का खेल खेलना है तो मुझसे खेल बच्चे....
जय जय भड़ास

Posted by डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) to भड़ास at 28/5/08 5:34 PM



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हृदयेंद्र प्रताप सिंह has left a new comment on your post "धन्यवाद ब्लोग्गर मित्रों...":

aaj subah se hansa nahi tha...khair beta tumne muje hasne ka mauka diya....beta apne pita ke saath kaise pesh aatey hain..iska to khayal rakho...aur police se tum daro kyunki tumhara itihaas raha hai...kaale kaarnaame karne ka....yahan..sabkuch saaf suthra aur seedha hai...to police ka dar bhi nahi...aur waise bhi police shreefon ko tang nahi karti..abhi tak mere asie hi vichaar hai...police ka naam lekar dhmkaana apne chelon ko beta ye bihaar nahi delhi hai..kitni baar batau tuje...bacche mere...abhi bhi waqt hai kisi maansik aspataal me jaakar apna ilaaj karwa lo beta...gareeb ho muje maloom hai..paise main deta hun...aur haan..delhi police ka naara hai..with u, for u always...bhale logon ke saath hamesha police hai...meri chinta ka shukriya neech...apni chinta kar...police ke naam ka beja istemaal karke dhamkana bhi apraadh ki hi shreni me aata hoga...hai naa..



neech bhediye..ek baat aur



...yeah apne msg box me..jo shan se ip adress likhe hain...aur jaisa ki apni neech soch key chaltey sabko khud jaisa samajhtey ho...uspar daya hi aa rahi hai...yeah gumnaam aur badnaam mail tumhare hi khandaaniyon ki hain...itna kamjor nahi hun...tumhari tarah galat naam se dusaron ko gaaliyaan dun..aur ek baat phir...roj chain ki neend sota hun...isliye ki sabkuch jaayaj aur sahi karta hun...samjhey munnu beta....ab papa ko tang mat karna... papa kaam kar rahe hain..


Posted by हृदयेंद्र प्रताप सिंह to भड़ास at 28/5/08 4:58 PM



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सुन लिया कठपिंगल, सुन लिया अविनाश.......

तू जेल भिजवा, शान से जेल जाऊंगा मैं, बतौर मुख्य माडरेटर मैं अकेले जेल जाऊंगा और जेल की चक्की पीसूंगा। पर तुम ये न समझना कि उसके बाद चैन से अपना जीवन काटते रहोगे और बांसुरी बजाते रहोगे और पिंगल गाते रहोगे। हम तो मरेंगे सनम, तुमको भी ले डूबेंगे.....

जैसे निपटना चाहतो हो निपट सकते हो, खुली चुनौती है.....ब्लागिंग के स्तर पर, हरमजदगई के स्तर पर, कानूनी स्तर पर, सड़क के स्तर पर......तू जैसा करेगा, पीछे पीछे हम दो कदम आगे जाकर वैसा ही करेंगे, ये पक्का वादा है..

जय भड़ास
यशवंत

धन्यवाद ब्लोग्गर मित्रों...

नई सुबह, नया दिन, नए संघर्ष.....ब्लॉग पर भी नई कृतियाँ....हिन्दी ब्लॉग जगत के कई जागरूक और समझदार ब्लोगार साथियों की तरह मैं भी एक बाजारू और बेगैरत आदमी के ब्लॉग जगत को नए विवादों में घसीटने से स्तब्ध था...उससे भी ज्यादा उस वक्त जब एक निजी मेल को सस्ती लोकप्रियता के लिए सार्वजनिक किया गया...शायद तकनीक की यही खामियां होंगी ...जब हर ऐरे गैरे को इनका इस्तेमाल करने की इजाजत होगी उस वक्त इन दिक्कतों का पैदा होना भी लाजमी है...किसी महिला को सांड, किसी ब्लोगार को कार्यकर्ता और किसी को बलात्कारी साबित करने पर तुले मानसिक विक्षिप्त से ब्लॉग जगत को बचाने का कोई तरीका भी तकनीक के पास नही है...अब इन कमियों को हमें झेलना ही होगा...
इन सबके बीच सुधी ब्लोगार बंधुओं का धन्यवाद करने का भी मन कर रहा है...ज्यादातर ने किसी भी किस्म के विवादों में न पड़ते हुए ख़ुद को इन सबसे दूर रखा और बेशर्म ब्लोगार की करतूतों पर अपने अपने तरीके से शर्म भेजी...कहावत है हवन करते हाथ जलते हैं....कुछ ऐसा अपने साथ भी हुआ...कहाँ विवाद को शांत करने के चक्कर में बेवजह मुझे भी विवादों में घसीट लिया गया..इस पूरे एपिसोड में उम्मीद जगाती बात यही लगी की सब अपनी रचनाओं में लगे रहे...बनिस्पत विवादों में पड़ने के...
दूसरो के ब्लॉग और दूसरो के व्यक्तित्व का आदर करने वाले सभी ब्लोगार बंधुओं का भड़ास की तरफ़ से धन्यवाद करते हुए...बेहतरी और विचारों के आदान-प्रदान के संकल्प के साथ...(मैं सपने में भी नही चाहता की किसी ब्लोगार के साथ उस बाजारू इंसान जैसे संवाद की नौबत कभी आए)...जबकि रोजाना नए-नए बेशर्मों और बाजारू ब्लोगारस का जन्म हो रहा है विवाद पैदा करने के लिए....अभी एक नई ... का जन्म हुआ है...(खाली जगह ख़ुद भरें)...पर हम आगे की सुध लेने वालों में हैं....अगर किसी सुधी ब्लोगार की भावनाएं मेरी वजह से चोटिल हुयी तोः हर सजा मंजूर...सबको विनम्र धन्यवाद के साथ..
भड़ास पर सबको नई रचनाएं और बेहतर पोस्ट मिलें...यही वायदा सबसे...भड़ास को और बेहतर बनने के प्रयासों पर भी जोर शोर से काम हो रहा है..नतीजे जल्द ही आपके सामने होंगे..पहला प्रयास भड़ास फॉर मीडिया सबके सामने है ही आगे भी और बेहतर देने की भरसक कोशिश की जायेगी...
हृदयेंद्र
fuhaar.blogspot.com

फिर तेरी कहानी याद आई उर्फ कालिया है हिप्पोक्रेट तीन चौथाई


घटिया, स्वार्थलोलुप, सनसनीप्रदानक
कुकृत्य करना कब बंद करोगे?
हृदयेंद्र प्रताप सिंह ने जो निजी पत्र व्यवहार कालिया से किया, उसे कालिया ने अपनी पुरानी आदत के अनुसार तड़ाक से सार्वजनिक कर दिया। और पुरानी आदत के ही अनुरूप उसमें से केवल वे ही अंश प्रकाशित किए जो उसके लिहाज से फिट थे, बाकी डिलीट कर दिया। बाद में हृदयेंद्र ने उन अंशों को भड़ास पर प्रकाशित किया। आखिर कालिया यह घटिया, स्वार्थलोलुप, सनसनीप्रदानक कुकृत्य करना कब बंद करेगा?


तुम रंगभेद का मुकदमा करो,
हम तो मानहानि का करेंगे ही
किसी भी व्यक्ति, बुद्धिजीवी, सेलीब्रटी का मीडिया ट्रायल किए जाने की तरह ही कालिया ने ब्लाग ट्रायल की परंपरा शरू कर रखी है, बहुत पहले से। एक एक कर इसने अपने सारे मित्रों को इस ब्लाग ट्रायल के दायरे में घसीटा और उन्हें कथित तौर पर नंगा कर खुद को सबसे लायक, सबसे सक्षम, सबसे बड़ा क्रांतिकारी बनाने की कोशिश की। पर हुआ हर बार उल्टा। लोगों ने इसको जमकर लात लगाई। पर कुक्कुर कभी मानता है, सो अपनी हरकत जारी रखे हुए है। अब इसने खुद के द्वारा (कठपिंगल) एक संदेश कमेंट के रूप में भेजा है कि कालिया शब्द हटाओ वरना भड़ास पर रंगभेद का मुकदमा होगा। तो भइया, करो, मुकदमा। तुम्हारे खिलाफ भी मानहानि का मुकदमा चलाने की तैयारी हो रही है, ये सिर्फ मैं बता रहा हूं तुमको, चुपके से। अबकी तुम्हें न छोड़ेंगे सनम।


ऐ पाखंडी प्रगतिशील, पत्नी
की नौकरी क्यों छुड़ा
दी और घर बिठा दिया?
प्रगतिशीलता का ढोंग रचने वाले इस पाखंडी से एक सवाल है कि उसने क्यों नौकरी कर रही अपनी पत्नी को नौकरी छोड़ने पर मजबूर किया और घर पर पूरी तरह बिठाने की जिद पूरी की। आखिर उसे क्यों नहीं यह सुहाता कि पढ़ी लिखी वो महिला नौकरी करे और आत्मनिर्भर रहे। वह क्यों उसे एक गठरी की तरह इस्तेमाल करता है। कहीं यह वही सामंती प्रवृत्ति तो नहीं जो सदियों से मर्दों में कायम रही है और आज भी चल रही है।

रात भर नौकरी दिन भर सोना,
समय मिले तो किसी की बांह मरोड़ना....
यही तुम्हारा धंधा है, और रहेगा
ब्लागिंग के लिए फुल टाइम देने और कुछ जीवन में नया करने के लिए अदम्य इच्छा रखने वाला कालिया आखिर क्यों एनडीटीवी से चिपका हुआ है। रात भर नौकरी करेगा और दिन में एक सनसनीखेज पोस्ट लिखकर ब्लागिंग का मठाधीश बना रहेगा। दोनों हाथ में लड्डू। अगर तुम्हें वाकई ब्लागिंग से प्यार और लगाव है और इस देश के लोकतंत्र, दलितों, पिछड़ों, स्त्रियों के लिए तुम करना चाहते हो तो ठोकर मारो नौकरी को और आ जाओ फुल टाइम इस पेशे में। पर मैं जानता हूं, तुम बेहद लोमड़ी टाइप चालाक आदमी हो। ऐसी कर ही नहीं सकते क्योंकि तुमने नौकरी पाने, नौकरी बचाए रखने और नौकरी बढ़ाते रहने के लिए हमेशा से इतनी कसरत, कवायद की है कि तुम्हारा ओरीजनल व्यक्तित्व खो गया है। अब तुम केवल हिप्पोक्रेट ही बने रह सकते हो। रात भर नौकरी दिन भर सोना, समय मिले तो किसी की बांह मरोड़ना....यही तुम्हारा धंधा है, और रहेगा।

खबरें अभी और भी हैं.......

जय भड़ास
यशवंत

भड़ास के पाठकों के तीन सवाल

पहला सवाल
Address of VOI TV : Priya Bhai Yashwantji,Namaskar.Mujhe kripaya TRIVENI news channel ke Delhi sthit office ka pata aur phone number bataiye. Main apna CV unhe bhejna chahta hu.

दूसरा सवाल
त्रिवेणी मिडिया संस्‍थान का एड्रेसः भडास द्वारा ज्ञात हुआ कि त्रिवेणी ग्रुप ने अपने यहां अध्‍ययनरत सभी 28 पत्रकारिता छात्रों को अपने ही संस्‍थान में रोजगार उपलब्‍ध करा दिया है । यह तो त्रिवेणी ग्रुप का एक अच्‍छा कदम है । मै यहां जानना चाहता हू कि दिल्ली में त्रिवेणी ग्रुप का मिडिया संस्‍थान इण्‍टरनेशन स्‍कूल आफ मीडिया स्‍ट्डीजं का कार्यालय कहा पर स्थित है। अगर संभव हो सके तो इसका मेल एड्रेस के साथ ही दूरभाष नम्‍बर देने का कष्‍ट करें ।

और तीसरा सवाल
is he correct or not? Police has finally made it clear that Dr. Talwar is the master mind behind double murder CASE. He killed his daughter and the helper as they both were opposing his relations with Dr Durrani. Also he found both of them in an 'objectionable but not compro mising condition' According to you is he correct or not? Is he involved alone or his wife Dr. Nupur supported him during all this while?


अगर आप उपरोक्त तीनों में से किसी सवाल का या तीनों का जवाब देने की कोशिश करें तो अच्छा रहेगा। आपका जवाब इसी पोस्ट पर कमेंट या मेल, किसी भी रूप में हो सकता है।

जय भड़ास
यशवंत

27.5.08

क्यूं नहीं आती अब रात छत पर

क्यूं नहीं आती अब रात छत पर।
क्यूं नहीं अब भोर गुनगुनाते हैं।।
क्यूं नहीं अब कूकती है कोयल।
क्यूं नहीं अब खेत लहलहाते हैं।।
क्यूं नहीं अब सांझ शरमाती है।
क्यूं नहीं अब फूल खिलखिलाते हैं।।
क्यूं नहीं अब बारिश हंसती है।
क्यूं नहीं अब भौंरे गुनगुनाते हैं।।

इसलिए रात नहीं आती छत पर
कि हमने छत पर जाना छोड दिया।
इसलिए अब नहीं गुनगुनाता भोर
कि हमने उसे बुलाना छोड दिया।
इसलिए नहीं कूकती कोयल
कि हमने उसे चिढाना छोड दिया।
इसलिए खेत अब नहीं लहलहाते
कि हमने हंसना छोड दिया।
इसलिए नहीं अब सांझ शरमाती
कि हमने उसे आईना दिखाना छोड दिया।
इसलिए अब नहीं खिलखिलाते फूल
कि हमने उन्हें हंसाना छोड दिया।
इसलिए नहीं अब बारिश हंसती
कि हमने अब उसमें नहाना छोड दिया।
इसलिए नहीं अब अब गुनगुनाते भौंरे
कि हमने मुस्कुराना छोड दिया।।

कालिया से हुए पत्र व्यवहार का अप्रकाशित अंश.....

कालिया से हुए पत्र व्यवहार का अप्रकाशित अंश.....

हृदयेंद्र....
pata nahi kis manch se yaswant ko maine apna neta maana hai...ye aaphi behtar bata sakte hain...ek baar bhi unhe bachaane ki koshish nahiki...na muje kisi se kuch jaanana hai. behad gusse me hain. aapko honabhi chahiye....kahte hain ki gusse me vivek kaam nahi karta..theekwahi hai....itna muje bhi pata hai....takleef itne thi ki bahubetiyaan is chechaledar ka hissa ban rahi hain...ek varisht hone kenaate unka samman karta hun....sach jald hi saamne aa hi jayega...firwahi...certificate...chichla patrakaar..kahtey hain choron ko sabhinajar aatey hain chor....kripa karke apney baare me banaye gayevicharon ko mujh par naa thopein....aapko is samay sabhi maje lenewale lag rahe hongey...insaan hone ke naatey aapki manahsthiti samajhsakta hoon...chaliye apni hi harkaton sey sabke saamne nangeyhuye..accha hai...devghar aur patna ke chochley yahan nahi chalengeybandhu....kisi galatfahmi ka shikaar na rahiyega.....ye chelageerikarne me yakeen nahi karta....apne cheleon ko ye gur dijiye...aapkobhagwaan bhi nahi bacha sakta....(apni chichlipana, kuntha, kamingi aur dusri buraaiyaan apne paas hirakho dost....tumhari beevi aur saare sambandhi to ek ek kar nangey horahe hain....aisa hamaare yahan begairat kahe jaaney wale logon kesaath hota hai....) waakai jiski ijjat hi na ho usey ijjat ka kyadar...jiyo mere buddhijeevi laal.....) ummid hai apni kaminagi se muje bhavisya me door rakhogey....mail kajawaab paane ki wakai iksha nahi hai...

kaaliya अविनाश ...
एक बात और बंधु हृदयेंद्र जी, आप अपने मित्र यशवंत के जिन आरोपों की ओर इशारा कर हैं, और जो आपके लिए यशवंत दादा हैं, उन्‍होंने मेरे चरित्र के बारे में जानने के लिए बनारस के पत्रकार श्‍यामल जी का जो हवाला दिया है और जिनका नंबर 09450955978 भी सार्वजनिक किया है, बेहतर हो - आप उनसे ही पूछें।

kaaliya अविनाश ..
शुक्रिया आपकी भाषा आपका परिचय दे रही है।

hridayaendra.....
hai naa....parichay hi kaafi hoga...apni hasiyat ko lekar bahut sachetrahta hun...isiliye tum gareebon ko samjhata hun..ki meri haisiyat ki kadra karna seekho mere laal..bade besharm ho.....maanana padega....matlab...logon ko uksaaogey gaaliyaan dene ke liye...(apne ghatiya dimaag ko sahi jagah laago..to shayad tumhare saath log tumhari maa, bahan aur betiyon ki ijjat baksh dein)...............jeewan me mile pahle aise aadmi ho jo sasti lokpriytakey liye apni patni tak ko chauraahe par nanga karwa sakta hai....u r a great ......yaar kyun mail karne me jute ho...kaam karo apna...tumhare saath..baat karke main bhi tumhare jaisa hi kuch ghatiya ban sakunga....kyun..

ये उस नीच इंसान के साथ बेहद निजी पत्रोतर का मजमून है...एक सवाल सबसे....nijta ka makhaul udana..dusron ko kunthit karaar dena...sansadiya bane rahkar saare asansadiya kaam karna....ki pragatisheelta ka parichay dete hain aur insey blog jagat ka kya bhala hoga....

mitron behad niji patra vyavhaar ko sirf apney faayde aur blog jagat mein teji se lokpriya ho rahe bhadas ko kisi bhi keemat par rasatal par le jaaney ki ghatiya koshishon ke tahat....bewajah muje is vivaad mein is neech aadmi ne ghaseeta...is insaan par kya hum sabko pratibandh nahi laga dena chahiye....


hridayendra
fuhaar.blogspot.com

एक और ठुकने वाले कवि .............

मित्रों,

हमारे भडास का कमाल हमारे दोस्तों का धमाल, भडासी बुजुर्गों का आशीर्वाद कि ससुरे हम भी तुकबंदी करने लगे हैं।

भैये लोग ई हमारा पहिला तुकबंदी है सो जड़ा पढ़ते चलिए। बहुत हो गया कलुआ-कलुआ ससुर के नाती ने बहुत टाइम खोटा किया सो वापस अपुन लोगों कि दुनिया में आ जाओ। जरा एक नजर इधर भी........

हमारी आदरणीय सलाहकार मनीषा दीदी को समर्पित......



मेरी भी कलम के दिल में लाखों
कविताएं और गज़लें भरी हैं
तुकबंदी के कुत्ते भौंक रहे हैं
तभी तो बाहर निकलने से डरी हैं
लटका, पटका, झटका, खटका की
तुकबंदियां तुम्हें खुश कर रही हैं
भावनाएं अपनी ही चमड़ी को
उधेड़ उसमें भुस भर रही हैं
कांपते हाथों से गिरी दवात की
बिखरी स्याही, समेटे लाखों गज़लें
बगुले तुक के तुक्कों से आगे हैं
हंस सहमें से झांकते फिरते बगलें हैं


जय जय भडास

जय जय भडास

भोंसरी के पूत ब्लॉग पर मत मूत......

बे यार ये क्या हो रिया है इधर .......महीने भर तो नही हुए अपनी प्राण प्यारी भडास से अलग हुए की सालों ने हल्ला मचाना शुरू कर दिया.....जाने क्या क्या

यार अविनाश तू काहे को बमक रहा है...सचमुच यार अब तक तो तेरे को मैं एक अछा पत्रकार समझ रहा था लेकिन इस प्रकरण ने साबित कर दिया की तू सचमुच विपरीत सोच वाला प्राणी है.....

वैसे अभी समय कम है .....पहले पूरा मुद्दा जानता हुं फ़िर आता हुं इधर .......वैसे सच्ची यार अदालत बरी की तू बरी अगर अदालत बरी तो सुन बे चिलांदु '''ब्लोगिंग के पूत इधर आ कर मत मूत'''' और अगर मुतना ही है तो कल से मुतना क्यूंकि तेरे जैसे जुज को मैं फ़िर अपने अंदाज में मुतना सिखाता हुं क्यूंकि मेरे पास भी ऐसे हजारों सुबूत हैं जो एक-एक कर भोकर भोकर कर दुनिया वाले को बताउंगा।

ऊँगली पर गिन ....तेरे जैसे काले दिल वालों की बखिया उधेरने के वास्ते हजारों मुद्दे बिखरे पड़े हैं.....
उलटी गिनती शुरू कर दे यार........
जय भडास
जय यशवंत
मनीष राज बेगुसराय

अबे चिल्लर ...निजी पत्र व्यवहार को बिना इजाजत ब्लॉग पर प्रकाशित करना किस पत्रकारिता का सिद्धांत है....

लोकतंत्र और विचारों के बारे में बात करने का दावा करने वाले इस काले आदमी की काली करतूतों का सच देखिये...

अगर इसकी कही, सुनी एक भी बात का आपने विरोध किया या इसके मित्र मंडली में से किसी पर कोई उंगली उठायी तोः येः बाकायदा आपको कुंठित और ना जाने किन किन नामों से सम्बोदित करेगा...

यकीन न हो तोः इसके ख़िलाफ़ कुछ कहकर देखिये तो।

सही...अब येः भी तय करने का वक्त आ गया है...की इस नीच आदमी ब्लोग्गिंग को दूर किया जाए..

संसदीय बने रहकर सारे असंसदीय काम करने वाला ये इंसान ब्लोग्गिंग में आगे भी इसी तरह के कुचक्रों को अंजाम देता रहेगा...इसलिए इसका खेल हमें ख़त्म करना ही होगा...

इस आदमी में मेरी आस्था इंसान होने के नाते कुछ देर पहले तक भी थी..लेकिन इसकी कमीनगी से पहली बार पाला पड़ा...जब इसने बड़े सलीके से मक्कारों के ठिकाने पर ख़ुद को मसीहा और मुझ को दुर्जन साबित करने की कोशिश की....

क्या ये मक्कार आदमी किसी को पत्रकारिता और इंसानियत के बारे में कहने के लायक है...जो सिर्फ़ इसे नाते किसी से सम्बन्ध तोड़ लेता हो जो इसके अनुसार ग़लत आदमी है...

जिस आदमी का अपना इतिहास दागदार और निजी जिंदगी बदबूदार और कमिनागी से भरी हो वह आदमी किसी को पत्रकारिता सिखायेगा...

मैने भी कई बार देखे हैं ऐसे रीड विहीन लोग जो इसे नीच, कुंठित, कमीने और काले इंसान से रिरियाते रहते हैं...सर मेरी पोस्ट प्रकाशित कर दीजिये...सर मेरी ब्लॉग का लिंक अपने घटिया जगह पर लगा दीजिये...

जो लोग अपनी लिंक जुड़ाने के लिए किसी से इस कदर रिरियाते हैं....उनसे कोई समझदार आदमी क्या उम्मीद रखेगा....

यशवंत की सरलता की वजह से भड़ास पर लिखता हूँ..इसके लिए किसी से रिरियाना नही पड़ता..जो कि मुझ जैसे लोग कर भी नही सकते...

हाल में बात बात में यशवंत जी से अपने ब्लॉग के बारे में बात होने लगी...उन्होने मुझसे तुरंत अपनी लिंक भेजने का आग्रह किया....

एक तरफ़ आग्रह एक तरफ़ अहम्....

जाहिर है हर कोई आग्रह को ही चुनेगा....

कालिया ने मुझे विवाद में घसीटा ही है तो मैने भी उसका जवाब देना सही समझा ..

मजेदार बात देखिये...मुझे बेहतर पत्रकार और इंसान बनने की सीख वह इंसान दे रहा है जिसे इंसानियत और पत्रकारिता का मतलब ख़ुद नही पता...

अबे चिल्लर ...निजी पत्र व्यवहार को बिना मेरी इजाजत के अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर देना किस पत्रकारिता का सिद्धांत है....

सहानुभूति लेने के लिए सिर्फ़ वही पोस्ट दर्शाना जो ख़ुद के लिए लोगों की सहानुभूति बटोरें...किस पत्रकारिता का सिद्धांत है....

हर जगह गालिया खाना, ख़ुद के साथ अपने परिवार को भी अपनी महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ाना...

ऐसे आदमी से क्या कोई इंसानियत का सबक सीखना चाहेगा....

अपने ताजा कारनामे से इसकी हिटलरशाही और कमीनगी का एक और नमूना इस इंसान ने हमारे सामने पेश किया है...

सिर्फ़ मैं भड़ास पर लिखता हूँ....इसलिए मैं यशवंत का कार्यकर्ता हुआ...क्या ये इस आदमी के दिमाग के दिवालियेपन का नमूना नही है...

इतना तंगदिल और अलोकतांत्रिक सोच रखने वाला आदमी ब्लॉग को कुछ बेहतर देगा ये, इस पर बाबा लोगों को सोचना होगा...

इमानदारी से एक निवेदन सबसे की ये इंसान भयंकर रूप से मानसिक बीमारी की चपेट में है...वैसे तो ये अस्पताल जायेगा नहीं लेकिन इसे पकड़कर किसी अच्छे मनोचिकित्सक को जरूर दिखाना चाहिए...वरना हम सब यूँ ही घटिया विवादों में उलझकर ब्लोगिंग का बंटाधार करने में इसे नीच का साथ देंगे...

आगे इसे घटिया आदमी के साथ हुए पत्र व्यवहार का पुरा विवरण है....जिस आधार पर गुनी जन ब्लोग्स को इसे नीच से बचाने के बारे में सोचें....

ना चाहते हुए भी काले और कमीने इंसान द्वारा बेवजह मुझे फंसाने के चलते ये पोस्ट लिखना पड़ा...उसके लिए मैं ब्लॉग जगत का गुनाहगार रहूंगा....सजा वक्त तय करेगा....

आपका
हृदयेंद्र

fuhaar.blogspot.com

kaala kaarnaama kaaliya ka-antim bhag

इस नीच आदमी को जब मैंने ख़ुद का पीछा छोड़ने का अनुरोध किया और भविष्य में किसी किस्म का पत्र व्यवहार न करने की चेतावनी दी उस वक्त तक भी मेरे पीछे पड़े रहने के बावजूद मुझे इसको समझ में आनेवाली भाषा का इस्तेमाल करना pada...ab iski kaminagi dekhiye....kaise meri hi jhidki ko apne liye sahanubhuti ikkatha karne ka aujaar bana liya....
(mitron kameene ke blog par darshaye mere antim patra ke likhne se pahle mere-baar-baar kahne ke baavjood ye bhediya mera peecha hi nahi chod raha tha....jaahir hai is ghatiya aadmi se bachne ke liye isko samajh mein aanewali bhasha ke istemaal karte hi....isne mera peecha chod diya)...kamaal hai...
attention.......
is kameene ke kaarnaamon ka bloggers bhi samajhne lage hain....yahi wajah hai sahanubhuti batorne ke liye jis post ko is gareeb ne publish kiya uspar aaye pahle comment ko ise delete karna pada aur baki ke comment bhi iske liye trasdi hi hain....accha hai jitna jaldi hum iski kaminagi samjhenbgey utna accha rahega...blog jagat ke liye....

भड़ासी पत्रकारों से कुछ प्रश्न - जवाब टिप्पणियों में दें

भड़ासी जनो,

कुछ जानकारी लेना चाहता हूँ, उत्सुकतावश। समय हो तो टिप्पणियों में जवाब दें। संस्था का नाम और निजी जानकारी देना आवश्यक नहीं हैं।

यदि आप हिन्दी के अखबार या पत्रिका - कागज़ पर छपने वाली - के दफ़्तर में काम करते हैं, तो यह बताएँ कि

  1. खबरों के ब्यौरे अपने दफ़्तर तक यदि आप कंप्यूटर के जरिए पहुँचाते हैं, तो क्या यह ईमेल द्वारा होता है, और यदि हाँ तो यह ईमेल अंग्रेज़ी में होती है, देवनागरी हिन्दी या रोमन हिन्दी में?
  2. आपके दफ़्तर में आपसी वार्तालाप - ईमेल के जरिए - अंग्रेज़ी में होते हैं, देवनागरी हिन्दी में या रोमन हिन्दी में?
  3. क्या आप अपने मोबाइल पर देवनागरी में ऍसऍमऍस भेजते/प्राप्त करते हैं?
  4. क्या आपके अखबार का सम्पादक बनने के लिए अच्छी हिन्दी आना अनिवार्य है?
  5. एजेंसियों से प्राप्त खबरें - क्या आपको अंग्रेज़ी में मिलती हैं या हिन्दी में? यदि अंग्रेज़ी में मिलती हैं तो अनुवाद का जिम्मा किसका होता है?
समय मिलने पर इत्मीनान से जवाब दें।

सधन्यवाद,


कौन बचायेगा इसकी मोहल्लाछाप हरकतों से ब्लोग्गिंग को..

बड़े मजे और दिलचस्पी के साथ ब्लोग्गिंग का शौक शुरू हुआ था...पूरे मजे के साथ इसमे जुटा भी हुआ था....लेकिन कहावत है की बुरे आदमी की हवा भी लगने का अंजाम बुरा ही होता है...वही हुआ....अपने बेहद प्रिय बिजेन के कहने पर कालिया से बात हुयी...मकसद इतना ही की...कुछ नया जानने समझने का मौका मिलेगा...खैर बात आई गई ...इधर भड़ास पर लिखना भी जारी रहा....चूँकि कभी जोड़ घटाव जीवन में किया नही..तोः इसके बारे में बहुत बारीकी से पता भी नही है...इधर मेरा भड़ास पर लिखना चालू..उधर काले भेडिये का मुझ पर आँख तरेरना शुरू....यूँही कई बार ऑनलाइन होने पर कैसे है, क्या हाल है...जैसे संवाद हो जाते थे..लेकिन भड़ास पर लिखना शुरू होते ही कालिया ने बात करना बंद कर दिया...
इधर कालिया के ताजा कुचक्र में भी..मन में कई सवाल होने के बावजूद chup रहना ही बेहतर समझा...इस विवाद में कूदने का मन भी नही था...लेकिन जब उसकी पत्नी को इस विवाद में घसीटा गया....ब्लॉग को व्यक्तिगत आक्षेपों से दूर रखने के लिए ही निवेदन करने की गरज से (वैसे येः अपराध मैं भी कर चुका हूँ, आवेश में या नया होने के चलते.. इसके लिए घर के समझदार लोग जो सजा दें वह भी सहर्ष स्वीकार है) आज कालिया को मेल किया सिर्फ़ इतना निवेदन करने के लिए की इसे व्यक्तिगत रंजिशों से दूर रखा जाए...कालिया ने बची-कुची सहानुभूति बटोरने के लिए इसेबाजारू मोहल्ले में भी बड़े शान से चस्पा भी किया है इस भेडिये ने...अभी एक साथी से बात हो रही थी..जो की इन ब्लोग्स के पाठक हैं....बड़े दुखी मन से उन सज्जन ने कहा हृदयेंद्र ये सब सही नही हो रहा है...बस मुझे भी यही लगता था की येः सही नही है, ब्लोग्गिंग की दुनिया में..अब एक दूसरे के कपड़े उतारना ही बाकी रह गया है...मैं हमेशा कहता हूँ की अपने छुटपन का एहसास है मुझे..वरिस्ट होने के नाते बेहद विनम्रता से मैंने अपनी बातें भी कही....लेकिन बिना कुछ कहे सुने...कालिया ने यशवंत को मेरा नेता करार दे दिया...और उनका समर्थक...इस aadmi ki soch dekhiye...apni kuntha key chaltey ek blogger ko karyakarta karaar de diya...bhaiyya bhadas ney kab raajneetik party ki sadasyata grahan kar lee mujhey to pata hi nahi chala...uspar kaminagi yeah ki apni sirf pahli post is neech aadmi ne prakashit ki..aur beech ki kai post ka koi jikra hi nahi kiya....mere lagataar vinamra bane rahne aur shrafat ka parichay dene ke baad bhi is neech ne apni hitlarsaahi aur ahamkaar ki galatfahmi mein apmaanit karne ki koshish jaari rakhi...jiska jawaab miltey hi ye bhediya tilmilaaya utha...
contd....
hridayendra