Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

8.5.08

क्योंकि सास भी कभी बहू थी

कहानी घर घर की थी ये
कहानी हर घर की थी ये
बहुएँ पहले सताई जाती थी
रूलाई जाती थी
और एक दिन सास के हाथों
जलाई जाती थीं ।



परन्तु इस बार क्योंकि
बहू कुछ ज्यादा सयानी थी
गढ़ डाली उसने नयी कहनी थी
एक नया इतिहास बना डाला
उसने सास को ही जला डाला।

अदालात में जज ने पूछा
हमारी परंपरा तो
बहुओं को जलाने कि है
तुमने सास को कैसे जला डाला।


उसने कहा कैसे या क्यूँ
क्या बताऊँ हुआ कुछ यूं
एक दिन मैंने सोचा
कि सास तो सास
इसलिए बन पायी थी
क्योंकि तब जब वह बहू थी
जल नहीं पायी थी।



मैंने तो बस
परंपरा को निभाया है
सास को नहीं मैंने भी
बहू को ही जलाया है
क्योंकि सास भी तो
कभी बहू थी।


वैसे भी परंपरा तो
हर हाल में निभाई जाती
सास नहीं जलती तो
मैं जलाई जाती ।


प्रेम कि डोर से बंधी
जो चली आई थी
आख़िर मैं भी तो
दहेज़ लेकर नहीं आई थी।


क्या पता जज साहब
मेरी बहू भी प्रेम के डोर से
बंधी चली आये
वह भी संग अपने
दहेज़ ना लाये ।


न्याय तो उसके
साथ भी करना पड़ेगा
सास अगर जली है तो
बहू को भी जलना पड़ेगा।


बात परंपरा की है
हर हाल में निभाई जायेगी
सास को आत्म रक्षार्थ जलाया था
बहू भी आत्म रक्षार्थ जलाई जायेगी।


क्या पता मेरी बहू भी
इतिहास को दुहरा डाले
आत्म रक्षा के बहाने वह
मुझे ही जला डाले।


उसकी बातें सुन जज ने कहा
जा तुझे छोड़ता हूँ
न्याय कि खतिर मैं भी
आज कानून को तोड़ता हूँ
स्वतः न्याय हो जाएगा
तेरी बहू यदि तुझे जला पाएगी
वरना बहू को जलाने के जुर्म में
तू फिर मेरे पास ही आएगी।
वरुण राय

5 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

ये साला जज रिटायर क्यों नहीं होता...
कविता सुन्दर है...

Anonymous said...

वरुण भाई,
करारी चोट मारी है.
बेहतरीन है

अबरार अहमद said...

वरूण भाई जबरदस्त। इसी तरह लिखते रहिए।

यशवंत सिंह yashwant singh said...

सुंदर है वरुण भाई....कीप इट अप..

Anonymous said...

varun ji kavita me kaafi tikhi chot ki hai...