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5.5.08

परिवार का टूटना

परिवार का टूटना :-

आज के इस वर्तमान युग में महिलाओ को किसी भी प्रकार से कम नही आका जा सकता है आज वो बराबरी से पुरषों के साथ कन्धा से कन्धा मिलाकर काम कर रही है क्या वास्तव में महिलाओ के ऐसा करने से उनको वो बराबरी का दर्जा प्राप्त हो गया है? या कही ऐसा तो नही है इस सबके चक्कर में वो अपना नैतिक कर्तव्य भूल रही है ? अगर हम बात करे आजादी से कुछ सालो पहले की तो क्या तब भी ऐसा ही था या अगर हम बात करे राजा महाराजाओ के ज़माने की तो क्या तब भी महिलाये अपने अधिकारों को लेकर इतना सोचा करती थी शायद नही क्यों की उन्हें पता था की महिलाओ का काम घर से बाहर कम और घर के अन्दर ज्यादा था लेकिन शायद आज की परिकल्पना बदल चुकी है अब हर महिला चाहती है की उसको वही दर्जा प्राप्त हो जो पुरषों को मिल रहा है लेकिन इन सब के चक्कर में शायद वो अपना कर्तव्य भूल चुकी है अब वो घर से ज्यादा नौकरी को तवज्जो दे रही है शायद यही कारन है की आज ४० प्रतिशत से भी ज्यादा परिवार टूटने की कगार पर है आख़िर ऐसा क्या है जो आज महिलाये अपना सामंजस्य नही बैठाल पा रही है अब वो किसी भी तरह का समझोता नही करना चाहती है आख़िर ऐसा क्या कुछ इन सालो में हो गया की अब परिवार में एकता खत्म सी होती जा रही है शायद इसका सही जवाब तो कोई भी नही दे सकता है क्यों की अब ज़माना बिल्कुल बदल चुका है अब किसी भी छोटीसी बात पर सीधे तलाक की नौबत आ जाती है कोई भी झुकने को तैयार नही है फिर वो चाहे पुरूष हो या फिर महिला इनके इन सब करने से शायद ये अपनी ज़िंदगी तो ख़राब कर ही रहे है अपने संग संग अपने बच्चो का भविष्य भी ख़राब कर रहे है इन सब मुद्दों पर अगर चर्चा करे तो ये कहने में मुझे कोई गुर्हेज नही होगा की महिलाओ को अब अपनी जिम्मेदारी को समझ लेना चाहिए इन टि वी धारावाहिक से बाहर निकल कर ज़िंदगी जिए आज अगर इतना कुछ परिवारों के बीच दुरिया बड़ी है तो इसकी एक मुख्य वजह धारावाहिक का आम आदमी में घुलना भी है आज हर महिला चाहती है की वो नौकरी करे और आज़ादी से जिए वो अपने पैरो में खड़ी हो वो किसी के अहसान को न ले लेकिन इन सबके चक्कर में वो अपना परिवार क्यों छोड़ रही है नौकरी करना बुरी बात नही है पर नौकरी के साथ साथ वो अपनी जिम्मेदारी को भी बखूबी न्हीभाये ताकि एक खुशनुमा माहोल बन सके ये बात जितनी महिलाओ पर लागु होती है उतनी ही पुरषों पर भी लागू होनी चाहिए और शादी जैसे पवित्र बन्धन जिसे कहा जाता है की ये सात जन्मों का बंधन है ये इतनी जल्दी न टूटे क्यों की हमारा हिंदुस्तान अपनी संस्कृति में जितना प्रसिद्ध है उतना ही प्रसिद्ध शादियों को लेकर है कम से कम हिंदुस्तान की नई आवाम इस को जीवित रहने दे, पश्चिमी सभ्यता को छोड़ कर भारतीय संस्कृति में ढलने की कोशिश करे तभी कोई बदलाव आ सकता है वरना ये लगातार परिवारों का टूटना सबकी ज़िंदगी तबाह कर देगा और इन सबका का कारन कोई और नही हम और आप होंगे !

अक्षत सक्सेना

5 comments:

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

अक्षत भइया,जान पड़ता है कि काफी भरे बैठे हैं, अच्छा ही है निकाल लीजिये दिल हल्का हो जाएगा; परिवार का विघटन मेरी नजरों में एक दुःखद घटना है मैं इस पीड़ा को कभी भुगतना नहीं चाहूंगा....

Anonymous said...

अक्षत भाई,
पहले बधाई आपने शुरु कर दिया भडास फोरना.
वैसे आपके इस विचार से मैं कतई सहमत नहीं हूँ की महिलाओं ने इस तरह का अत्याचार किया है.
पुरुष प्रधान समाज में हमेशा से पुरुषों की तूती बोलती आयी है वो अलग बात है की बेचारे अपनी बीवी के आगे बेचारे हो जाते हैं. मगर उनका अहम् ये स्वीकार कभी नहीं करता की एक महिला उस से बेहतर हो सकती है और बिखराव का सबसे बड़ा कारण ये होता है. मित्र मेरे बलिदान सिर्फ महिला ही क्योँ पुरुष क्योँ नहीं. अगर समझ का आदान प्रदान स्त्री और पुरुष दोनों बराबर दिखाए तो ये नौबत कभी ना आये.
जय जय भडास

अबरार अहमद said...

अक्षत जी पहले पहल तो भडास पर आने के लिए बधाई। साथ ही इस तरह से भडास निकालने के लिए भी ढेर सारी बधाई। लगे रहिए गुरू।

Anonymous said...

अक्षत मियां,

अभिनंदन,

लेकिन ये जो लेख लिखा है ना उससे लगता है आप गदहे हैं, मूर्ख और जाहिल है, जिसे अचनाक कहीं कीबोर्ड मिल गया और बिना सोचे समझे जो मन मे आया टाइप कर दिया, जो लिखा है उसे दोबारा पढ़ा क्या आपने, पढ कर देखिए आपको अपनी मूर्खता समझमें आ जाएगी, जो नहीं आई तो आप जैसों का भगवान ही मालिक है।

बोलने और लिखने से पहले परख तो लिया कीजिए हुजूर कि जो कह रहे हैं वो कितना तथ्यपूर्ण है , अगर आपकी प्रेमिका वेश्या निकल गई तो इसका मतलब ये थोड़े ही ना है कि सभी लड़कियां वही और वैसी ही है, अगर आपका दोस्त चोर था तो क्या आपके जान पहचान के सभी लोग चोर हो गए,


क्यों महिलाएं नौकरी मिलते ही अपनी जिम्मेदारिया नहीं निभा पातीं, उससे भी पहले क्यों वो जिम्मेदारिया जिसे आप केवल उनके लिए लिए ही जरूरी मानते हैं, वो जिम्मेदारिया छोड़ महिलाएं काम के लिए घर से बाहर निकलीं, क्यों वो आर्थिक रूप से आजाद होने की सोचने लगी, वो इसलिए मिया क्योंकि घर में कमाने वाला मर्द था वो अगर आपने दुनिया देखी है तो जानते होंगे एक अलिखित नियम है जो पैसे खर्च करता है वही मालिक होता है, वही निर्धारित करता है वहीं बॉस होता है,

सदियों से मियां कमाने वाले मर्द को लगा कि औरते घर में बैठी कुछ करती नहीं, लेकिन जितना काम वो घर में करती हैं ना, जिस माहौल जिस तनाव में और जितना देर वो काम करती है, अगर अंतर्राष्ट्रीय मानक के हिसाब से उसकी मजदूरी तय हो तो वो किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के सीइओ के तनख्वाह के बराबर होगी।

लेकिन आपके जैसे मूर्ख लोगों को कभी ये दिखा ही नहीं, आप तो मदमस्त रहते हैं अधकचरे ज्ञान की अपनी अधूरी दुनिया में और ये सोचते कर खुश होते हैं कि आपको सबकुछ मालूम है।

कोई पैसे देकर आपको गाली दे आपकी मेहनत आपके काम की कोई कद्र ना करे तो कैसे आपका आत्मसम्मान जाग उठता है।

महिलाएं तो सदियों से यही झेल रही हैं, कभी ना कभी तो उनके भीतर भी ये विचार उठना ही था।
और जब भूमिकाएं बदलेंगी तो दूसरी चीजों पर असर पड़ेगा ही।

आपने कहा परिवार टूट रहे हैं, जिम्मेदार महिलाएं है, हैं भईया बिलकुल है, तो मूर्ख आदमी आपके इसी बात में ये तथ्य भी छिपा है कि परिवार को जोड़े रखने के लिए भी महिलाएं ही जिम्मेदार थी,
उनकी की कोशिश से ही परिवार बना रहता था। तो
आप क्या कर रहे थे उसवक्त ये इस वक्त भी क्या कर रहे हैं।
हर फिक्र को धुएं में उड़ा रहे थे, चौक की पान की दुकान पर खड़े हो कर 'माल' को निहार रहे थे। खुद को अक्लमंद और वुद्धिजीवी समझ पाने के लिए अनप्रोडक्टिव राजनीतिक चर्चाएं कर रहे थे।
चाय की दुकान पर साजिश रच रहे थे। कितना काम कर रहे थे आप सिवाय परिवार को बचाने की कोशिश के। आपको तो कभी लगा ही नहीं कि परिवार में आपकी भी कोई भूमिका है, स्कूल जाते बच्चे से लेकर दफ्तर में काम करने वाले व्यस्क मर्द तक - खाली मस्ती और मनोरंजन. और जिम्मेदारियां बेटियों की, बहनों की, मां और भाभियों की।

पैसे के बदले में पका पकाया खाना मिल जाता,
बिछावन मिल जाता, सेक्स मिल जाता,
बीमार पड़ो तो नर्स मिल जाती, घर साफ रहे नौकरानी मिल जाती, प्यार की जरूरत पूरा करने के लिए मां, बहन, प्रेमिका मिल जाती।

बस सबकुछ को निश्चित मान लिया कि ये सब ऐसा ही रहेगा। पैसा कमाकर लाए तो आदेश दोगे अपने को श्रेष्ठ समझोगे ही। तो
क्या करती महिलाएं, कभी तो अपने आप को खोजती अपने मन की करने की सोचती

नतीजे को लेकर रोने से पहले जनाब उसकी वजह भी तो जानिए, जो किया है उसका नतीजा तो भुगतना ही पड़ेगा। तो अब चिल्ल-पों क्यों, अब जब फट रही है तो चिल्ला क्यों रहे हो। ये शोर क्यों

सब आप जैसों का ही किया कराया है तो भुगता।

VARUN ROY said...

अक्षत जी ,
आपका हुनर अक्षत रहे . हैरानी हो रही है कि आप पर अभी तक बेलनों की बौछार शुरू नहीं हुई है. वैसे कुंवारे है कि शादीशुदा?
वरुण राय