Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

2.5.08

सब की आंखों में नीरव आप खल रहे होंगे।

धूप में परिंदों के पंख जल रहे होंगे
आंसुओं की सूरत में दर्द ढल रहे होंगे
तनहा-तनहा बस्ती में फूल-से खयालों के
नर्म-नर्म आहट पर पांव चल रहे होंगे
गर्म-गर्म सांसों के रेशमी अलावों में
मोम-से बदन तपकर आज गल रहे होंगे
चांद-जैसी लड़की के शर्बती-से नयनों में
ख्वाब कितने तारों के रात पल रहे होंगे
जुगनुओं की बस्ती में भोर ले के निकले हो
सब की आंखों में नीरव आप खल रहे होंगे।
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६
( पूर्व गीत की प्रतिक्रया हेतु जे.पी. नारायण, रजनीश के.झा, वरुण राय, अबरार अहमद तथा अपने नित नूतन-चिर पुरातन प्रशंसक डॉ.रूपेश श्रीवास्तव का हार्दिक आभार)

5 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

सब की आंखों में नीरव आप खल रहे होंगे।
विरोधियों के सीनों पर सांप चल रहे होंगे।
अब आप निकले हैं सूरज बन कर जब तो
छोटे-मोटे से तारे बस ढल ही रहे होंगे ॥
जय जय भड़ास
जय जय भड़ास
जय जय भड़ास.........

राजीव रंजन प्रसाद said...

जुगनुओं की बस्ती में भोर ले के निकले हो
सब की आंखों में नीरव आप खल रहे होंगे।

बहुत खूब नीरव जी,

***राजीव रंजन प्रसाद

राजीव रंजन प्रसाद said...

जुगनुओं की बस्ती में भोर ले के निकले हो
सब की आंखों में नीरव आप खल रहे होंगे।

बहुत खूब नीरव जी,

***राजीव रंजन प्रसाद

Anonymous said...

पंडित जी सादर प्रणाम,
आपका खलना मुझे तो बड़ा भाया. वैसी भी भडासी आज कल खल ही रहे हैं. मगर आपकी ये लेखनी जोश से भर दे रही है.
जय जय भडास

अबरार अहमद said...

बडे भईया प्रणाम। इसी तरह लिखते रहिए।