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15.5.08

चोट खाकर भी मुस्कुराते नहीं...

चोट खाकर भी मुस्कुराते नहीं तो क्या करते।
दिल के जज्बात दिल में दबाते नहीं तो क्या करते।।

भरी महफिल में जब उन्होंने न पहचाना हमको।
नजर हम अपनी झुकाते नहीं तो क्या करते।।

उनके दुपट्टे में लगी आग न हमसे देखी जाती।
हाथ हम अपना जलाते नहीं तो क्या करते।।

दोस्तों ने जब सरे राह छोड दिया मुझको।
तब हम गैरों को बुलाते नहीं तो क्या करते।।

किस मुददत से वो देख रहा था राह मेरी।
वादा हम अपना निभाते नहीं तो क्या करते।।

चोट खाकर भी मुस्कुराते नहीं तो क्या करते।।
दिल के जज्बात दिल में दबाते नहीं तो क्या करते।
अबरार अहमद

3 comments:

Anonymous said...

किस मुददत से वो देख रहा था राह मेरी।
वादा हम अपना निभाते नहीं तो क्या करते।।

अबरार भाई,
बेहतरीन लिखा आपने और उपर्युक्त पंक्ति तो जैसी भडासी पर सौ फीसदी सही सी लगती है.
बड़ी सुन्दर रचना है.
आपको बधाई

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

अ इ य इ यो, कित्त्त्त्त्त्तीईईईई इश्श्श्श रचना है... मार डाला...

अनिल भारद्वाज, लुधियाना said...

दोस्तों ने जब सरे राह छोड दिया मुझको।
तब हम गैरों को बुलाते नहीं तो क्या करते
These lines are not true. Friends donot leave alone. True Friends swim together and sink together.Abrar Be optimistic we are with you round the clock.