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8.5.08

उदय प्रकाश की कविताएँ

दिल्ली
समुद्र के किनारे
अकेले नारियल के पेड़ की तरह है
एक अकेला आदमी इस शहर में.
समुद्र के ऊपर उड़ती
एक अकेली चिड़िया का कंठ है
एक अकेले आदमी की आवाज़
कितनी बड़ी-बड़ी इमारतें हैं दिल्ली में
असंख्य जगमग जहाज
डगमगाते हैं चारों ओर रात भर
कहाँ जा रहे होंगे इनमें बैठे तिज़ारती
कितने जवाहरात लदे होंगे इन जहाजों में
कितने ग़ुलाम
अपनी पिघलती चरबी की ऊष्मा में
पतवारों पर थक कर सो गए होगे.
ओनासिस ! ओनासिस !
यहाँ तुम्हारी नगरी में
फिर से है एक अकेला आदमी

कुतुबमीनार की ऊँचाई
कुतबुद्दीन ऎबक को
अब ऊपर से
नीचे देख पाने के लिए
चश्मे की ज़रूरत पड़ती
इतनी ऊँचाई से गिर कर
चश्मा
टूट जाता.
मेरी बारी
पाँच साल से
मरे हुए दोस्त को
चिट्ठी डाली आज
जवाब आयेगा
एक दिन
कभी भी
सीढ़ी, शोर,
टेबिल, टेलिफ़ोन से भरे
भवन की
किसी भी एक
मेज़ पर
मरा हुआ
मैं उसे पढ़ते हुए
हँसूँगा
कि लो,
आख़िर मैं भी !
पाँड़े जी
उस दिन पाँड़े जी
बुलबुल हो गए
कलफ़ लगाकर कुर्ता टाँगा
कोसे का असली, शुद्ध कीड़ों वाला चाँपे का,
धोती नयी सफ़ेद, झक बगुला जैसी ।
और ठुनकती चल पड़ी
छोटी-सी काया उनकी ।
छोटी-सी काया पाँड़े जी की
छोटी-छोटी इच्छाएँ,
छोटे-छोटे क्रोध
और छोटा-सा दिमाग़ ।
गोष्ठी में दिया भाषण, कहा--
'नागार्जुन हिन्दी का जनकवि है'
फिर हँसे कि 'मैंने देखो
कितनी गोपनीय
चीज़ को खोल दिया यों ।
यह तीखी मेधा और
वैज्ञानिक आलोचना का कमाल है ।'
एक स-गोत्र शिष्य ने कहा--
'भाषण लाजवाब था, अत्यन्त धीर-गम्भीर
तथ्यपरक और विशलेषणात्मक
हिन्दी की आलोचना के ख्च्चर
अस्तबल में
आप ही हैं एकमात्र
काबुली बछेड़े।'
तो गोल हुए पाँड़े जी
मंदिर के ढोल जैसे ।
ठुनुक-ठुनुक हँसे और
फिर बुलबुल हो गए
फूल कर मगन !
गांधीजी

गांधी जी
कहते थे--
'अहिंसा'
और डंडा लेकर
पैदल घूमते थे ।
व्यवस्था
दोस्त चिट्ठी में
लिखता है--
'मैं सकुशल हूँ ।'
मैं लिखता हूँ--
'मैं सकुशल हूँ ।'
दोनों आश्चर्यचकित हैं ।


जन्म: 01 जनवरी 1951
गाँव सीतापुर (छत्तीसगढ़ अंचल), जिला शहडोल, मध्यप्रदेश, भारत
कुछ प्रमुखकृतियाँ
सुनो कारीगर , अबूतर-कबूतर, रात में हारामोनियम

भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार (1980), रूस का प्रतिष्ठित पुश्किन पुरस्कार (2007)

ब्लॉग : http://uday-prakash.blogspot.com/

3 comments:

VARUN ROY said...

उदय प्रकाश जी की अभिव्यक्ति और मौजूं दोनों ही बेहतरीन हैं हरे दादा .
वरुण राय

Anonymous said...

हरे दादा,
शानदार, और बधाई उदय प्रकाश जी को.

यशवंत सिंह yashwant singh said...

उदय प्रकाश जी का तो मैं फैन रहा हूं

वे गद्य लिखें या पद्य, बेमिसाल लिखते हैं।

उनकी जो कवितायें हैं, सिर्फ वे ही लिख सकते हैं क्योंकि उनके लिखने में जो बड़ा विजन, बड़ी संवेदना, बड़ा व्यंग्य, बड़ा फलक दिखता है, वो बहुत कम लोगों के पास है।

हरे भाई को शुक्रिया, उदय प्रकाश को पढ़ाने के लिए। उनकी कविताएं भड़ास पर डालने के लिए। इससे भड़ास को सम्मान मिला है।

यशवंत